गुजरात विस चुनाव - कांग्रेस को ''झटके पे झटका''
गुजरात विधान सभा चुनावों सत्ता पर काबिज होने के स्वप्न देख रही कांग्रेस अभी ''पोस्टर वार'' से उभरी नहीं थी कि भीतर चल रहा शीतयुद्ध उभरकर सामने आने लगा। कांग्रेस के पास को ठोस चेहरा नहीं, जिसको मुख्यमंत्री की दौड़ में खड़ा किया जाए। ऐसे स्थिति कांग्रेस की गुजरात के अंदर ही नहीं, बल्कि केंद्र में भी ऐसी स्थिति है, भाजपा के कई नेताओं ने भले ही देर से मोदी के लिए पीएम का रास्ता साफ कर दिया, मगर कांग्रेस ने राहुल गांधी या किसी और पर ठप्पा लगाने की बात से पल्लू झाड़ते हुए कहा, पीएम पद के लिए उम्मीदवार घोषित करना कांग्रेस की नीति नहीं।
मान सकते हैं कि अभी लोक सभा के चुनावों में वक्त है, मगर गुजरात विधान सभा के चुनावों तो सिर पर हैं, ऐसे में जनता जानना चाहेगी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आएगी तो राज्य की बागडोर किसके हाथ में होगी। इस बात से जनता ही नहीं, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी खासे नाराज हैं। कांग्रेसी नेता एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन ने कांग्रेस से गत मंगलवार को रिश्ता तोड़ लिया, जबकि उन्होंने कांग्रेस के आला अधिकारियों को जगाने के लिए कुछ दिन पहले असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं की मीटिंग बुलाई थी, मगर जब कांग्रेस की नींद नहीं टूटी तो नरहरि ने कांग्रेस से नाता तोड़ते हुए अपने पदों से अस्तीफा दे दिया।
इतना ही नहीं, दक्षिण गुजरात से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं बारडोली से निवर्तमान विधायक कुंवरजी हठ्ठपति ने कांग्रेस का पल्लू छोड़ते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। इससे कुछ दिन पहले कांग्रेस से असंतुष्ट गांधीनगर के महापौर महेंद्रसिंह राणा दो पार्षदों समेत भाजपा में शामिल हो गए। गौर तलब है कि अप्रैल 2011 में हुए गांधीनगर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने 18 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा के खाते में 15 सीटें ही आ पाई थीं। अब कांग्रेस के पास 15 और भाजपा के खाते में 18 सीट है और परिषद पर भाजपा काबिज हो गई है।
मान सकते हैं कि अभी लोक सभा के चुनावों में वक्त है, मगर गुजरात विधान सभा के चुनावों तो सिर पर हैं, ऐसे में जनता जानना चाहेगी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आएगी तो राज्य की बागडोर किसके हाथ में होगी। इस बात से जनता ही नहीं, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी खासे नाराज हैं। कांग्रेसी नेता एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन ने कांग्रेस से गत मंगलवार को रिश्ता तोड़ लिया, जबकि उन्होंने कांग्रेस के आला अधिकारियों को जगाने के लिए कुछ दिन पहले असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं की मीटिंग बुलाई थी, मगर जब कांग्रेस की नींद नहीं टूटी तो नरहरि ने कांग्रेस से नाता तोड़ते हुए अपने पदों से अस्तीफा दे दिया।
इतना ही नहीं, दक्षिण गुजरात से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं बारडोली से निवर्तमान विधायक कुंवरजी हठ्ठपति ने कांग्रेस का पल्लू छोड़ते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। इससे कुछ दिन पहले कांग्रेस से असंतुष्ट गांधीनगर के महापौर महेंद्रसिंह राणा दो पार्षदों समेत भाजपा में शामिल हो गए। गौर तलब है कि अप्रैल 2011 में हुए गांधीनगर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने 18 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा के खाते में 15 सीटें ही आ पाई थीं। अब कांग्रेस के पास 15 और भाजपा के खाते में 18 सीट है और परिषद पर भाजपा काबिज हो गई है।
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