लफ्जों की धूल-6
लेखक कुलवंत हैप्पी (1) जिन्दगी सफर है दोस्तो, रेस नहीं, रिश्ता मुश्किल टिके, अगर बेस नहीं, वो दिल ही क्या हैप्पी जहाँ ग्रेस नहीं, (2) कभी नहीं किया नाराज जमाने को, फिर भी मुझसे एतराज जमाने को, जब भी भटकेगा रास्ते से हैप्पी, मैं ही दूँगा आवाज जमाने को (3) क्या रिश्ता है उस और मुझ में जो दूर से रूठकर दिखाता है मेरे चेहरे पर हँसी लाने के लिए वो बेवजह भी मुस्कराता है चेहरे तो और भी हैं हैप्पी, मगर ध्यान उसी पर क्यों जाता है (4) कभी कभी श्रृंगार, कभी कभी सादगी भी अच्छी है कभी मान देना, तो कभी नजरंदाजगी भी अच्छी है जैसे हर रिश्ते में थोड़ी थोड़ी नाराजगी भी अच्छी है (5) जरूरी नहीं कि मेरे हर ख़त का जवाब आए वो किताब ले जाए, और उसमें गुलाब आए बस तमन्ना इतनी सी है हैप्पी रुखस्त हूँ जब मैं, उस आँख में आब आए *आब-पानी (6) हाथ मिलाते हैं हैप्पी रुतबा देखकर, दिल मिलाने की रिवायत नहीं तेरे शहर में इसलिए खुदा की इनायत नहीं तेरे शहर में *रिवायत-रिवाज