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यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!

गुजरात विधान चुनाव के पहले चरण के मतदान में गिनती के 9 दिन बचे हैं। दूसरे चरण के मतदान के लिए 14 दिन, भले ही 3 साल बीतने के बाद भी देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी विकास की मुंह दिखाई न कर सके हों, लेकिन, 18 दिसंबर 2017 को 'गुजरात का किंग कौन' के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा, जिसको लेकर इस समय गुजरात में राजनीतिक पारा अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है। हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में संबोधित करते हुए कहा था कि 151 गिन लो। यह वो ही आंकड़ा है, जो सोमनाथ में इस साल के आरंभ में आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ था, बस फर्क इतना है​ कि उस समय केवल 150 से अधिक सीटों का संकल्प कहा गया था। लेकिन, आज से कुछ महीने पहले, जब जीएसटी लागू नहीं हुआ था, तब एक बड़े पद की जिम्मेदारी संभाल रहे भाजपा नेता से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर बात की थी, और पूछा था कि इस बार गुजरात चुनाव में जनता का रूझान क्या है? उनका कहना था कि 80 सीट तो हाथ में हैं। उनका मतलब साफ था कि 119 सीटों के साथ सत्ता में बैठी भाजपा के लिए डगर आसान नहीं है। संसदीय समिति के सामने पेश

Black Money - काला धन, मोदी सरकार और इंद्र की अप्सराएं

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Publish In Swarn AaBha भारत की जनता को लुभावना किसी बच्चे से अधिक मुश्किल नहीं और यह बात भारतीय नेताओं एवं विज्ञापन कंपनियों से बेहतर कौन जान सकता है। इस बात में संदेह नहीं होना चाहिए कि वर्ष २०१४ में हुए देश के सबसे चर्चित लोक सभा चुनाव लुभावने वायदों एवं मैगा बजट प्रचार के बल पर लड़े गए। इस प्रचार के दौरान खूबसूरत प्रलोभनों का जाल बुना गया, जो समय के साथ साथ खुलता नजर आ रहा है। देश में सत्ता विरोधी माहौल था। प्रचार के दम पर देश में सरकार विरोधी लहर को बल दिया गया। प्रचार का शोरगुल इतना ऊंचा था कि धीमे आवाज में बोला जाने वाला सत्य केवल खुसर फुसर बनकर रहने लगा। जनता मुंगेरी लाल की तरह सपने देखने लगी एवं विश्वास की नींद गहरी होती चली गई कि अब तर्क की कोई जगह न बची। जो ऊंचे स्वर बार बार दोहराया गया, वो ही सत्य मालूम आने लगा। इस देश की जनता को पैसे की भाषा समझ आती है और विपक्षी पार्टी ने इसी बात को बड़े ऊंचे सुर में दोहराया, जो जनता को पसंद भी आ गया। नौ जनवरी को यूट्यूब पर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण को अपलोड किया गया था, जिसमें उन्होंने तत्कालीन सरकार पर धावा बोल

मीडिया कवरेज़ पर उठ रहे सवाल

हमारे प्रधानमन्त्री जी अमेरिका दौरे पर है। आइये कुछ सच्चाइयों से अवगत कराये। भारतीय मीडिया 1. नरेंद्र मोदी जी का भव्य स्वागत किया गया। * जब कि स्वागत के समय मात्र भारतीय मूल के पांच अफसर और एक अमेरिकन प्रोटोकॉल उपस्थित थे। 2. नरेंद्र मोदी जी के लिए कढ़ी सुरक्षा व्यवस्था। * जब कि एयरपोर्ट से होटल तक मोदी जी अपनी गाडी से अमेरिकन सुरक्षा व्यवस्था के बिना ही गए। कोई भी अमेरिकन पुलिस की मोटर साइकिल नहीं थी। 3. मोदी जी का अमेरिकन वासियो ने आथित्य स्वागत किया। * जब की अमेरिका दौरे का पूरा खर्च भारत ने किया। उनके ठहरने तक का खर्चा भारतीय दूतावास ने उठाया। 4. आइये देखे वहाँ के लोग और वहाँ के अखबार क्या कहते है। * न्यू यॉर्क टाइम्स में उनके आने का उल्लेख तक नहीं है। 2002 के दंगो के कारण वहा की कोर्ट द्वारा सम्मन दिए जाने का विवरण है। * वाशिंगटन पोस्ट ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए लिखा है - "India’s Modi begins rock star-like U.S. tour" , यानि हमारे प्रधानमंत्री की तुलना वहाँ के नाचने - गाने वालों से की है। * वाशिंगटन पोस्ट ने यह भी लिखा है की भारत के प्रधानमंत्री के अमेरि

प्रियंका की चुप्‍पी पर अटका कांग्रेस का अधिग्रहण

16वीं लोक सभा के चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी को मिले जोरदार जनादेश के बाद राजनीति पार्टियों में उठ पटक का दौर जारी है। इस बार के चुनावों ने राजनीतिक परिदृश्‍य को बदलकर रख दिया, लेकिन ताजुब की बात है कि आज भी राजनीतिक पार्टियां उस जद हैं, जिसके कारण हारी थी। इस जनादेश में अगर सबसे बड़ा झटका किसी पार्टी को लगा है, वो है कांग्रेस। देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को विपक्ष में बैठने के लिए भी गठनबंधन की जरूरत होगी। जब देश की सबसे बड़ी एवं लम्‍बे समय तक शासन करने वाली पार्टी की यह दुर्दशा हो जाए तो पार्टी के भीतर से विरोधी सुर उठने तो लाजमी हैं। जो नेता चुनावों से पहले दबी जुबान में बोलते थे, आज वो सार्वजनिक रूप से अपना दर्द प्रकट कर रहे हैं। और दिलचस्‍प बात तो यह है कि विरोधी सुर उनके खिलाफ हैं, जिनके इस्‍तीफे को पार्टी हाईकमान ने स्‍वीकार करने मना कर दिया। कल जिसके नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा जा रहा था, आज उसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। बड़ी की शर्मनाक हार के बाद ऐसा होना था। लेकिन इन्‍हीं आवाजों में एक आवाज परिवार सदस्‍य प्रियंका गांधी के पक्ष में

Publicly Letter : गृहमंत्री ​सुशील कुमार शिंदे के नाम

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नमस्कार, सुशील कुमार शिंदे। खुश होने की जरूरत नहीं। इसमें कोई भावना नहीं है, यह तो खाली संवाद शुरू करने का तरीका है, खासकर आप जैसे अनेतायों के लिए। नेता की परिभाषा भी आपको बतानी पड़ेगी, क्यूंकि जिसको सोशल एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया के शब्दिक ​अ​र्थ न पता हों, उसको अनेता शब्द भी समझ में आना थोड़ा सा क​ठिन लगता है। नेता का इंग्लिश अर्थ लीडर होता है, जो लीड करता है। हम उसको अगुआ भी कहते हैं, मतलब जो सबसे आगे हो, उसके पीछे पूरी भीड़ चलती है।   अब आप के बयान पर आते हैं, जिसमें आप ने कहा कुचल देंगे। इसके आगे सोशल मीडिया आए या इलेक्ट्रोनिक मीडिया। कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्यूंकि कुचल देंगे तानाशाही का प्रतीक है या किसी को डराने का। आपके समकालीन अनेता सलमान खुर्शीद ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को नंपुसक कहा, क्यूंकि वो दंगों के दौरान शायद कथित तौर पर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाए, लेकिन जब मुम्बई पर हमला हुआ था, तब आपके कुचल देंगे वाले शब्द किस शब्दकोश में पड़े धूल चाट रहे थे, तब कहां थे सलमान खुर्शीद जो आज नरेंद्र मोदी को नपुंसक कह रहे हैं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया को तो शायद आप पैस

एक ख़त आम आदमी पार्टी के नाम

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नमस्कार। सबसे पहले आप को बधाई शानदार शुरूआत के लिए। कल जब रविवार को न्यूज चैनलों की स्क्रीनें, क्रिकेट मैच के लाइव स्कोर बोर्ड जैसी थी, तो मजा आ रहा था, खासकर दिल्ली को लेकर, दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो रहा था, तो भाजपा के साथ आप आगे बढ़ रहे थे, लेकिन दिलचस्प बात तो यह थी कि चुनावों से कुछ दिन पहले राजनीति में सक्रिय हुई पार्टी बाजी मारने में सफल रही,हालांकि आंकड़ों की बात करें तो भाजपा शीर्ष है, मगर बात आप के बिना बनने वाली नहीं है। यह बात तो आपको भी पता थी कि कुछ समीकरण तो बिगड़ने वाला है, मगर आप ने इतने बड़े फेरबदल की उम्मीद नहीं की थी। अगर आपको थोड़ी सी भी भनक होती तो यकीनन सूरत ए हाल कुछ और होता। आप प्रेस के सामने आए, बहुत भावुक थे, होना भी चाहिए, ऐसा क्षण तो बहुत कम बार नसीब होता है। अब आप को अपने कार्यालय के बाहर एक शेयर लिखकर रखना चाहिए, मशहूर हो गया हूं तो जाहिर है दोस्तो, अब कुछ इलजाम मेरे स​र भी आएंगे जो गुरबत में अक्सर नजर चुराते थे, अब देने बधाई मेरे घर भी आएंगे मगर अब आप विपक्ष में बैठने की बात कर रही है, जो सही नहीं। नतीजे आप ने बदले हैं, मुख्यमंत्री को

fact 'n' fiction : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जगह लेंगे एलके आडवाणी

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यह फाइल फोटो है, जो गूगल सर्च के जरिये प्राप्‍त हुई। भारतीय जनता पार्टी द्वारा हाशिये पर धकेल दिए गए नेता एलके आडवाणी बहुत जल्‍द संप्रग सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जगह लेंगे, हालांकि इस मामले में आधिकारिक मोहर लगना अभी बाकी है। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदीमय हुई भारतीय जनता पार्टी द्वारा दरकिनार कर दिए गए नेता एलके आडवाणी की ओर से अधिवक्‍ता फेकु राम भरोसे ने संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए मांग की है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शेष बचे हुए कार्यकाल का पूरा जिम्‍मा देश के सशक्‍त व सीनियर नेता एलके आडवाणी को सौंपा जाये, ताकि आजाद भारत के नागरिकों राजनीति पर भरोसा बना रहे। वरना, उनको लगेगा कि यहां पर करियर नाम की कोई चीज नहीं है। राजनीति में सपने देखने वाले बर्बाद हो जाते हैं। अगर ऐसी धारणा एक बार बन गई तो आपका सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्‍मन नरेंद्र मोदी जीत जायेगा, जिसने पिछले दिनों कहा था कि सपने देखने वाले बर्बाद हो जाते हैं। सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि याचिकाकर्ता के वकील ने संप्रग अदालत के सामने दलील पेश

सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को 'पत्र' लिखा

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सोनिया गांधी, संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन ने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा, लेकिन यह कोई प्रेम पत्र नहीं था। यह पत्र आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्‍ति नागपाल के निलम्‍बन को लेकर लिखा गया, इस पत्र में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह से आग्रह किया, 'सरकार आईएएस अधिकारी के साथ किसी तरह की नइंसाफी न होने दे, और सरकार ने अब तक इस मामले में क्‍या काईवाई की उसकी जानकारी मांगी।' जब सोनिया गांधी के पत्र की ख़बर सामने आई तो दिमाग का चक्‍का घूमा। खयाल आया कि आजकल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच पति पत्‍नि वाला मनमुटाव हो गया क्‍या ? जैसे टीवी सीरियलों में होता है, जब पति पत्‍नि में अनबन हो जाती है तो टि्वटर नमूना पर्चियों का सहारा लेते हैं एक दूसरे को अपनी बात कहने के लिए, वैसे तो साधारण परिस्‍थितियों में रिमोट होम मिनिस्‍टर के हाथ में ही होता है, होम मिनिस्‍टर कहने भर से काम चल जाएगा, मुझे यकीन है। सोनिया गांधी, जिन पर अक्‍सर आरोप लगता है कि संप्रग सरकार को मनमोहन सिंह नहीं, स्‍वयं सोनिया गांधी चलाती हैं, शायद वैसे ही जैसे बड़े बड़े अधिकारी कार की पिछली सी

दिल्‍ली अभी दूर है 'नरेंद्र भाई'

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भले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आज देशभर में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर लोकप्रियता की सभी हदें पार कर चुका है, लेकिन इसको आगामी लोक सभा चुनावों के लिए सफलता की गारंटी कदापि नहीं माना जा सकता। आंकड़ों की धरातल को सही से देखे बिना भले ही भाजपा या उसके समर्थक सत्ता पर बैठने का ख्वाब संजो रहे हों, क्योंकि आंकड़े वैसे नहीं, जैसे भाजपा सोच रही है, आंकड़े विपरित हैं, खासकर भाजपा की सोच से। हां, अगर कोई करिश्मा हुआ तो जरूर भाजपा को २०१४ में सत्ता का स्वाद चखने का मौका मिल सकता है। वैसे ज्यादातर उम्मीद करना बेईमानी होगी, क्यूंकि आज स्थितियां १९९८ या १९९९ वाली नहीं हैं, जब भाजपा अन्य सहयोगी पार्टियों की सहायता से सिंहासन पर बैठी थी। अटलबिहारी वाजपेई जैसा एक सशक्त और दूरदर्शी सोच का व्यक्ति भाजपा का अगुवाई कर रहा था। अब भाजपा नरेंद्र मोदी के जरिए उस इतिहास को दुहराना चाहती है। मगर नरेंद्र मोदी को पार्टी के शीर्ष नेता व अन्य भाजपा के मुख्यमंत्री तक नहीं सहज से ले पा रहे तो जनता से कैसी उम्मीद की जा सकती है, खासकर उस समुदाय से, जो नरेंद्र मोदी को आज भी मन ही मन में मुस्लिम समुदाय

देना ‘बब्‍बर थाली’, वो ’12′ वाली

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मुम्‍बई के बाहरी रेलवे स्‍टेशनों पर ट्रेनों को आगे बढ़ने से रोक दिया गया है, और साथ में कुछ उड़ानों को उतरने पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा मुम्‍बई के बॉर्डर को पूरी तरह सील कर दिया गया, ताकि अन्‍य क्षेत्र के लोग मुम्‍बईया सीमा के भीतर घुस न सकें, खासकर तब तक जब तक स्‍थिति सामान्‍य न हो जाए। स्‍थिति उस समय तनावपूर्ण हो गई, जब देश के एक राजनेता के एक बयान के बाद हर कोई ‘बब्‍बर थाली’ की  तलाश में मुम्‍बई की तरफ निकल पड़ा। मुम्‍बई के होटलों के बाहर हाउसफुल के बोर्ड लटकते हुए देखे गए। कहीं कहीं तो बब्‍बर थाली के लिए लोगों में हिंसक झड़प के समाचार भी मिले हैं। मुम्‍बई के हर होटल पर बब्‍बर थाली की मांग बढ़ रही है, हर किसी जुबान पर है ‘देना बब्‍बर थाली, वो ’12′ वाली। हालांकि ऐसी कोई थाली मुम्‍बई के जीरो स्‍टार ढाबे से लेकर फाइव स्‍टार होटल में कहीं भी नहीं उपलब्‍ध, ऐसा नहीं कि ग्राहकों की बढ़ी तादाद के कारण ऐसा हुआ, बल्‍कि ऐसी कोई थाली है ही नहीं। दरअसल इस थाली की मांग ‘राजनेता’ राज बब्‍बर के बयान के बाद बढ़ी, जिसमें उन्होंने 12 रुपये में भर पेट खाना मिलने की बात कही थी। हालांकि बाद में र

राहुल गांधी : तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला

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राहुल गांधी, युवा चेहरा। समय 2009 लोक सभा चुनाव। समय चार साल बाद । युवा कांग्रेस उपाध्‍यक्ष बना पप्‍पू। हफ्ते के पहले दिन कांग्रेस की मीडिया कनक्‍लेव। राहुल गांधी ने शुभारम्‍भ किया, नेताओं को चेताया वे पार्टी लाइन से इतर न जाएं। वे शालीनता से पेश आएं और सकारात्‍मक राजनीति करें। राहुल गांधी का इशारा साफ था। कांग्रेसी नेता अपने कारतूस हवाई फायरिंग में खत्‍म न करें। राहुल गांधी, जिनको ज्‍यादातर लोग प्रवक्‍ता नहीं मानते, लेकिन वे आज प्रवक्‍तागिरी सिखा रहे थे। दिलचस्‍प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्‍पेस रोक ली, जो मध्‍यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्‍टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्‍यूं प्रचार समिति अध्‍यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्‍या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की ध

राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और भाजपा की स्‍थिति

''राह में उनसे मुलाकात हो गई, जिससे डरते थे वो ही बात हो गई''  विजय पथ फिल्‍म का यह गीत आज भाजपा नेताओं को रहकर का याद आ रहा होगा, खासकर उनको जो नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही मत्‍थे पर शिकन ले आते हैं। देश से कोसों दूर जब न्‍यूयॉर्क में राजनाथ सिंह ने अपना मुंह खोला, तो उसकी आवाज भारतीय राजनीति के गलियारों तक अपनी गूंज का असर छोड़ गई। राजनाथ सिंह, भले ही देश से दूर बैठे हैं, लेकिन भारतीय मीडिया की निगाह उन पर बाज की तरह थी। बस इंतजार था, राजनाथ सिंह के कुछ कहने का, और जो राजनाथ सिंह ने कहा, वे यकीनन विजय पथ के गीत की लाइनों को पुन:जीवित कर देने वाला था। दरअसल, जब राजनाथ सिंह से पीएम पद की उम्‍मीदवारी के संबंधी सवाल पूछा गया तो उनका उत्तर था, मैं पीएम पद की उम्‍मीदवारी वाली रेस से बाहर हूं। मैं पार्टी अध्‍यक्ष हूं, मेरी जिम्‍मेदारी केवल भाजपा को सत्ता में बिठाने की है, जो मैं पूरी निष्‍ठा के साथ निभाउंगा। यकीनन, नरेंद्र मोदी आज सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं, अगर भाजपा सत्ता हासिल करती है तो वे पीएम पद के उम्‍मीदवार होंगे। दूर देश में बैठे राजनाथ

भाजपा का खेल, टेस्‍ट मैच के अंतिम दिन सा

क्रिकेट के मैदान पर अक्‍सर जब दो टीमें होती हैं, खेलती हैं तो यकीनन दोनों टीमें अपना बेहतर प्रदर्शन देने के लिए अपने स्‍तर पर हरसंभव कोशिश करती हैं, ताकि नतीजे उनकी तरफ पलट जाएं, लेकिन भारतीय राजनीति की पिच पर वैसा नजारा नहीं है। यहां तो केवल भारतीय जनता पार्टी, जो एनडीए की सबसे बड़ी और अगुवाईकर्ता पार्टी है, खेल रही है, पूरा ड्रामा रच रही है। अहम मुद्दों पर चर्चा कर पक्ष को हराने की बजाय उसका पूरा ध्‍यान मैच के अंदर खलन पैदा कर सुर्खियां बटोरना है, वे एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए नजर नहीं आ रही, वे केवल एक राज्‍य के विकास के दम पर राजनीति ब्रांड बना चुके चेहरे के इस्‍तेमाल पर सत्ता हथियाना चाहती है। भाजपा का रवैया केवल उस टेस्‍ट टीम सा है, जो टेस्‍ट मैच के अंतिम दिन समय बर्बाद करने के लिए हर प्रकार का हथकंड़ा अपनाती है। भाजपा ने पहला ड्रामा रचा। जब राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक गोवा में होनी थी। कुछ नेताओं ने वहां जाने से इंकार कर दिया, तो कुछ ने अनचाहे मन से वहां जाना बेहतर समझा। ख़बरों में थी भाजपा, और विरोधी टीम के इक्‍का दुक्‍का बयानबाज नेता। इस बैठक के

कांग्रेसियों का 'ब्रह्मचर्य व्रत'

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कहते हैं जो पकड़ा गया वो चोर बड़ा। जो समय रहते स्‍वीकार कर गया वो सबसे बड़ा महान, जैसे कि मोहनदास कर्म चंद गांधी। मगर अफसोस है कि अब कांग्रेसी नेताओं को स्‍वीकार करने का मौका ही नहीं मिलता या तो लड़कियां आत्‍म हत्‍या कर नेताओं को बेनकाब कर देती हैं या फिर कुछ साल बाद गलतियां पुत्रों का जन्‍म लेकर जग जाहिर हो जाती हैं। शायद महात्‍मा गांधी की परंपरा को कांग्रेसी नेता बरकरार रखने की कोशिश में लगे हुए हैं, भले दूसरी तरफ सत्‍ता में बैठी कांग्रेस महिलाओं की सुरक्षा का पूरा पूरा जिम्‍मा उठाने का भरोसा दिला रही है। कथित तौर पर कुछ महीनों से ब्रह्मचर्य का व्रत, जिससे हम बलात्‍कार भी कह सकते हैं,  कर रहे एक नेता विक्रम सिंह ब्रह्मा को क्षुब्‍ध महिलाओं ने असम में पीट डाला, और कांग्रेस को एक बार फिर शर्मिंदा होना पड़ा। शायद कांग्रेस शर्मिंदा न होती। अगर आज हमारे राष्‍ट्रपिता की तरह विक्रम सिंह ब्रहमा भी जनता के बीच आकर महिला के साथ किए अपने ब्रह्मचर्य व्रत की स्‍वीकृति करते। जैसे गांधी जी ने एक पत्र में लिखा था कि 'मुझे मालूम है कि शिविर के सभी लोग जानते हैं कि मनु मेरी खाट में साझेदारी

समाचार पत्रों में 'दिल्‍ली जनाक्रोश'

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पूरा दिन हिन्‍दी इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया ने दिल्‍ली जनाक्रोश को कवरेज दी। इस जनाक्रोश को घरों तक पहुंचाया। वहीं अगले दिन सोमवार को कुछेक हिन्‍दी समाचार पत्रों ने दिल्‍ली जनाक्रोश को सामान्‍य तरीके से लिया, जबकि कुछेक ने जनाक्रोश को पूरी तरह उभारा। भारतीय मीडिया के अलावा दिल्‍ली जनाक्रोश पर हुए पुलिस एक्‍शन को विदेश मीडिया ने भी कवरेज दिया। इंग्‍लेंड के गॉर्डियन ने अपने अंतर्राष्‍ट्रीय पृष्‍ठ पर 'वी वांट जस्‍टिस' एवं 'किल देम' जैसे शब्‍द लिखित तख्‍तियां पकड़ रोष प्रकट कर रही लड़कियों की फोटो के साथ, किस तरह पुलिस ने उनको खदेड़ने के लिए आंसू गैस एवं पानी की बौछारों का इस्‍तेमाल किया, समाचार प्रकाशित कर इंग्‍लेंड की जनता को भारतीय पुलिस रवैया से अवगत करवाया। वहीं, न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने अपने डिजीटल संस्‍कार में दिल्‍ली जनाक्रोश की ख़बर को 'रोष प्रदर्शन हिंसा में बदला' के शीर्षक तले प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट अंदर रविवार को हुए पूरे घटनाक्रम का बड़ी बारीकी से लिखा गया है। ख़बर में बताया गया कि किस तरह लोग दिल्‍ली में एकत्र हुए। किस तरह इस जनाक्रोश में राजनीतिक पार

गुजरात विस चुनाव 2012 बनाम नरेंद्र मोदी

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गुजरात विधान सभा चुनाव 2012 पर भारत की ही नहीं, बल्‍कि विश्‍व की निगाह टिकी हुई है, क्‍यूंकि नरेंद्र मोदी हैट्रिक बनाने की तरफ अग्रसर हैं, और उनका प्रचार प्रसार राष्‍ट्रपति बराक ओबामा का प्रचार कर चुकी पीआर एजेंसी के पास है, जो प्रचार पसार के लिए नए नए हथकंडे अपनाने के लिए बेहद तेज है। इतना प्रचार तो आदित्‍य चोपड़ा और आमिर ख़ान भी नहीं कर पाते, जितना प्रचार नरेंद्र मोदी का हो रहा है। अक्षय कुमार की तरह मीडिया की नजरंदाजी के बावजूद अपनी उपस्‍थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे नरेंद्र मोदी, आज सबसे ज्‍यादा चर्चित नेता हैं। आख़िर कैसे देते हैं हर बात का जवाब नरेंद्र मोदी एक दिन में सबसे ज्‍यादा प्रचार रैलियां करने वाले शायद भारत के पहले नेता होंगे, फिर भी वो हर भाषण का पलटकर जवाब दे रहे हैं। इसके पीछे एक ही कारण है कि मोदी ने अपने आस पास ऐसे लोगों का घेरा बनाया हुआ है जो मीडिया के संपर्क में हैं, कुछ मीडिया संस्‍थान तो विरोधी नेताओं द्वारा अलग अलग स्‍थानों पर दिए गए, बयानों की कॉपियां पल पल नरेंद्र मोदी तक पहुंचाते हैं, और मोदी कभी भी पटकथा तैयार कर रैली को संबोधित नहीं करते, वो कांग्रे

सुन सनकर तंग आए ''देश का अगला...........?"

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कांग्रेस, हम ने कल लोक सभा में एफडीआई बिल पारित करवा दिया। अब हम गुजरात में भी अपनी जीत का परचम लहराएंगे। मीडिया कर्मी ने बीच में बात काटते हुए पूछा, अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, अगर मध्‍याविधि चुनाव हों तो।  अगर देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह जनता से बातचीत नहीं करेगा तो, मीडिया तो ऐसे सवाल पूछता ही रहेगा।                                           नोट  पेंट की एड का पॉलिटिकल वर्जन देश के लोकतंत्र में शायद पहली बार हो रहा है कि बात बात पर एक सवाल उभरकर सामने आ जाता है ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' यह बात तब हैरानीजनक और कांग्रेस के लिए शर्मजनक लगती है जब चुनावों में एक लम्‍बा समय पड़ा हो, और बार बार वो ही सवाल पूछा जाए कि ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' जब इस मामले से जोर पकड़ा था तो देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, ''कांग्रेस जब भी कहे, मैं राहुल गांधी के लिए खुशी खुशी कुर्सी छोड़ने को तैयार हूं, मैं जब तक इस पद पर हूं, अपना दायित्‍व निभाता रहूंगा''। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले द

राजनीति में ''एफडीआई''

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भारतीय राजनीति किस तरह गंदगी हो चुकी है। इसका तारोताजा उदाहरण कल उस समय देखने को मिला, जब एफडीआई का विरोध कर रही बसपा एवं सपा, ने अचानक वोटिंग के वक्‍त बॉयकॉट कर दिया, और सरकार को एफडीआई पारित करने का मौका दे दिया, जिसे सत्‍ता अपनी जीत और विपक्ष अपनी नैतिक जीत मानता है, हैरानी की बात है कि यह पहला फिक्‍सिंग मैच है, जहां कोई खुद को पराजित नहीं मान रहा। राजनीतिज्ञों का मानना है कि एफडीआई के आने से गुणवत्‍ता वाले उत्‍पाद मिलने की ज्‍यादा संभावना है। अगर विदेशी कंपनियों की कार्यप्रणाली पर हमें इतना भरोसा है तो क्‍यूं न हम राजनीति में भी एफडीआई व्‍यवस्‍था लाएं। वैसे भी सोनिया गांधी देश में इसका आगाज तो कर चुकी हैं, भले ही वो शादी कर इस देश में प्रवेश कर पाई। मगर हैं तो विदेशी। अगर राजनीति में एफडीआई की व्‍यवस्‍था हो जाए, तो शायद हमारे देश के पास मनमोहन सिंह से भी बढ़िया प्रधान मंत्री आ जाए, राजनीति दलों को चलाने वाला उत्‍तम उत्‍पाद मतलब कोई पुरुष या महिला आ जाए। अगर राजनीति में एफडीआई का बंदोबस्‍त हो जाता है तो ऐसे में पूर्ण संभावना है कि पाकिस्‍तान के आसिफ जरदारी भी भारत में अपना व

आम आदमी का तोड़

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यह तो बहुत ही न इंसाफी है। ब्रांड हम ने बनाया, और कब्‍जा केजरीवाल एंड पार्टी करके बैठ गई। आम आदमी की बात कर रहा हूं, जिस पर केजरीवाल एंड पार्टी अपना कब्‍जा करने जा रहे हैं। गुजरात में चुनाव सिर पर हैं, कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में चीख चीख कर कह रही थी, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ। मगर आम आदमी तो केजरीवाल एंड पार्टी निकली, जिसकी कांग्रेस के साथ कहां बनती है, सार्वजनिक रूप में, अंदर की बात नहीं कह रहा। अटकलें हैं कि कांग्रेस बहुत शीघ्र अपने प्रचार स्‍लोगन को बदलेगी। मगर आम आदमी का तोड़ क्‍या है? वैसे क्रिएटिव लोगों के पास दिमाग बहुत होता है, और नेताओं के पास पैसा। यह दोनों मिलकर कोई तोड़ निकालेंगे, कि आखिर आम आदमी को दूसरे किस नाम से पुकार जाए। वैसे आज से कुछ साल पूर्व रिलीज हुई लव आजकल में एक नाम सुनने को मिला था, मैंगो पीप्‍पल। अगर आम आदमी मैंगो पीप्‍पल बन भी जाता है तो क्‍या फर्क पड़ता है। पिछले दिनों एक टीवी चैनल का नाम बदल गया था। हुआ क्‍या, हर जगह एक ही बात लिखी मिली, सिर्फ नाम बदला है। वैसा ही सरकार का रवैया रहने वाला है आम आदमी के प्रति। आम आदमी की बात सब करते हैं

खुर्शीद और कांग्रेसी ता ता थैय्या

वाकई, अब तो यकीन हो गया है कि कांग्रेस महासचिव दि‍ग्विजय सिंह की दिमागी हालत ठीक नहीं है. उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने की दरकार है. वे कहते हैं कि सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी ने शालीनता से  सारे सवालों का जवाब दे दिया है ऐसे में खुर्शीद के खिलाफ कुछ करने को बचता ही नहीं है. गलत केजरीवाल हैं खुर्शीद नहीं. (लाल रंग के शब्दों पर ख़ास ध्यान दें.) इसी को कहते हैं, पहले चोरी फिर सीना ज़ोरी. चोरों को यह ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि अब माना बदल गया है. अब 'सीसीटीवी कैमरा' है, जो चोर को पकड़वाने में बड़ा मददगार है. पर... चोर हैं कि पुराने ढर्रे पर चोरी किए चले जा रहे हैं. सिनेमा भी नहीं देखते. धूम और धूम 2 देखी होती तो चोरी का कोई नया तरीका इज़ाद करते. खैर.. हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है. इसमें कहा गया है कि डॉ. ज़ाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट ने ऐसे गांवों में भी कैंप लगा दिए जो वास्तव में हैं ही नहीं. वाह क्या बात है. यहां दो संभावनाएं नज़र आती हैं - एक संभावना यह है कि वे गांव हैं और भारत सरकार अभी तक उन तक पहुंच नहीं पाई है, उन्हें पहचान नहीं पाई है. हो सकता है कि सल