समाचार पत्रों में 'दिल्ली जनाक्रोश'
पूरा दिन हिन्दी इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने दिल्ली जनाक्रोश को कवरेज दी। इस जनाक्रोश को घरों तक पहुंचाया। वहीं अगले दिन सोमवार को कुछेक हिन्दी समाचार पत्रों ने दिल्ली जनाक्रोश को सामान्य तरीके से लिया, जबकि कुछेक ने जनाक्रोश को पूरी तरह उभारा। भारतीय मीडिया के अलावा दिल्ली जनाक्रोश पर हुए पुलिस एक्शन को विदेश मीडिया ने भी कवरेज दिया।
इंग्लेंड के गॉर्डियन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठ पर 'वी वांट जस्टिस' एवं 'किल देम' जैसे शब्द लिखित तख्तियां पकड़ रोष प्रकट कर रही लड़कियों की फोटो के साथ, किस तरह पुलिस ने उनको खदेड़ने के लिए आंसू गैस एवं पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया, समाचार प्रकाशित कर इंग्लेंड की जनता को भारतीय पुलिस रवैया से अवगत करवाया।
वहीं, न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने डिजीटल संस्कार में दिल्ली जनाक्रोश की ख़बर को 'रोष प्रदर्शन हिंसा में बदला' के शीर्षक तले प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट अंदर रविवार को हुए पूरे घटनाक्रम का बड़ी बारीकी से लिखा गया है। ख़बर में बताया गया कि किस तरह लोग दिल्ली में एकत्र हुए। किस तरह इस जनाक्रोश में राजनीतिक पार्टियों ने घुसना शुरू किया एवं किस तरह शक्ति बल के जरिए इस प्रदर्शन को दबाने की कोशिश की गई। उन्होंने पुलिस के प्रति रोष प्रकट करते हुए कुछ प्रदर्शनकारियों की बातों को भी विशेषता से प्रकाशित गया, जैसे के पुलिस से जनता का सवाल करना, आप जहां क्यूं नहीं आए, हमारे साथ क्यूं नहीं खड़े हुए एवं जो हुआ क्या आप से गुस्साए नहीं।
पाकिस्तान द डॉन तो निरंतर दिल्ली घटनाक्रम को प्रकाशित कर रहा है। कल बाद दोपहर से द डॉन ने इस ख़बर को अपने होमपेज पर नम्बर तीन पर रखा, जबकि मुख्य लीड में पाकिस्तान नेता की ख़बर थी, जिनकी एक बम्ब धमाके में मौत हो गई, जिनको कल पूरे रीति रिवाजों के साथ खाके सुपुर्द किया गया।
अगर भारतीय समाचार पत्रों की बात करें तो अमर उजाला ने सचिन की ख़बर को प्रमुखता से लिया, लेकिन अख़बार के पहले तीन कॉलम दिल्ली जनाक्रोश को दिए। वहीं राजस्थान पत्रिका ने सचिन की ख़बर को नम्बर दो पर रखते हुए दिल्ली जनाक्रोश की ख़बर को 'छावनी बना इंडिया गेट' शीर्षक के तले प्रमुखता से प्रकाशित किया।
कड़के की ठंड में उबलती रही दिल्ली के शीर्षक तले दैनिक जागरण ने इस घटनाक्रम से जुड़ी तमाम ख़बरों को प्रकाशित किया एवं अंत बॉटम में 'क्रिकेट के भगवान ने किया एकदिवसीय का परित्याग' से सचिन तेंदुलकर को भी स्पेस दिया।
वहीं, दैनिक हिन्दुस्तान ने एक भावुक करती छवि के साथ 'डंडे बरसे, बिगड़े हालत' ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
अंत मीडिया कवरेज पर राज्य सभा चैनल पर मीडिया मंथन में कई तरह के सवाल उठाए गए। इसमें कहा गया कि मीडिया ने जनाक्रोश को भड़काने का प्रयास किया। मीडिया भी कहीं न कहीं इस गुस्से की लय में बह गया। अंत कोई कुछ भी कहे। देश की सरकार को इस झटके की जरूरत थी। इस मीडिया ने जो जनाक्रोश को कवरेज दिया, वो काफी सराहनीय थे, वरना दिल्ली की क्ररूरता जो कैमरों के सामने भी कम न हुई, वो कैमरों से परे कितना कहर बरपाती, इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।
चलते चलते इतना कहूंगा। हमारी इज्जत गई, अब तो शर्म करो दिल्ली के हुक्मरानों।
इंग्लेंड के गॉर्डियन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठ पर 'वी वांट जस्टिस' एवं 'किल देम' जैसे शब्द लिखित तख्तियां पकड़ रोष प्रकट कर रही लड़कियों की फोटो के साथ, किस तरह पुलिस ने उनको खदेड़ने के लिए आंसू गैस एवं पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया, समाचार प्रकाशित कर इंग्लेंड की जनता को भारतीय पुलिस रवैया से अवगत करवाया।
वहीं, न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने डिजीटल संस्कार में दिल्ली जनाक्रोश की ख़बर को 'रोष प्रदर्शन हिंसा में बदला' के शीर्षक तले प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट अंदर रविवार को हुए पूरे घटनाक्रम का बड़ी बारीकी से लिखा गया है। ख़बर में बताया गया कि किस तरह लोग दिल्ली में एकत्र हुए। किस तरह इस जनाक्रोश में राजनीतिक पार्टियों ने घुसना शुरू किया एवं किस तरह शक्ति बल के जरिए इस प्रदर्शन को दबाने की कोशिश की गई। उन्होंने पुलिस के प्रति रोष प्रकट करते हुए कुछ प्रदर्शनकारियों की बातों को भी विशेषता से प्रकाशित गया, जैसे के पुलिस से जनता का सवाल करना, आप जहां क्यूं नहीं आए, हमारे साथ क्यूं नहीं खड़े हुए एवं जो हुआ क्या आप से गुस्साए नहीं।
पाकिस्तान द डॉन तो निरंतर दिल्ली घटनाक्रम को प्रकाशित कर रहा है। कल बाद दोपहर से द डॉन ने इस ख़बर को अपने होमपेज पर नम्बर तीन पर रखा, जबकि मुख्य लीड में पाकिस्तान नेता की ख़बर थी, जिनकी एक बम्ब धमाके में मौत हो गई, जिनको कल पूरे रीति रिवाजों के साथ खाके सुपुर्द किया गया।
अगर भारतीय समाचार पत्रों की बात करें तो अमर उजाला ने सचिन की ख़बर को प्रमुखता से लिया, लेकिन अख़बार के पहले तीन कॉलम दिल्ली जनाक्रोश को दिए। वहीं राजस्थान पत्रिका ने सचिन की ख़बर को नम्बर दो पर रखते हुए दिल्ली जनाक्रोश की ख़बर को 'छावनी बना इंडिया गेट' शीर्षक के तले प्रमुखता से प्रकाशित किया।
कड़के की ठंड में उबलती रही दिल्ली के शीर्षक तले दैनिक जागरण ने इस घटनाक्रम से जुड़ी तमाम ख़बरों को प्रकाशित किया एवं अंत बॉटम में 'क्रिकेट के भगवान ने किया एकदिवसीय का परित्याग' से सचिन तेंदुलकर को भी स्पेस दिया।
वहीं, दैनिक हिन्दुस्तान ने एक भावुक करती छवि के साथ 'डंडे बरसे, बिगड़े हालत' ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
अंत मीडिया कवरेज पर राज्य सभा चैनल पर मीडिया मंथन में कई तरह के सवाल उठाए गए। इसमें कहा गया कि मीडिया ने जनाक्रोश को भड़काने का प्रयास किया। मीडिया भी कहीं न कहीं इस गुस्से की लय में बह गया। अंत कोई कुछ भी कहे। देश की सरकार को इस झटके की जरूरत थी। इस मीडिया ने जो जनाक्रोश को कवरेज दिया, वो काफी सराहनीय थे, वरना दिल्ली की क्ररूरता जो कैमरों के सामने भी कम न हुई, वो कैमरों से परे कितना कहर बरपाती, इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।
चलते चलते इतना कहूंगा। हमारी इज्जत गई, अब तो शर्म करो दिल्ली के हुक्मरानों।
इस बार मीडिया ने सच मे सराहनीय कार्य किया और जो आज का युवा जागृत हुआ है वो क्रांति की दिशा मे पहला कदम है।
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