कहीं विलेन न बन जाएं

बरिया की नई नई नौकरी लगी थी। बरिया बेहद मेहनती युवा था। काम के प्रति इतना ईमानदार कि पूछो मत, लेकिन बरिया जहां नौकरी करता था, वहां कुछ कम चोर भी थे। बरिया साधारण युवा नहीं जानता था कि जमाना बदल चुका है। मक्खनबाजों का जमाना है। काम वालों की भी जरूरत है, क्यूंकि घोड़ों की भीड़ में गधे भी चलते हैं। बरिया सबसे अधिक काम करता। वो हर रोज अपने हमरुतबाओं से अधिक वर्क काम करता, जैसे गधा कुम्हार के लिए। मगर कुछ दिनों बाद बरिया निराश रहने लगा। उसको लगा, उसके साथी सारा दिन गपशप मारते हैं, वो कार्य करता है, लेकिन उसका बॉस उसको उतना ही मानता है, जितना के उसके हमरुतबाओं को। बरिया उदास परेशान कई दिनों तक तो रहा, लेकिन अब उसके भीतर बैठा इंसान सब्र खोने लगा। वो कुछ भी बर्दाशत करने को तैयार नहीं था। वो अगले दिन बॉस के टेबल पर पहुंचा। उसने अपने हमरुतबाओं के कार्यशैली की भरपूर निंदा की, जो उसका बॉस अच्छी तरह पहले से जानता था। बॉस भी मन ही मन में सोच रहा था, अगर वो काम करने लायक होते तो तेरी जरूरत किसे थी। बॉस ने ध्यान से शिकायत को सुना। इस दिन के बाद बरिया को शिकायतों की लत लग गई। छोटी छोटी बातों पर...