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आधे पौने घंटे की फिल्‍म वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा

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वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा। यह 2010 में आई सुपरहिट फिल्‍म वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई का स्‍किवल है। इसका नाम पहले वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई अगेन था, लेकिन कहीं हिन्‍दी बुरा न मान जाए, इसलिए एक हिन्‍दी शब्‍द दोबारा का इस्‍तेमाल किया गया। एकता कपूर टूने टोटकों में विश्‍वास करती है, कहीं न कहीं यह बात उनके फिल्‍म टाइटल में नजर आई है, हर बार एक अलग अक्षर, जैसे इसमें ए के साथ छोटी सी वाय का इस्‍तेमाल किया गया है। रजत अरोड़ा की पटकथा और मिलन लथुरिया का निर्देशन, एकता कपूर का पैसा वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा। फिल्‍म की कहानी दाऊद इब्राहिम पर आधारित है, लेकिन बॉलीवुड स्‍वीकार करने से डरता रहता है। फिल्‍म में फेरबदल हुए थे, शायद उस दौरान क्रिकेट वाला सीन रिशूट कर डाला गया होगा, जो फिल्‍म की शुरूआत को कमजोर बनाता है। दाऊद इब्राहिम मुम्‍बई का बेताज बादशाह बने रहना चाहता है, जो शोएब  नाम से रुपहले पर्दे पर उतारा गया है। शोएब दाऊद की तरह एक पुलिस कर्मचारी का पुत्र, हाजी मस्‍तान के बाद मुम्‍बई का अगला डॉन, डोंगरी से संबंध रखता है। शोएब मुम्‍बई में सिर उठा रहे अपने एक दुश

पांच सितारा फिल्‍म, विधा की रहस्‍यमयी कहानी

फिल्‍में तीन चीजों से चलती है, वो तीन चीजें हैं इंटरटेन्‍मेंट इंटरटेन्‍मेंट इंटरटेन्‍मेंट, भले विधा बालन ने इस संवाद को एकता कपूर की छत्र छाया में बनी फिल्‍म द डर्टी पिक्‍चर में कहा हो, लेकिन असल में विधा भी जानती है कि फिल्‍म में तीन चीजों से चलती हैं, बोले तो शॉलिड कहानी, मजबूत निर्देशन एवं जर्बदस्‍त अभिनय, और विधा की कहानी में तीनों चीजें एक से बढ़कर एक हैं। नीरज पांडे की ए वेडनेसडे फिल्‍म की तरह, कहानी का अंतिम पड़ाव दर्शकों को यह बात भुला देता है कि वह कुछ पलों बाद सिनेमा हाल छोड़ने वाले हैं। निर्देशक संजोय घोष फिल्‍म बनाते समय किसी कदर अपने काम में डूबे होंगे, फिल्‍म की कसावट देखने के बाद कोई भी व्‍यक्‍ित बड़ी आसानी से समझ सकता है। उन्‍होंने निर्देशन में, और विधा एवं अन्‍य अभिनेताओं ने अभिनय ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। श्री घोष कहीं भी जल्‍दबाजी करते हुए नजर नहीं आते, बल्‍कि वह धीरे धीरे कदम दर कदम फिल्‍म को आगे बढ़ाते हुए अंत को इतना यादगार बनाते हैं कि दर्शक सिनेमा हाल से बाहर निकालते हुए तारीफ करने से चूक नहीं सकते, उन्‍होंने फिल्‍म को एक रहस्‍यमयी नॉबेल की तरफ ही बना

कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'

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टायटैनिक जैसी एक यादगार एवं उम्दा फिल्म बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरॉन उम्र के लिहाज से बुजुर्ग होते जा रहे हैं, लेकिन उनकी सोच कितनी गहरी होती जा रही है। इस बात का पुख्ता सबूत है 'अवतार'। करोड़ रुपयों की लागत से बनी 'अवतार' एक अद्भुत फिल्म ही नहीं, बल्कि एक अद्भुत दुनिया, शायद जिसमें हम सब जाकर रहना भी पसंद करेंगे। फिल्म की कहानी का आधारित पृथ्वी के लालची लोगों और पेंडोरा गृह पर बसते सृष्टि से प्यार करने वाले लोगों के बीच की जंग है। पृथ्वी के लोग पृथ्वी के कई हजार मीलों दूर स्थित पेंडोरा गृह के उस पत्थर को हासिल करना चाहते हैं, जिसके छोटे से टुकड़े की कीमत करोड़ रुपए है, लेकिन उनकी निगाह में वहां बसने वाले लोगों की कीमत शून्य के बराबर है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए अवतार प्रोग्रोम बनाया जाता है। इस प्रोग्रोम के तहत पृथ्वी के कुछ लोगों की आत्माओं को पेंडोरा गृहवासियों नमुना शरीरों में प्रवेश करवाया जाता है। वो पेंडोरा गृहवासी बनकर ही पेंडोरा गृहवासियों के बीच जाते हैं, ताकि उन लोगों को समझा बुझाकर कहीं और भेजा जाए एवं पृथ्वी के लोग अपने मकसद में पूरे हो सकें। उसकी म

रणभूमि की चलत-तस्वीर 'सेविंग प्राइवेट रेयान'

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जज्बा किस चिड़िया का नाम है? युद्ध किसे कहते हैं? देश के लिए लड़ने वालों की स्थिति मैदान जंग में कैसी होती है? युद्ध के समय वहां पर क्या क्या घटित होता है? युद्ध सेनाओं से नहीं, हौंसलों से भी जीता जा सकता है। कुछ तरह की स्थिति को बयां करती है 1998 में प्रदर्शित हुई 'सेविंग प्राइवेट रेयान'। फिल्म की कहानी शुरू होती है ओमाहा बीच जर्मनी से, जहां जर्मन फौजें और अमेरिकन फौजें आपस में युद्ध कर रही होती हैं। ओमाहा बीच पर उतरी अमेरिकन फौज की टुकड़ी की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है, पूरी टुकड़ी हमलावरों के निशाने में आने से लगभग खत्म सी हो जाती है। कुछ ही जवान बचते हैं, जो हौंसले के साथ आगे बढ़ते हुए दुश्मनों पर फतेह हासिल कर अपने मशीन को आगे बढ़ाते हैं। ओमाहा बीच पर उतरी टुकड़ी की अगवाई कर रहे कैप्टन जॉहन एच मिलर (टॉम हंक्स) को हाईकमान से आदेश मिलता है कि एक जवान को ढूंढकर उसके घर पहुंचाना है। उसके लिए कैप्टन मिलर को एक टीम मिलती है। युद्ध चल रहा है, लेकिन कैप्टन अपनी ड्यूटी निभाते हुए उस नौजवान जेम्स फ्रांसिस रेयान (मैट डॉमन) को ढूंढने निकल पड़ता है। इस दौरान उसको कई चुनौतियों का सामना करना

एंजेल्स एडं डिमोंस - एक रोचक फिल्म

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अगर आप एक रहस्यमयी, एक्शन एवं गंभीर विषय की फिल्में देखना पसंद करते हैं या हॉलीवुड अभिनेता टॉम हंक्स की अदाकारी के कायल हैं तो आपके लिए 'दी दा विंची कोड' से विश्व प्रसिद्धी हासिल कर चुके डान ब्राउन के उपन्यास आधारित फिल्म 'एंजेल्स एंड डिमोंस' एक बेहतरीन हो सकती है, इस फिल्म का निर्देशन 'दी दा विंची कोड' बना चुके हॉलीवुड फिल्म निर्देशक रॉन होवर्ड ने किया है। कहानी : फिल्म की कहानी ईसाई धर्म के आसपास घूमती है। रोम कैथोलिक चर्च के पोप की मृत्यु के बाद नए पोप के चुनाव के लिए रीति अनुसार समारोह आयोजित होता है। नया पोप बनने के लिए मैदान में चार उम्मीदवार होते हैं, जिनका अचानक समारोह से पहले ही अपहरण हो जाता है। उनका अपहरण ईसाई धर्म से धधकारे गए इल्यूमिनाटी समुदाय के लोग करते हैं, जो विज्ञान में विश्वास रखते हैं। इल्यूमिनाटी चेतावनी देते हैं कि चार धर्म गुरूओं की बलि चढ़ा दी जाएगी और वैटीकन सिटी को रोशनी निगल जाएगी, मतलब विशाल धमाका होगा, जिसे वैटीकन सिटी तबाह हो जाएगी। उन दुश्मनों तक पहुंचने के लिए चिन्ह विशेषज्ञ प्रो. रोबर्ट लैंगडन (टॉम हंक्स) को बुलाया जाता है। उ

लंडन ड्रीम्स- द बेस्ट मूवीज

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विपुल अमृतलाल शाह मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा, बाकी का तो पता नहीं, बेशक हाल में तालियों की गूंज सुनाई दे रही थी और ठहाकों की भी। आँखें, वक्त, नमस्ते लंडन, सिंह इज किंग के बाद विपुल शाह की लंडन ड्रीम्स को भी शानदार फिल्मों की सूची में शुमार होने से कोई नहीं रोक सकता, खासकर मेरी मनपसंद शानदार फिल्मों की सूची से। सिंह इज किंग भले ही अनीस बज्मी ने निर्देशित की हो, लेकिन विपुल शाह का योगदान भी उसमें कम नहीं था, क्योंकि एक अच्छा निर्माता एक निर्देशक को अपने ढंग से काम करने के लिए अवसर देता है। लंडन ड्रीम्स शुरू होती है अजय देवगन (अर्जुन) से, जो संघर्ष कर सफलता की शिखर पर है, लेकिन वो अपने सपनों के लिए अपनों को खोने से भी भय नहीं खाता। वो बचपन से माईकल जैक्सन बनना चाहता है, लेकिन उसके पिता को गीत संगीत से नफरत है। वो भगवान से दुआ करता है कि उसके रास्ते की सब रुकावटें दूर हो जाएं। अचानक उसके पिता की मौत हो जाती है और उसका चाचा ओमपुरी उसको लंडन ले जाता है, जो उसका ख्वाब है। वो एयरपोर्ट से ही अपने चाचा का साथ छोड़कर सपनों को पूरा करने के लिए निकल पड़ता है। संघर्ष करते करते वो अपने सपने की तरफ अग्रस