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शौचालय से सोचालय तक

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कल शाम श्रीमती वर्मा जी का अचानक फोन आया "आप जल्दी से हमारे घर आओ"। मैं उसकी वक्त सोचते हुए दौड़ा कि आखिर ऐसी कौन सी आफत आन खड़ी हुई कि उनको मुझे फोन लगाकर बुलाना पड़ा। मेरे घर से पाँच मिनट की दूरी पर श्रीमान वर्मा जी का घर है, मैंने अपने पैरों की चाल बढ़ाते हुए शीघ्रता के साथ उनके घर की तरफ बढ़ने की कोशिश की। दरवाजा खटखटाने की जरूरत न पड़ी, क्योंकि श्रीमती वर्मा ने दरवाजा खोलकर ही रखा था। मैंने देखा उनका रंग उड़ा हुआ था, जैसे कोई बड़ी वारदात हो गई हो। घर में फैले सन्नाटे को तोड़ते हुए मेरे स्वर श्रीमती वर्मा के कानों तक गए आखिर बात क्या हुई"। मेरी तरफ देखते हुए काँपते होठों से श्रीमति वर्मा बोली "मुझे बोले चाय बनाओ, मैं अभी आया"। "आखिर गए कहां, और कुछ बताकर गए कि नहीं" मैंने बात काटते हुए झट से कहा। श्रीमति वर्मा तुरंत बोली "कहीं नहीं गए"। "अगर कहीं गए ही नहीं तो टेंशन कैसी" मैंने कहा। "टेंशन इस बात की है कि वो पिछले दो घंटों से शौचालय में घुसे हुए हैं, मैंने कई दफा दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आ रहा" अपनी आवाज क