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लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है

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(1) जिस्म के जख्म मिट्टी से भी आराम आए रूह के जख्मों के लिए लेप भी काम न आए (2) वक्त वो बच्चा है, जो खिलौने तोड़कर फिर जोड़ने की कला सीखता है (3) माँ का आँचल तो हमेशा याद रहा, मगर, भूल गया बूढ़े बरगद को छाँव तले जिसकी खेला अक्सर। (4) जब कभी भी, टूटते सितारे को देखता हूँ यादों में किसी, अपने प्यारे को देखता हूँ। (5) जब तेरी यादें धुँधली सी होने लगे, तेरे दिए जख्म खरोंच लेता हूँ। (6) तेरे शहर में मकानों की कमी नहीं, लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है वेलकम लिखा शहर में हर दर पर खुले जो, मुझे उस दर की जरूरत है आभार

कुछ क्षणिकाओं की पोटली से

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1. हम भी दिल लगाते, थोड़ा सा सम्हल पढ़ी होती अगर, जरा सी भी रमल -: रमल- भविष्य की घटनाएं बताने वाली विद्या (2) मुश्किलों में भले ही अकेला था मैं, खुशियों के दौर में, ओपीडी के बाहर खड़े मरीजों से लम्बी थी मेरे दोस्तों की फेहरिस्त। ओपीडी-out patient department (3) खुदा करे वो भी शर्म में रहें और हम भी शर्म में रहें ताउम्र वो भी भ्रम में रहें और हम भी भ्रम में रहें बेशक दूर रहें, लेकिन मुहब्बत के पाक धर्म में रहें पहले वो कहें, पहले वो कहें हम इस क्रम में रहें (4) मत पूछ हाल-ए-दिल क्या बताऊं, बस इतना कह देता हूँ खेतिहर मजदूर का नंगा पाँव देख लेना तूफान के बाद कोई गाँव देख लेना (5) मुहब्बत के नाम पर जमाने ने लूटा है कई दफा मुहब्बत में पहले सी रवानगी लाऊं कैसे (6) औरत को कब किसी ने नकारा है मैंने ही नहीं, सबने औरत को कभी माँ, कभी बहन, कभी बुआ, कभी दादी, कभी नानी, तो कभी देवी कह पुकारा है। सो किओं मंदा आखिए, जितु जन्महि राजान श्री गुरू नानक देव ने उच्चारा है। वो रोया उम्र भर हैप्पी, जिसने भी औरत को धिधकारा है। (7) मोहब्बत मेरी तिजारत नहीं, प्रपोज कोई