ये भी कोई जिंदगी है

आज ब्लॉगस्पॉट का अगला ब्लॉग बटन दबाया तो हरमिंदर के वृद्धग्राम पहुंच गया। जहां हरमिंदर व काकी दोनों बतियाते हुए वृद्धों व बुढ़ापे के बारे में कई मार्मिक पहलूओं से अवगत करवा रहे थे। गांव की छानबीन करने से पता चला कि अतिथि तो यहां निरंतर पहुंच रहे हैं, मगर पिछले कई महीनों से हरमिंदर सिंह यहां नहीं आए, जबकि इस गांव के चर्चे अख़बारों व वेबसाइटों पर हो चुके हैं। आपके समक्ष वृद्धग्राम से लिया एक लेख रखते हुए अलविदा लेता हूं। कुलवंत हैप्पी, युवा सोच युवा खयालात। हरमिंदर की कलम से जमीन पर सोने वालों की भी भला कोई जिंदगी होती है। हजारों दुख होते हैं उन्हें, मगर बयां किस से करें? हजारों तकलीफों से जूझते हैं और जिंदगी की पटरी पर उनकी गाड़ी कभी सरपट नहीं दौड़ती, हिचकौले खाती है, कभी टकराती है, कभी गिर जाती है। एक दिन ऐसा आता है जब जिंदगी हार जाती है। ऐसे लोगों में बच्चे, जवान और बूढ़े सभी होते हैं जिन्हें पता नहीं कि वे किस लिये जी रहे हैं। बस जीते हैं। कई बूढ़े अपने सफेद बालों को यह सोचकर शायद न कभी बहाते हों कि अब जिंदगी में क्या रखा है, दिन तो पूरे हो ही गये...