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अरविंद केजरीवाल कुछ तो लोग कहेंगे

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बड़ी हैरानी होती है। कोई कुछ लेता नहीं तो भी देश के कुछ बुद्धिजीवी सवाल उठा देते हैं, अगर कोई लेता है तो भी। अब आम आदमी मुख्यमंत्री बन गया। वो आम आदमी सुरक्षा लेना नहीं चाहता, लेकिन मीडिया अब उसको दूसरे तरीके से पेश कर रहा है। सुनने में आया है, अरविंद केजरीवाल ने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। सुरक्षा के रूप में उसको दस बारह पुलिस कर्मचारी मिलते, लेकिन अब उसकी सुरक्षा के​ लिए सौ पुलिस कर्मचारी लगाने पड़ रहे हैं। अब भी सवालिया निशान में केजरीवाल हैं ? शायद बुद्धिजीवी लोग घर से बाहर नहीं निकलते या घर नहीं आते। शायद रास्तों से इनका राब्ता नहीं, संबंध नहीं, कोई सारोकार नहीं। वरना,उनको अर​विंद केजरीवाल के शपथग्रहण कार्यक्रम की याद न आती, जहां पर सौ पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया गया था। कहते हैं आठ दस से काम चल जाता है, अगर अरविंद सुरक्षा के लिए हां कह देते तो। सच में कुछ ऐसा हो सकता है, अगर हो सकता है तो नरेंद्र मोदी की राजधानी, मेरे घर के पास आकर देख लें। मोदी गोवा से, दिल्ली, यूपी, बिहार से निकलता है, लेकिन मेरे शहर की सड़कों पर सैंकड़े से अधिक पुलिस कर्मचारी ठिठुरते

लोकपाल बिल तो वॉट्सएप पर पास हो गया था

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अन्ना हजारे। आज के गांधी हो गए। ठोको ताली। कांग्रेस व भाजपा समेत अन्य पार्टियों ने लोक पाल बिल पास कर दिया। कहीं, आज फिर एक बार अंग्रेजों की नीति को तो नहीं दोहरा दिया गया। गांधी को महान बनाकर सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह जैसे किरदारों को दबा दिया गया। सत्ता पाने की चाह में पागल पार्टियां ​दिल्ली में बहुमत न मिलने की कहानी गढ़ते हुए सरकार बनाने से टल रही हैं। आज भी राजनीतिक पार्टियां भीतर से एकजुट नजर आ रही हैं। शायद वह आम आदमी के हौंसले को रौंदा चाहती हैं, जो आप बनकर सामने आया है। वह चाहती हैं कि आप गिरे। डगमगाए ताकि आने वाले कई सालों में कोई दूसरा आम आदमी राजनेता को नीचा​ दिखाने की जरूरत न करे। आठ साल से लटक रहा बिल एकदम से पास हो जाता है। अन्ना राहुल गांधी को सलाम भेजता है। उस पार्टी का भी लोक पाल को समर्थन मिलता है, जिसका प्रधानमंत्री उम्मीदवार, बतौर मुख्यमंत्री अब तक अपने राज्य में लोकायुक्त को लाने में असफल रहा है। मुझे लगता है कि शायद अन्ना ने राहुल गांधी को भेजे पत्र के साथ एक पर्ची भी अलग से भेजी होगी। जिस पर लिखा होगा। क्या एक और अरविंद केजरीवाल चाहिए? र

वो मासूम सी लड़की

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वो मासूम सी लड़की मुझसे जुदा हो जाए। बस ख्वाबों में आए, और खुदा हो जाए। मैं ही जानता हूं पागल दिल को संभाला है कैसे। उनकी चाहत को बच्चों की तरह पाला है कैसे। कभी सूखा पड़ा तो कभी बाढ़ आई हौंसले ​गिराने आफत हर बार आई हा​लत देखकर आशिकों की अब मैं, हैप्पी यूं ही परेशान नहीं होता पता है मुझे, किसी की याद में डूबकर उभरना आसान नहीं होता आओ हंसते हुए मिलने की, दुश्मनों पर मेहरबानी करते हैं। चलो आज हैप्पी, हम भी कुछ तूफानी करते हैं। बंद कमरों में रोना बंद कर ​दिया, क्यूंकि नीर ए अश्क फर्श सोखता नहीं, हैप्पी अगर जमीं पीती अश्क मेरे, तो आंखों से बहता दरिया मैं रोकता नहीं

सलमान खान के हाथ जल्‍द होंगे पीले

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सच में। सलमान खान की बहुत जल्‍द शादी होने वाली है। अब सलीम खान एंड फैमिली चाहती है कि छोरे के हाथ पीले कर देने चाहिए, हालांकि लड़कियों के हाथ पीले होते हैं। हाथ पीले करने का मतलब शादी होता है, तो क्‍या फर्क पड़ता है, लड़के की हो या लड़के की। अब तो दोनों बराबर हैं। लो..... मैंने क्‍या कुछ झूठ कहा। अभी तक लड़की तो मिली नहीं, लेकिन मिलने की जल्‍द संभावना है। सलमान खान ने परिवार को संकेत देने शुरू कर दिए हैं। हम सब जानते हैं कि बॉलीवुड में सबसे अधिक लड़कियों के साथ प्रेम प्रसंग रचाने वाला अभिनेता सलमान खान हैं। मगर उसने पिछले दिनों अपने बयान से सभी उन लड़कियों को चरित्र प्रमाण पत्र दे दिया, जो उसकी जिन्‍दगी में आकर गई हैं।  फर्जी मीडिया कंपनी फेकटॉक फेंकु संवाददाता ने बताया कि सलमान खान के बयान के बाद अभिषेक बच्‍चन पार्टी देने के मूड में थे, लेकिन ऐश ने कहा, क्‍या हर बार सीता प्रमाण देगी, कभी राम को नहीं देना चाहिए, अभी तक करिश्‍मा कपूर या किसी अन्‍य लड़की ने सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं दिया। तुम को भी सलमान खान की तरह बयान देकर प्रमाण देना होगा। अभी तक मामला ठंडे बस्‍ते में है,

एक ख़त आम आदमी पार्टी के नाम

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नमस्कार। सबसे पहले आप को बधाई शानदार शुरूआत के लिए। कल जब रविवार को न्यूज चैनलों की स्क्रीनें, क्रिकेट मैच के लाइव स्कोर बोर्ड जैसी थी, तो मजा आ रहा था, खासकर दिल्ली को लेकर, दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो रहा था, तो भाजपा के साथ आप आगे बढ़ रहे थे, लेकिन दिलचस्प बात तो यह थी कि चुनावों से कुछ दिन पहले राजनीति में सक्रिय हुई पार्टी बाजी मारने में सफल रही,हालांकि आंकड़ों की बात करें तो भाजपा शीर्ष है, मगर बात आप के बिना बनने वाली नहीं है। यह बात तो आपको भी पता थी कि कुछ समीकरण तो बिगड़ने वाला है, मगर आप ने इतने बड़े फेरबदल की उम्मीद नहीं की थी। अगर आपको थोड़ी सी भी भनक होती तो यकीनन सूरत ए हाल कुछ और होता। आप प्रेस के सामने आए, बहुत भावुक थे, होना भी चाहिए, ऐसा क्षण तो बहुत कम बार नसीब होता है। अब आप को अपने कार्यालय के बाहर एक शेयर लिखकर रखना चाहिए, मशहूर हो गया हूं तो जाहिर है दोस्तो, अब कुछ इलजाम मेरे स​र भी आएंगे जो गुरबत में अक्सर नजर चुराते थे, अब देने बधाई मेरे घर भी आएंगे मगर अब आप विपक्ष में बैठने की बात कर रही है, जो सही नहीं। नतीजे आप ने बदले हैं, मुख्यमंत्री को

fact n fiction : जय हो का पोस्टर यूं बना

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जय हो का पोस्टर रिलीज हो गया। पहले तो इसका नाम मेंटल था। लेकिन कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए कि इसका नाम बदलकर जय हो रखना पड़ा। हमारे फिक्शन जर्नालिस्ट की रिपोर्ट ने उठाया पूरे मामले से पर्दा। जानिए कैसे ? हुआ कुछ यूं। सलमान खान बहुत खुश थे। दस बजे में कुछ मिनट बाकी थे। पोस्टर रिलीज होने वाला था। पोस्टर को लेकर सलमान अपने प्रशंसकों में उत्सुकता जगा रहे थे। शुक्रवार को जैसे ही दस बजे। वैसे ही पोस्टर रिलीज हुआ। सर्वर क्रैश होने की बात सामने आई। लेकिन बात कुछ और थी। सलमान खान पोस्टर को लेकर नाराज हुए। पोस्टर देखा तो सलमान खान चौक उठे, यह कालिख क्यूं ? मेरे चेहरे पर पोती है। मैं इस ​​फिल्म में कोयला मजदूर थोड़ी हूं। राइट ब्रदर। तुम सही कह रहे हो, सोहेल खान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा। जब लोग इस पोस्टर को देखेंगे तो उनको कोयले की याद आएगी। कोयले घोटाले की याद आएगी। वैसे भी अगले साल चुनाव हैं। जनता कांग्रेस के चेहरे पर कालिख पोतेगी। तुम्हारी फिल्म नहीं चलेगी सोहेल, सलमान बोले। कोई बात नहीं भैया, मैंने सौ करोड़ का इंतजाम कर लिया। सोहेल बड़े आत्मविश्वास के साथ बोले।  सलमान खान चौकते हुए बोल

भाव कृति : उलझन, उम्मीद व खयालात

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उम्मीद शाम ढले परिंदों की वापसी से तेरे आने की उम्मीद जगाती हूं सोच कर मैं फिर एकदम से डर सी, सहम सी जाती हूं कहीं बरसों की तरह, उम्मीद इक उम्मीद बनकर न रह जाए तुम्हारी, बस तुम्हारी उलझन उनकी तो ख़बर नहीं, मैं हर रोज नया महबूब चुनता हूं अजब इश्क की गुफ्तगू वो आंखें कहते हैं, मैं दिल से सुनता हूं हैप्पी मैं भी बड़ा अजीब हूं, पुरानी सुलझती नहीं, और हर रोज एक नई उलझन बुनता हूं ख्यालात लोग मेरे खयाल पूछते हैं, लेकिन क्या कहूं, पल पल तो ख्यालात बदलते हैं सच में मौसम की तरह, न जाने दिन में कितनी बार मेरे हालात बदलते हैं लोग सोचते हैं रिहा हुए मुझे लगता है, हैप्पी लोग सिर्फ हवालात बदलते हैं

ख़त तरुण तेजपाल, मीडिया व समाज के नाम

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तरुण तेजपाल, दोष तुम्‍हारा है या तुम्‍हारी बड़ी शोहरत या फिर समाज की उस सोच का, जो हमेशा ऐसे मामलों में पुरुषों को दोष करार दे देती है, बिना उसकी सफाई सुने, मौके व हालातों के समझे। इस बारे में, मैं तो कुछ नहीं कह सकता है, लेकिन तुम्‍हारे में बारे में मच रही तहलका ने मुझे अपने विचार रखने के लिए मजबूर कर दिया, शायद मैं तमाशे को मूक दर्शक की तरह नहीं देख सकता था। मीडिया कार्यालयों, वैसे तो बड़ी बड़ी कंपनियों में भी शारीरिक शोषण होता, नहीं, नहीं, करवाया भी जाता है, रातों रात चर्चित हस्‍ती बनने के लिए। लूज कपड़े, बोस को लुभावने वाला का मैकअप, कातिलाना मुस्‍कान के साथ बॉस के कमरे में दस्‍तक देना आदि बातें ऑफिस में बैठे अन्‍य कर्मचारियों की आंखों में खटकती भी हैं। मगर इस शारीरिक शोषण या महत्‍वाकांक्षायों की पूर्ति में अगर किसी का शोषण होता है तो उस महिला या पुरुष कर्मचारी का, जो कंपनी को ऊपर ले जाने के लिए मन से काम करता है। जब तक डील नो ऑब्‍जेक्‍शन है, तब तक मजे होते हैं, जिस दिन डील में एरर आने शुरू होते हैं, उस दिन विवाद होना तय होता है, जैसे आपके साथ हुआ। विवाद दब भी जाता, लेकिन

नहीं चाहिये अंग्रेज, हमारे पास चोर नेतायों की पलटन है

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हर उदय का, अंत होना पतन है। देखो दुनिया , अंत प्यारा अपना वतन है। हर सफलता के पीछे बेजोड़ मेहनत व यत्न है। शादी से पहले प्रियतम , बाद में संतान उत्तम रत्न है। धर्म का अंत , आध्यात्मिक गुरूआें का तोतारटन है। नहीं चाहिये अंग्रेज , हमारे पास चोर नेतायों की पलटन है। पंजा , कमल , किसी के पास साइकिल तो किसी के पास लालटन है। तुम्हारा अनुभव तो पता नहीं , लेकिन हैप्पी का तो यह कथन है। शेअर कोयी नहीं करेगा , कहेगा हरकोयी बात में तो वजन है। कुलवंत हैप्‍पी, संचालक Yuvarocks Dot Com , संपादक Prabhat Abha हिन्‍दी साप्‍ताहिक समाचार पत्र, सामग्री लेखक Ganeshaspeaks । पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में। Yuva Rocks Dot Com से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook  पर ज्वॉइन करें, Twitter पर फॉलो करे।

Ad Review : क्‍या देखा गूगल का यह विज्ञापन ?

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आज ऑफिस से लौटकर जैसे ही टेलीविजन का स्‍विच ऑन किया तो टाटा स्‍कायी की ओर से एक विज्ञापन चलाया जा रहा था। इस विज्ञापन से आगे मेरा टेलीविजन नहीं बढ़ा। विज्ञापन इतना प्‍यार था कि दिल को छू गया। मुझे लगा कि शायद जो बात ढ़ाई से साढ़े तीन घंटे की फिल्‍म नहीं कह सकती है, वे बात इस तीन मिनट कुछ सेकेंड के विज्ञापन ने कह दी। यह विज्ञापन था विश्‍व प्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल का। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि इस विज्ञापन को गूगल की ओर से यूट्यूब पर भी आज ही प्रकाशित किया गया है। इस विज्ञापन से जो बात आपको जोड़ती है, वे है इसका भावनात्‍मक पहलु। भले ही देश का एक खेमा पाकिस्‍तान को पी पी कर कोसता था, लेकिन एक खेमा ऐसा भी है, जो आज भी पाकिस्‍तान की आबोहवा में सांस लेने के लिये तरसता था। इस विज्ञापन के किरदारों भारत व पाकिस्‍तान में आज भी मौजूद होंगे। जो आज भी अपने पुराने घरों को याद करते होंगे। जो आज भी अपने दोस्‍तों से मिलने के लिये तरसते होंगे। आने वाले समय में जब हमारी पुरानी पीढ़ियां चली जायेंगी, तो हो सकता है पाकिस्‍तान के प्रति हमारा प्‍यार रखने वाला एक खेमा मर जाये। और बच जाये,

यहां बे 'चारे' दोषी लालू, वहां क्‍या सोचते होंगे जेपी नारायण

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चारा घोटाले में दोषी पाए गए लालू प्रसाद यादव। और रिपोर्टों मुताबिक जेल जाना निश्‍चित है। लालू प्रसाद यादव के लिये जेल जाना कोई नई बात नहीं, लेकिन बस फर्क इतना है कि वे कभी जेपी अंदोलन के कारण जेल जाते थे, और अब वे चारा घोटाले के दोष में जेल जाएंगे। कहते हैं कि लालूप्रसाद यादव, जेपी नारायण के इतने खास थे कि वे लालू प्रसाद यादव को घर चलाने के लिए आर्थिक मदद तक देते थे। इतना ही नहीं, लालू प्रसाद यादव भी जेपी पर अपना कॉपीराइट मानते हैं, तभी तो जब अन्‍ना अंदोलन को जेपी अंदोलन से जोड़कर देखने की कोशिश की जाती है तो सबसे ज्‍यादा विरोधी सुर लालू प्रसाद यादव के होते हैं। आज एक बार फिर जेपी को याद किया जा रहा है, हालांकि जेपी नारायण का जन्‍मदिवस अकसर अमिताभ बच्‍चन के जन्‍मदिवस की सुर्खियों में कहीं छुपा रह जाता है। जेपी, जय प्रकाश नारायण। यह नाम नहीं, एक अंदोलन था। जिसने इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की जड़ों को उखाड़ फेंका था। उसकी जगह एक गैर कांग्रेसी सरकार को देश चलाने का मौका दिया। यह सरकार जनता पार्टी की थी, जिसका भी लघु नाम लिखा जाये तो जेपी बनेगा, हालांकि इस सरकार में जेपी ने क

fact 'n' fiction : सड़क मेरे मोहल्‍ले वाली

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भारत में सड़क सलामत बन जाये, शायद यह उस सड़क का अपना भाग्‍य होगा, वरना यहां पर सड़क बनने के बाद उस पर कुदाल आदि चलते हैं। पिछले दिनों मेरे मोहल्‍ले वाली सड़क बन गई, सही सलामत। यह उसका अपना भाग्‍य था। सच में उसका भाग्‍य, क्‍यूंकि उसको एक सही सोच वाले अधिकारी का दिमाग मिल गया था। यह पहली सड़क थी, जो सब रीति रिवाज पूरे होने के बाद संपन्‍न हुई। इसलिये यह सलामत बन गई। आप सोच रहे होंगे। यह कैसी पहेली है। पहेली को सुलझाने के लिये एक लघु कथा सुनाता हूं। छोटी कहानी। कहानी शुरू होती है कुछ महीने पहले। एक अख़बार में ख़बर प्रकाशित हुई, मेरे मोहल्‍ले की सड़क बन गई। इस सुर्खी ने कई विभागों की नींद उड़ा दी। बस फिर क्‍या था, दूर संचार, वॉटर सप्‍लाई और बिजली विभाग के अधिकारियों ने कमर कस ली। नई सड़क बनने के बाद के रीति रिवाज पूरे करने के लिये, दूसरे देशों का तो पता नहीं, लेकिन हमारे भारत में यही रीति है, पहले सड़क बनेगी, फिर अन्‍य रीति रिवाज विधिवत संपन्‍न होंगे, जैसे वॉटर सप्‍लाई लाइन, टेलीफोन लाइन व स्‍ट्रीट लाइटिंग पोल। सभी विभाग के कर्मचारी नई बनी सड़क पर पहुंचते हैं। देखते हैं चादर सी पतली

Express Adda : राहुल गांधी के वक्‍तव्‍य - 2013

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 साल 2013 में राहुल गांधी ने कब कहां, क्‍या कहा, जानिये, इस पोस्‍ट में। राहुल गांधी   ने कहा, "कांग्रेस पार्टी दुनिया का सबसे बड़ा परिवार है लेकिन इसमें बदलाव की ज़रूरत है। मगर सोच-समझ कर। सबको एक साथ लेकर बदलाव की बात करनी है और बदलाव लाना है। प्यार से, सोचसमझ के साथ, सबकी आवाज़ को सुनकर आगे बढ़ना है। वो सबको एक ही आंख से एक ही तरीके से देखेंगे चाहे वो युवा हो, कांग्रेस कार्यकर्ता हो, बुजुर्ग हो या फिर महिला हो।''  राहल ने कहा, " आज सुबह मैं चार बजे ही उठ गया और बालकनी में गया। सोचा कि मेरे कंधे पर अब बड़ी जिम्मेदारी है। अंधेरा था, ठंड थी। मैंने सोचा कि आज मैं वो नहीं कहूंगा जो लोग सुनना चाहते हैं। आज मैं वो कहूंगा जो मैं महसूस करता हूं।" राहुल बोले, "पिछली रात मेरी मां मेरे पास आई और रो पड़ी क्योंकि वो जानती हैं कि सत्ता ज़हर की तरह होती है। सत्ता क्या करती है। इसलिए हमें शक्ति का इस्तेमाल लोगों को सबल बनाने के लिए करना है।" रविवार, 20 जनवरी 2013 राहुल गांधी ने कहा, ''डरने की नहीं बल्कि लड़ने की जरूरत है ताकि सच को सामने लाया जा

fact 'n' fiction : नरेंद्र मोदी का चुनावी घोषणा पत्र

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वैसे तो हर बार राजनीतिक पार्टियां या गठबंधन अपना चुनावी घोषणा पत्र चुनावों से पूर्व जारी करते हैं, लेकिन इतिहास में पहली बार 'नरेंद्र मोदी : द मैन इन पीएम रेस' की ओर से अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया गया है। इस चुनावी घोषणा पत्र की एक कॉपी हमारे फर्जी सूत्रों द्वारा उपलब्‍ध करवाई गई है। केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करने वाले नरेंद्र मोदी की ओर से चुनावी घोषणा पत्र युवा पीढ़ी और आम जनता को ध्‍यान में रखकर बनाया गया है। विकास पुरुष की ओर से इसमें विकास संबंधी कोई घोषणा नहीं, जो है वे आपके सामने रखने जा रहे हैं। सोशल मीडिया स्‍वतंत्रता मैं सोशल मीडिया के अस्‍तित्‍व को बरकरार रखने के लिये पुरजोर कोशिश करूंगा। मुझे पता है कि यह एक अभिव्‍यक्‍ति का सशक्‍त प्‍लेटफॉर्म है, बशर्ते कि आप इस तरह की गतिविधियों का संचालन नहीं करेंगे, जिससे मेरी सरकार को ख़तरा पैदा हो। पहले स्‍पष्‍ट कर दूं, मैं मनमोहन सिंह की तरह बेदाग और इमानदार रहूंगा, लेकिन नेताओं की गारंटी लेना मुश्‍िकल है। पांच उंगलियां एक बराबर नहीं होती। हर शहर में लाल किला सोशल मीडिया के अस्‍तित्‍व को बरकरार रखन

ऑस्‍कर 2014 के लिये भेजी एशियाई फिल्‍मों के ट्रेलर

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आधिकारक रूप से 86वें ऑस्‍कर पुरस्‍कार समारोह के लिये सर्वोत्‍तम विदेशी भाषा फिल्‍म श्रेणी के तहत एशियाई मूल की नौ फिल्‍में भेजी गई हैं, जो 2 मार्च 2014 को लॉस एंजिलस के हॉलीवुड जिले में स्‍थित डॉलबाय थियेटर में दिखाई जायेगी। The Good Road भारत की ओर से इस श्रेणी के तहत ज्ञान कोरिया के निर्देशन में बनी गुजराती 'द गुड रोड' को भेजा गया है। इस फिल्‍म की कहानी एक ट्रक चालक व दो बच्‍चों के आस पास घूमती है। ट्रक चालक अपने परिजनों को अपनी जीवन बीमा राशि दिलाने के लिये झूठे सड़क हादसे का पूरा नाटक रचता है। आदित्‍य, जो अपने माता पिता से एक ढाबे पर खाना खाते वक्‍त जुदा हो जाता है। पूनम, जो अपने किसी की तलाश में हाइवे पर पहुंच जाती है। इन दिनों किरदारों के आसपास घूमती कहानी है 'द गुड रोड'। यह राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार जीत चुकी है। अब ऑस्‍कर में कहां तक पहुंचती है, के लिये इंतजार करना होगा। Television बंग्‍लादेश की ओर से इस श्रेणी के लिये टेलीविजन नामक फिल्‍म भेजी गई है, जो एक हिन्‍दु परिवार के संघर्ष पर आधारित है। यह हिंदु परिवार एक अच्‍छे क्षेत्र में रहता है, जहां

fact 'n' fiction : राहुल गांधी को लेने आये यमदूत

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सुबह सुबह का समय था। राहुल गांधी अपने बिस्‍तर पर नींदफरमा थे। आंख खुली तो देखा, उसके बिस्‍तर के पास दो लोग खड़े हैं। राहुल ने चौकते हुए पूछा, आप कौन हैं ? सामने से उत्‍तर आया .. यम ऐम्‍बेसी से आये हैं। राहुल तपाक से बोले ... क्‍या मैं प्रधान मंत्री बन गया ? नहीं.. नहीं.. यमन ऐम्‍बेसी से नहीं, यम लोक वाली ऐम्‍बेसी से आये हैं। तो आप यहां क्‍यूं आये ? राहुल ने परेशानी वाले लिहाजे में पूछा। दरअसल हमारे लोक में एक रियालिटी शो का आयोजन होने जा रहा है। उसी के सिलसिले में आपको लेने आये हैं, आपका नाम राहुल है न ? यम दूतों ने पूछा। राहुल ने हौसला भरते हुये कहा, हां मेरा नाम राहुल है, लेकिन मुझे पता है, आप बिग बॉस बना रहें हैं, जहन्‍नुम का अओ, और जन्‍नत का वओ कंसेप्‍ट पर, लेकिन इस शो में पहले भाग ले चुका राहुल मैं नहीं, वे राहुल महाजन हैं। नहीं.. नहीं ... वो नहीं चाहिए। हम को ऐसा प्रतिभागी चाहिये जो लम्‍बा खेल सके। अच्‍छा.. अच्‍छा.., आपको राहुल द्राविड़ की तलाश कर रहे हैं। हां.... हां... मुझे पता है वे अच्‍छा क्रिकेट खेलते हैं। टेस्‍ट में तो उनको द वॉल का टैग भी मिला हुआ है, तो क्‍या आपक

frank talk : मुजफ्फरनगर दंगों के छींटे दुर्गा एक्‍सल से नहीं जायेंगे अखिलेश

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मुजफ्फरनगर में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी बीजेपी विधायक संगीत सोम ने शनिवार को सरेंडर करते हुए नरेंद्र मोदी को प्रचार हथकंडा अपनाने के मुकाबले में पीछे छोड़ दिया। बीजेपी विधायक संगीत सोम ने ऐसे सरेंडर किया, जैसे वे किसी महान कार्य में योगदान देने के बाद पुलिस हिरासत में जा रहे हों। गिरफ्तारी के वक्‍त हिन्‍दुओं का हृदयसम्राट बनने की ललक संगीत सोम में झलक रही थी। शायद संगीत सोम को यकीन हो गया कि लोक सभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी सत्‍ता में आयेंगे, जैसे नरेंद्र मोदी एलके आडवाणी के अवरोधों को तोड़ते हुए पीएम पद उम्‍मीदवार (एनडीएम) बने हैं। बीजेपी के विधायक संगीत सोम ने गिरफ्तारी के बाद कहा, मैं अपने धर्म की रक्षा के लिए लड़ता रहूंगा। शायद किसी ने संवाददाता ने पूछने की हिम्‍मत नहीं की कि आखिर आपका धर्म खतरे में कहां है ? अगर भारत में बहुसंख्‍यक धर्म संकट में है तो अल्‍पसंख्‍यक लोगों  में तो असुरक्षा का भाव अधिक होगा। जहां असुरक्षा का भाव है, वहां सुरक्षा के लिए तैयारियां होती हैं, और नतीजा हवा से दरवाजा बजने पर भी अंधेरे में तबाड़तोड़ गोलियां चल जाती हैं। इस नेता की गिरफ्त

विश्‍व की सबसे बड़ी दस कंपनियां

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हम सब ग्‍लोबल इकोनॉमी में रहते हैं। 1962 में कानेडियन दार्शनिक मार्शल मैकलुहान अपनी परिभाषा को 'ग्‍लोबल विलेज' के साथ आगे बढ़े। उन्‍होंने अपनी किताब में इस बात पर प्रकाश डाला कि किस तरह ग्‍लोबल और एक गांव के बीच संबंध स्‍थापित हो रहा है, एक इलेक्‍ट्रोनिक तकनीकी के कारण और जानकारी के तात्कालिक आंदोलन के कारण हर तिमाही पर हर जगह से एक ही समय पर सूचना उपलब्‍ध हो जाती है। इंटरनेट ने हमारे सोचने और सूचना प्राप्‍त करने का तरीका बदल दिया। हम बिजनस कर रहे हो या ट्रेवल, हमको हमेशा एक बात दिमाग में रखनी चाहिए कि हम ग्‍लोबल नेटवर्क में सक्रिय हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण बढ़े कंप्यूटर के व्‍यापाक स्‍तर पर इस्‍तेमाल और बढ़ती जरूरतों के लिए व्‍यापाक पैमाने पर बढ़ी माल उत्‍पादन जरूरत ने छोटी कंपनियों को पीछे धकेल दिया, और इस क्रांति के कारण वे विश्‍व की सबसे बड़ी कंपनियों और फैक्‍ट्रियों के समूह बन गये। आज उनके पास लाखों कर्मचारी हैं, और अरबों में उनकी कीमत है। आज आप की मुलाकात विश्‍व की ऐसी दस बड़ी कंपनियों से करवाने जा रहे हैं, जिनका राजस्व बताता है कि उनकी हैसियत कितनी है। वॉक्‍सव

movie review : संतोषी का अंदाज फटा पोस्‍टर निखरा शाहिद

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भले ही फिल्‍म 'फटा पोस्‍टर निकला हीरो' के पोस्‍टर पर गलती से निकला 'निखला' हो गया हो, लेकिन फिल्‍म बनाते वक्‍त फिल्‍म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने कोई चूक नहीं की, इसलिये 'फटा पोस्‍टर निकला हीरो' में सब कुछ निखरा निखरा नजर आया। निर्देशक राजकुमार संतोषी, जिनकी 'अंदाज अपना अपना' के दूसरे भाग के लिए दर्शक आंखें बिछाये बैठे हैं, ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आज के समय में भी दो अर्थ वाली शब्‍दावली के इस्‍तेमाल के बगैरह एक अच्‍छी कॉमेडी फिल्‍म का निर्माण हो सकता है। आज भी किरण खेर जैसी मॉर्डन ओवर एक्‍टिंग वाली मां के बिना मां बेटे के रिश्‍ते पर एक फिल्‍म बन सकती है। राजकुमार संतोषी ने पुराने समय की कहानी को चुना, लेकिन स्‍थितियां आज की रखी, और पूरा फोक्‍स महिला शक्‍तिकरण की तरफ था। एक नौजवान को किस तरह दो महिलायें एक योग्‍य पुलिस अधिकारी बनने में मदद करती हैं। फिल्‍म में एक नायक विश्‍वास राव (शाहिद कपूर) की मां पद्मिनी कोल्हापुरे, तो दूसरी प्रेमिका काजल ( इलियाना डीक्रूज )। नायक की मां नायक को इमानदार पुलिस अधिकारी बनते हुये देखना चाहती है

fact 'n' fiction : सोनिया गांधी के नाम मल्‍लिका शेरावत का पत्र

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नमस्‍कार, सोनिया गांधी जी। आज सुबह जब दरवाजे के नीचे से कुछ अख़बार आये, हर सुबह की तरह। मैंने उनको दौड़कर उठाया। शायद किसी सुर्खी में मेरा नाम हो, लेकिन एक सुर्खी ने मुझे पत्र लिखने के लिए मजबूर कर दिया। उस सुर्खी में पूर्व सेना अध्‍यक्ष वीके सिंह का नाम था, और उन पर किसी गुप्‍तचर एजेंसी की स्‍थापना व गलत इस्‍तेमाल करने का आरोप था। सोनिया जी, यह वीके सिंह वहीं हैं ना, जो पिछले दिनों मेरे मूल राज्‍य हरियाणा के रेवाड़ी शहर में नरेंद्र मोदी के साथ नजर आये थे, एक पूर्व सैनिक रैली में। मुझे लगता है शायद उसी कार्य के लिए वीके सिंह सम्‍मानित किये जाने के प्रयासों का हिस्‍सा है यह सुर्खी। और एक संकेत है कि इस तरह के कार्य करने वाले अन्‍य लोगों को भी किसी न किसी रूप से सम्‍मानित किया जा सकता है, मैं सम्‍मानित नहीं होना चाहती, मुझे सम्‍मान पसंद नहीं, क्‍यूंकि मैं तो पहले ही बेरोजगारी का शिकार हूं, सम्‍मान वाले व्‍यक्‍ति तो छोटा मोटा काम नहीं कर सकते। रोजगार पाने के मकसद से तो गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्‍मदिवस पर गीत गाया था, शायद किसी को मेरी आवाज पसंद आ जाये,

fact 'n' fiction : दिग्‍गी सुर्खियों से गैरहाजिर, तो जनपथ होना पड़ा लाइन-हाजिर

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बुधवार की सुबह। सोनिया अपने आवास पर गॉर्डन में टेंशन भरी मुद्रा में घूम रही थी, मानो कोई बड़ा विज्ञापन छूटने के बाद संपादक। बस इंतजार था, बयानवीर दिग्‍विजय सिंह का। कब आयें, कब लेफ्ट राइट सेंटर किया जाये। दरवाजे खुले एक गाड़ी आई। गाड़ी में वो सवार थे, जिनका इंतजार था। पास आये, मैडम का चेहरा और आंखें लाल। साथ आये सलाहकार ने पूछा, मैडम क्‍या गुस्‍ताखी हुई ? जो इतना गुस्‍से में हैं। तुम को शर्म आनी चाहिए, अब गुस्‍ताखी पूछते हो ? अख़बार और टेलीविजन चैनलों से समझ नहीं पड़ता, आख़िर चूक कहां हो रही है ? गुस्‍से में लाल पीली मैडम ने साजो सामान समेत की चढ़ाई। मैडम आप साफ साफ बतायें बात क्‍या हुई, दिग्‍विजय सिंह का सलाहकार बोला। नरेंद्र मोदी ने रेवाड़ी पहुंचकर हम पर हल्‍ला बोला। कोई प्रतिक्रिया नहीं, हमारी ओर से। मोदी का जन्‍मदिवस ऐसे मनाया गया, जैसे देश का कोई उत्‍सव, कोई प्रतिक्रिया नहीं हमारी ओर से। वहां नरेंद्र मोदी बयान के ड्रोन दागे जा रहा है, ताकि हमारा जनपथ ध्‍वस्‍त किया जाये, और आप गुस्‍ताखी पूछते हो ? मुझे बिल्‍कुल पसंद नहीं, पाकिस्‍तान निरंतर सीमा पर हमले करे, और

fact 'n' fiction : entrance exam बाबाओं के लिए 'न बाबा न'

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Picture From myindiapictures.com आध्‍यात्‍िमक गुरूओं पर लग रहे यौन शोषण के आरोपों के कारण कहीं देश की सर्वोच्‍च अदालत वेश्‍यावृत्‍ति संबंधी पूछे गये सवाल की तरह सरकार से इस बार भी न पूछ ले कि अगर आध्‍यात्‍मिक गुरूओं द्वारा किये जा रहे यौन शोषण को रोकना संभव नहीं तो इसको वैधता दे दी जाये। इस बात से डरते हुए देश की सरकार ने इस मामले पर गंभीरता से सोचने का विचार किया है। सरकार चाहती है कि बाबाओं को भी entrance exam से गुजरना चाहिए। इस प्रस्‍ताव पर काल्‍पनिक लोक सभा में पहली बार में नेताओं की राय मांगी गई। मलंगनगर से सांसद मलंग दास ने सुझाव देते हुए कहा कि बाबाओं को कुछ महीनों तक रेड लाइट इलाकों में रखा जाये, और उनके व्‍यवहार पर पैनी निगाह रखी जाये। अगर बाबा बनने के इच्‍छुक आवेदनकर्ता यहां से पास होते हैं तो उनको जर्मनी के उन बीचों पर तीन महीने के लिए छोड़ा जाये, जहां पर महिलायें व पुरुष नग्‍न अवस्‍था में मौज मस्‍ती करते हैं। जर्मन में ऐसे बीच हैं, जहां पर महिलायें और पुरुष नग्‍न अवस्‍था में घूमते मिल जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह महिला पुरुष बराबरता के विचार को