अरविंद केजरीवाल कुछ तो लोग कहेंगे
बड़ी हैरानी होती है। कोई कुछ लेता नहीं तो भी देश के कुछ बुद्धिजीवी
सवाल उठा देते हैं, अगर कोई लेता है तो भी। अब आम आदमी मुख्यमंत्री बन गया।
वो आम आदमी सुरक्षा लेना नहीं चाहता, लेकिन मीडिया अब उसको दूसरे तरीके से
पेश कर रहा है।
सुनने में आया है, अरविंद केजरीवाल ने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। सुरक्षा के रूप में उसको दस बारह पुलिस कर्मचारी मिलते, लेकिन अब उसकी सुरक्षा के लिए सौ पुलिस कर्मचारी लगाने पड़ रहे हैं। अब भी सवालिया निशान में केजरीवाल हैं ?
शायद बुद्धिजीवी लोग घर से बाहर नहीं निकलते या घर नहीं आते। शायद रास्तों से इनका राब्ता नहीं, संबंध नहीं, कोई सारोकार नहीं। वरना,उनको अरविंद केजरीवाल के शपथग्रहण कार्यक्रम की याद न आती, जहां पर सौ पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया गया था। कहते हैं आठ दस से काम चल जाता है, अगर अरविंद सुरक्षा के लिए हां कह देते तो। सच में कुछ ऐसा हो सकता है, अगर हो सकता है तो नरेंद्र मोदी की राजधानी, मेरे घर के पास आकर देख लें।
मोदी गोवा से, दिल्ली, यूपी, बिहार से निकलता है, लेकिन मेरे शहर की सड़कों पर सैंकड़े से अधिक पुलिस कर्मचारी ठिठुरते हैं। मोदी की सुरक्षा के कारण हमको दिक्कत भी है, लेकिन फोकट की अधिक सुरक्षा भी। सड़क के दोनों तरफ पुलिस कर्मचारी होते हैं, मोदी का कोई नामोनिशां नहीं होता। जब मोदी निकलता है तो स्कोर्पियो का काफिला निकलता है, जो बख्तर बंद होता है। क्या इसका खर्च अरविंद केजरीवाल की सुरक्षा के लिए तैनात किए पुलिस कर्मचारियों से कम है।
पुलिस कर्मचारी, जनता के सेवक हैं। किसी मुख्यमंत्री या किसी नेता के नहीं। बंदूक रक्षा करती तो राजीव गांधी, इंदिरा गांधी सुरक्षित होती। भय किस बात का। मौत का। मौत ने तो काल को वश में करने वाले रावण को नहीं छोड़ा तो आम आदमी क्या है ? सुरक्षा का जिम्मा किसके हाथों में है, जो आम आदमी है, जिसके परिवार की सुरक्षा ऐसी पुलिस चौंकियों के छाये में है, जहां चौंकियां तो हैं, पुलिस कर्मी नहीं।
बड़े अजीब हैं बुद्धिजीवी। कथा सुनाते हैं बैल, शिव व पार्वती की। और खुद की भूल जाते हैं। कहते हैं शिव पार्वती बैल पर बैठकर जा रहे थे। तभी रास्ते में दो लोग मिले, कहने लगे दोनों जानवर पर अत्याचार करते हैं। पार्वती ने पत्नी धर्म निभाया और नीचे उतर गई, शिव को बैठे रहने दिया। कुछ आगे गए तो कोई और मिला, उसने कहा, कैसा निर्दयी है, पत्नि चल रही है, आप आराम से बैठकर जा रहा है। शिव भी उतर गए। कुछ दूर गए तो दूसरे लोग मिल गए कहने लगे। यह लोग भी कैसे हैं, पास में सवारी है, लेकिन पैदल चलकर अपने एवं बैल के पैर थका रहे हैं। इससे अच्छा होता तो घर छोड़ आते।
सच में जितने मुंह उतनी बातें। अरविंद केजरीवाल जमाना है कुछ तो कहेगा। मैं भी तो कुछ कह रहा हूं।
सुनने में आया है, अरविंद केजरीवाल ने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। सुरक्षा के रूप में उसको दस बारह पुलिस कर्मचारी मिलते, लेकिन अब उसकी सुरक्षा के लिए सौ पुलिस कर्मचारी लगाने पड़ रहे हैं। अब भी सवालिया निशान में केजरीवाल हैं ?
शायद बुद्धिजीवी लोग घर से बाहर नहीं निकलते या घर नहीं आते। शायद रास्तों से इनका राब्ता नहीं, संबंध नहीं, कोई सारोकार नहीं। वरना,उनको अरविंद केजरीवाल के शपथग्रहण कार्यक्रम की याद न आती, जहां पर सौ पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया गया था। कहते हैं आठ दस से काम चल जाता है, अगर अरविंद सुरक्षा के लिए हां कह देते तो। सच में कुछ ऐसा हो सकता है, अगर हो सकता है तो नरेंद्र मोदी की राजधानी, मेरे घर के पास आकर देख लें।
मोदी गोवा से, दिल्ली, यूपी, बिहार से निकलता है, लेकिन मेरे शहर की सड़कों पर सैंकड़े से अधिक पुलिस कर्मचारी ठिठुरते हैं। मोदी की सुरक्षा के कारण हमको दिक्कत भी है, लेकिन फोकट की अधिक सुरक्षा भी। सड़क के दोनों तरफ पुलिस कर्मचारी होते हैं, मोदी का कोई नामोनिशां नहीं होता। जब मोदी निकलता है तो स्कोर्पियो का काफिला निकलता है, जो बख्तर बंद होता है। क्या इसका खर्च अरविंद केजरीवाल की सुरक्षा के लिए तैनात किए पुलिस कर्मचारियों से कम है।
पुलिस कर्मचारी, जनता के सेवक हैं। किसी मुख्यमंत्री या किसी नेता के नहीं। बंदूक रक्षा करती तो राजीव गांधी, इंदिरा गांधी सुरक्षित होती। भय किस बात का। मौत का। मौत ने तो काल को वश में करने वाले रावण को नहीं छोड़ा तो आम आदमी क्या है ? सुरक्षा का जिम्मा किसके हाथों में है, जो आम आदमी है, जिसके परिवार की सुरक्षा ऐसी पुलिस चौंकियों के छाये में है, जहां चौंकियां तो हैं, पुलिस कर्मी नहीं।
बड़े अजीब हैं बुद्धिजीवी। कथा सुनाते हैं बैल, शिव व पार्वती की। और खुद की भूल जाते हैं। कहते हैं शिव पार्वती बैल पर बैठकर जा रहे थे। तभी रास्ते में दो लोग मिले, कहने लगे दोनों जानवर पर अत्याचार करते हैं। पार्वती ने पत्नी धर्म निभाया और नीचे उतर गई, शिव को बैठे रहने दिया। कुछ आगे गए तो कोई और मिला, उसने कहा, कैसा निर्दयी है, पत्नि चल रही है, आप आराम से बैठकर जा रहा है। शिव भी उतर गए। कुछ दूर गए तो दूसरे लोग मिल गए कहने लगे। यह लोग भी कैसे हैं, पास में सवारी है, लेकिन पैदल चलकर अपने एवं बैल के पैर थका रहे हैं। इससे अच्छा होता तो घर छोड़ आते।
सच में जितने मुंह उतनी बातें। अरविंद केजरीवाल जमाना है कुछ तो कहेगा। मैं भी तो कुछ कह रहा हूं।
हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
जवाब देंहटाएंहों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||
शुभकामनायें आदरणीय