भाव कृति : उलझन, उम्मीद व खयालात


उम्मीद
शाम ढले परिंदों की वापसी से
तेरे आने की उम्मीद जगाती हूं
सोच कर मैं फिर एकदम से
डर सी, सहम सी जाती हूं
कहीं बरसों की तरह,
उम्मीद इक उम्मीद बनकर न रह जाए
तुम्हारी, बस तुम्हारी

उलझन
उनकी तो ख़बर नहीं,
मैं हर रोज नया महबूब चुनता हूं
अजब इश्क की गुफ्तगू
वो आंखें कहते हैं, मैं दिल से सुनता हूं
हैप्पी मैं भी बड़ा अजीब हूं,
पुरानी सुलझती नहीं,
और हर रोज एक नई उलझन बुनता हूं

ख्यालात
लोग मेरे खयाल पूछते हैं,
लेकिन क्या कहूं, पल पल तो ख्यालात बदलते हैं
सच में मौसम की तरह,
न जाने दिन में कितनी बार मेरे हालात बदलते हैं
लोग सोचते हैं रिहा हुए
मुझे लगता है, हैप्पी लोग सिर्फ हवालात बदलते हैं

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