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भगवान ने हमें क्‍यूं बनाया ?

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एक मां अपने बेटे से कह रही थी, बेटा हमेशा दूसरों की सेवा करनी चाहिए। उसने पूछा क्‍यूं ? मां कहती है कि भगवान ने हमें बनाया इसलिए है कि दूसरों की सेवा करें। और बेटे ने कहा, तो भगवान ने दूसरों को किस लिए बनाया है ? इतना बड़ा जाल क्‍यूं ? इससे अच्‍छा है सब अपनी अपनी सेवा कर लें। स्‍वभाव को पहचानो। जीओ आनंद से। अगर स्‍वभाव में सेवा करना है तो हो जाएगा। नहीं तो नहीं। मजबूरी,फर्ज या झूठ की चादर ओढ़कर मत कीजिए।  क्‍या बिच्‍छु अपना स्‍वभाव छोड़ सकता है ? स्‍वभाव से बड़ा धर्म कुछ नहीं है। बाकी धर्म तो केवल रास्‍ते हैं। एक साधु सरोवर की सीढ़ियां उतर रहा था। उसने देखा एक बिच्‍छु सीढ़ियों पर बैठा था। लोगों के पैरों के तले आकर मर सकता है। साधु उसको उठाकर सरोवर की तरफ बढ़ता है। तो बिच्‍छु साधु के हाथ पर डंक मारता है। साधु का चेला तपाक से बोलता है, बिच्‍छु आपको डंक मार रहा है, और आप उसको सरोवर में छोड़ने जा रहे हो, तो साधु कहता है, अगर वह अपना धर्म निभाना नहीं छोड़ सकता तो मुझे भी अपना धर्म निभाना चाहिए।  स्‍वभाव से बड़ा धर्म कोई नहीं, लोगों ने अहं की। झूठ की चादरें ओढ़ रखी हैं। उनको वह ध

बच्चों को दोष देने से बेहतर होगा उनके मार्गदर्शक बने

कुलवंत हैप्पी/ गुड ईवनिंग सेक्‍स एजुकेशन को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाए, का जब भी मुद्दा उठता है तो कुछ रूढ़िवादी लोग इसके विरोध में खड़े हो जाते हैं, उनके अपने तर्क होते हैं, लागू करवाने की बात करने वालों के अपने तर्क। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इस मुद्दे पर सहमति बन पानी मुश्किल है। मुश्किल ही नहीं, असंभव लगती है। आज के समाज में जो घटित हो रहा है, उसको देखते हुए सेक्‍स एजुकेशन बहुत जरूरी है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसको शिक्षा प्रणाली का ही हिस्सा बनाया जाए। इसको लागू करने के और भी विकल्प हो सकते हैं, जिन पर विचार किया जाना अति जरूरी है। अब तक समाज दमन से व्यक्‍ति की सेक्‍स इच्छा को दबाता आया है, लेकिन अब सब को बराबर का अधिकार मिल गया, लड़कियों को घर से बाहर कदम रखने का अधिकार। ऐसे में जरूरी हो गया है कि बच्चों को उनको अन्य अधिकारों के बारे में भी सजग किया जाए, और आज के युग में यह हमारी जिम्मेदारी भी बनती है, ताकि वह कहीं भी रहे, हम को चिंता न हो। वह जिन्दगी में हर कदम सोच समझ कर उठाएं। आए दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं कि एक नाबालिगा एक व्यक्‍ति के साथ भाग गई। आखिर दोष किसका, बहका