frank talk : मुजफ्फरनगर दंगों के छींटे दुर्गा एक्सल से नहीं जायेंगे अखिलेश
मुजफ्फरनगर में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी बीजेपी विधायक संगीत
सोम ने शनिवार को सरेंडर करते हुए नरेंद्र मोदी को प्रचार हथकंडा अपनाने
के मुकाबले में पीछे छोड़ दिया। बीजेपी विधायक संगीत सोम ने ऐसे सरेंडर
किया, जैसे वे किसी महान कार्य में योगदान देने के बाद पुलिस हिरासत में जा
रहे हों। गिरफ्तारी के वक्त हिन्दुओं का हृदयसम्राट बनने की ललक संगीत
सोम में झलक रही थी। शायद संगीत सोम को यकीन हो गया कि लोक सभा चुनावों के
बाद नरेंद्र मोदी सत्ता में आयेंगे, जैसे नरेंद्र मोदी एलके आडवाणी के
अवरोधों को तोड़ते हुए पीएम पद उम्मीदवार (एनडीएम) बने हैं।
बीजेपी के विधायक संगीत सोम ने गिरफ्तारी के बाद कहा, मैं अपने धर्म की रक्षा के लिए लड़ता रहूंगा। शायद किसी ने संवाददाता ने पूछने की हिम्मत नहीं की कि आखिर आपका धर्म खतरे में कहां है ? अगर भारत में बहुसंख्यक धर्म संकट में है तो अल्पसंख्यक लोगों में तो असुरक्षा का भाव अधिक होगा। जहां असुरक्षा का भाव है, वहां सुरक्षा के लिए तैयारियां होती हैं, और नतीजा हवा से दरवाजा बजने पर भी अंधेरे में तबाड़तोड़ गोलियां चल जाती हैं।
इस नेता की गिरफ्तारी उसी मामले में हुई है, जिसकी आग समाजवादी पार्टी को अपनी लपटों में लिये हुए है। एक ख़बरिया चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया, तो समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान से मिलता जुलता नाम सामने आया, लेकिन स्टिंग ऑपरेशन पर मोहर उस समय लगती नजर आई, जब आनन फानन में आजम खान ने स्टिंग ऑपरेशन के तुरंत बाद प्रेस से मुखातिब होना लाजमी समझा।
इससे पूर्व यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया, तो लोगों ने उनको काले झंडे दिखाये और स्वागतम कहा। एक अख़बार का शीर्षक तो यह भी था कि हमको लेपटॉप नहीं, सुरक्षा चाहिए। शायद सुरक्षा की गारंटी देना अखिलेश यादव के हाथ में नहीं है, क्यूंकि अगर वे फैसला लेने का मादा रखते तो आजम खान को मनाने जाने की बजाय वे दंगा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के पास जाते। हद है एक मुख्यमंत्री पहले अपने नेता को मनाने जाता है। शायद जनता को सुरक्षा का भरोसा दिलाने से ज्यादा जरूरी है, कि वे अपनी पार्टी को सुरक्षा का भरोसा दिलाये। शायद ऐसा भी लगा हो, कहीं लोक सभा चुनावों में आजम खान की नाराजगी पापा का पीएम कुर्सी वाला स्वप्न न तोड़ दे।
जब हर ओर से थू थू होने लगी तो जनाब को खयाल आया, दुर्गाशक्ति नागपाल का, जिसको कुछ महीने पहले निलंबित कर दिया गया था, क्यूंकि उसके द्वारा एक अवैध इमारत गिरा देने से दंगे होने की आशंका थी, लेकिन मुजफ्फरनगर में दुर्गाशक्ति नागपाल नहीं थी, फिर पचास के करीब जिन्दगियां चली गई और एक लाख के करीब लोग घरों से बेघर हो गये, बिना किसी घर को गिराये।
जो अखिलेश यादव मीडिया के सामने चीख चीख कर कह रहे थे, सरकार का फैसला सही है, दुर्गा शक्ति निलंबन संबंधी, लेकिन सवाल है कि आज अचानक उसी सरकार का फैसला अखिलेश यादव को गलत कैसे लगने लगा। सफेद रंग का कुर्ता जब ज्यादा मैला होने लगा तो अखिलेश यादव ने सोचा होगा, चलो दुर्गा शक्ति सरफ एक्सल से धो लिया जाये।
जो उत्तर प्रदेश में हुआ, शायद मुलायम सिंह यादव के कहने अनुसार वह केवल जातीय झड़प होती, लेकिन अगर राजनेता अपनी राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल न करते। 99.9 फीसद पुलिस विभाग नेताओं में दबाव में काम करता है, इस बात की पुष्टि के लिए किसी से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं, और जो 0.1फीसद सरकारी विभाग का नौकर सरकार के खिलाफ काम करता है, वे दुर्गाशक्ति नागपाल की तरह निलंबित कर दिया जाता है।
अखिलेश यादव की सरकार का पुलिस विभाग में कितना हस्तक्षेप है। इस बात का अंदाजा तो एडीजी(लॉ एंड ऑर्डर) अरूण कुमार की उस गुहार से लगाया जा सकता है, जिसमें अरुण कुमार ने उत्तर प्रदेश से बाहर जाने की राज्य सरकार के सामने अपनी मंशा जाहिर की।
पुलिस विभाग का सामने आया स्टिंग ऑपरेशन सौ फीसद न सही, लेकिन कुछ फीसद तो सही होगा, अगर वो सही है तो सरकार और जनप्रतिनिधि दोनों मुजफ्फरनगर जन संहार के लिये जिम्मेदार हैं।
ऐसा नहीं कि यह दंगे केवल समाजवादी पार्टी के कारण हुये, यह दंगे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक हितों के कारण हुये। इस बात की स्पष्टता तो संगीत सोम की ड्रामामय गिरफ्तारी से हो गई, वे हिन्दुओं का नया सितारा बनकर उभरना चाहता है। चाह बहुत कुछ करवा देती है।
अखिलेश यादव तुम्हारे दाग दुर्गा शक्ति नागपाल सरफ एक्सल से तो न जाये, लेकिन हो सकता है कि हिन्दुत्व पक्षियों का एक झुंड जब सत्ता में आयेगा तो किसी बड़े जन संहार से तुम्हारा छोटा गुनाह छुप जाये, और यकीनन भविष्य में ऐसा होगा, स्थितियों का आकालन बता रहा है, क्यूंकि यहां पर एक सांप फन उठा रहा है।
बस डर है, शाइनिंग इंडिया मिशन, कहीं मिस्र मिशन न बन जाये। जहां पर लोगों ने मुबारक हुस्नी को उतार कर मोहम्मद मर्सी को देश की कमान सौंपी, लेकिन विकास का एजेंडा किसी कोने में सिसकता रहा, और देश में इस्लामिक मत पैर पसारने लगा, एक भीड़ ने मिस्र में एक नये अंदोलन को जन्म दे दिया, जो मुर्सी से आजादी चाहता था।
बीजेपी के विधायक संगीत सोम ने गिरफ्तारी के बाद कहा, मैं अपने धर्म की रक्षा के लिए लड़ता रहूंगा। शायद किसी ने संवाददाता ने पूछने की हिम्मत नहीं की कि आखिर आपका धर्म खतरे में कहां है ? अगर भारत में बहुसंख्यक धर्म संकट में है तो अल्पसंख्यक लोगों में तो असुरक्षा का भाव अधिक होगा। जहां असुरक्षा का भाव है, वहां सुरक्षा के लिए तैयारियां होती हैं, और नतीजा हवा से दरवाजा बजने पर भी अंधेरे में तबाड़तोड़ गोलियां चल जाती हैं।
इस नेता की गिरफ्तारी उसी मामले में हुई है, जिसकी आग समाजवादी पार्टी को अपनी लपटों में लिये हुए है। एक ख़बरिया चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया, तो समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान से मिलता जुलता नाम सामने आया, लेकिन स्टिंग ऑपरेशन पर मोहर उस समय लगती नजर आई, जब आनन फानन में आजम खान ने स्टिंग ऑपरेशन के तुरंत बाद प्रेस से मुखातिब होना लाजमी समझा।
इससे पूर्व यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया, तो लोगों ने उनको काले झंडे दिखाये और स्वागतम कहा। एक अख़बार का शीर्षक तो यह भी था कि हमको लेपटॉप नहीं, सुरक्षा चाहिए। शायद सुरक्षा की गारंटी देना अखिलेश यादव के हाथ में नहीं है, क्यूंकि अगर वे फैसला लेने का मादा रखते तो आजम खान को मनाने जाने की बजाय वे दंगा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के पास जाते। हद है एक मुख्यमंत्री पहले अपने नेता को मनाने जाता है। शायद जनता को सुरक्षा का भरोसा दिलाने से ज्यादा जरूरी है, कि वे अपनी पार्टी को सुरक्षा का भरोसा दिलाये। शायद ऐसा भी लगा हो, कहीं लोक सभा चुनावों में आजम खान की नाराजगी पापा का पीएम कुर्सी वाला स्वप्न न तोड़ दे।
जब हर ओर से थू थू होने लगी तो जनाब को खयाल आया, दुर्गाशक्ति नागपाल का, जिसको कुछ महीने पहले निलंबित कर दिया गया था, क्यूंकि उसके द्वारा एक अवैध इमारत गिरा देने से दंगे होने की आशंका थी, लेकिन मुजफ्फरनगर में दुर्गाशक्ति नागपाल नहीं थी, फिर पचास के करीब जिन्दगियां चली गई और एक लाख के करीब लोग घरों से बेघर हो गये, बिना किसी घर को गिराये।
जो अखिलेश यादव मीडिया के सामने चीख चीख कर कह रहे थे, सरकार का फैसला सही है, दुर्गा शक्ति निलंबन संबंधी, लेकिन सवाल है कि आज अचानक उसी सरकार का फैसला अखिलेश यादव को गलत कैसे लगने लगा। सफेद रंग का कुर्ता जब ज्यादा मैला होने लगा तो अखिलेश यादव ने सोचा होगा, चलो दुर्गा शक्ति सरफ एक्सल से धो लिया जाये।
जो उत्तर प्रदेश में हुआ, शायद मुलायम सिंह यादव के कहने अनुसार वह केवल जातीय झड़प होती, लेकिन अगर राजनेता अपनी राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल न करते। 99.9 फीसद पुलिस विभाग नेताओं में दबाव में काम करता है, इस बात की पुष्टि के लिए किसी से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं, और जो 0.1फीसद सरकारी विभाग का नौकर सरकार के खिलाफ काम करता है, वे दुर्गाशक्ति नागपाल की तरह निलंबित कर दिया जाता है।
अखिलेश यादव की सरकार का पुलिस विभाग में कितना हस्तक्षेप है। इस बात का अंदाजा तो एडीजी(लॉ एंड ऑर्डर) अरूण कुमार की उस गुहार से लगाया जा सकता है, जिसमें अरुण कुमार ने उत्तर प्रदेश से बाहर जाने की राज्य सरकार के सामने अपनी मंशा जाहिर की।
पुलिस विभाग का सामने आया स्टिंग ऑपरेशन सौ फीसद न सही, लेकिन कुछ फीसद तो सही होगा, अगर वो सही है तो सरकार और जनप्रतिनिधि दोनों मुजफ्फरनगर जन संहार के लिये जिम्मेदार हैं।
ऐसा नहीं कि यह दंगे केवल समाजवादी पार्टी के कारण हुये, यह दंगे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक हितों के कारण हुये। इस बात की स्पष्टता तो संगीत सोम की ड्रामामय गिरफ्तारी से हो गई, वे हिन्दुओं का नया सितारा बनकर उभरना चाहता है। चाह बहुत कुछ करवा देती है।
अखिलेश यादव तुम्हारे दाग दुर्गा शक्ति नागपाल सरफ एक्सल से तो न जाये, लेकिन हो सकता है कि हिन्दुत्व पक्षियों का एक झुंड जब सत्ता में आयेगा तो किसी बड़े जन संहार से तुम्हारा छोटा गुनाह छुप जाये, और यकीनन भविष्य में ऐसा होगा, स्थितियों का आकालन बता रहा है, क्यूंकि यहां पर एक सांप फन उठा रहा है।
बस डर है, शाइनिंग इंडिया मिशन, कहीं मिस्र मिशन न बन जाये। जहां पर लोगों ने मुबारक हुस्नी को उतार कर मोहम्मद मर्सी को देश की कमान सौंपी, लेकिन विकास का एजेंडा किसी कोने में सिसकता रहा, और देश में इस्लामिक मत पैर पसारने लगा, एक भीड़ ने मिस्र में एक नये अंदोलन को जन्म दे दिया, जो मुर्सी से आजादी चाहता था।
कुलवंत हैप्पी, संचालक Yuvarocks Dot Com, संपादक Prabhat Abha हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र, उप संपादक JanoDuniya Dot Tv। पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में।
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