यहां बे 'चारे' दोषी लालू, वहां क्या सोचते होंगे जेपी नारायण
कहते हैं कि लालूप्रसाद यादव, जेपी नारायण के इतने खास थे कि वे लालू प्रसाद यादव को घर चलाने के लिए आर्थिक मदद तक देते थे। इतना ही नहीं, लालू प्रसाद यादव भी जेपी पर अपना कॉपीराइट मानते हैं, तभी तो जब अन्ना अंदोलन को जेपी अंदोलन से जोड़कर देखने की कोशिश की जाती है तो सबसे ज्यादा विरोधी सुर लालू प्रसाद यादव के होते हैं।
आज एक बार फिर जेपी को याद किया जा रहा है, हालांकि जेपी नारायण का जन्मदिवस अकसर अमिताभ बच्चन के जन्मदिवस की सुर्खियों में कहीं छुपा रह जाता है। जेपी, जय प्रकाश नारायण। यह नाम नहीं, एक अंदोलन था। जिसने इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की जड़ों को उखाड़ फेंका था। उसकी जगह एक गैर कांग्रेसी सरकार को देश चलाने का मौका दिया। यह सरकार जनता पार्टी की थी, जिसका भी लघु नाम लिखा जाये तो जेपी बनेगा, हालांकि इस सरकार में जेपी ने कोई पद नहीं लिया था। वे हमेशा गैर राजनीतिक रहे।
शायद, स्वर्ग में कहीं विराजमान जेपी को आज दुख भी हो रहा होगा, और खुशी भी। खुशी इस बात की कि उनको कभी राजनीति की लत नहीं लगी, और दुख इस बात का, जो उसका सबसे करीबी चेला था, आज वे एक घोटाले में दोषी पाया गया।
वे सोच रहे होंगे। यह तो वे ही लालू है, जो कभी मेरे भ्रष्टाचार विरोधी अंदोलन में, सबसे आगे होता था। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करता था। फिर सोचते होंगे, नहीं.. नहीं.. यह वे मेरा लालू नहीं, यह तो कोई राजनेता है। यह मेरा लालू नहीं हो सकता।
वे लालू तो कदम दर कदम अंदोलन को आगे बढ़ाता था। वे लालू तो मेरे समर्थकों में जान फूंकता था। मैंने लालू प्रसाद यादव को उसी दिन खो दिया था, जब वे जनता पार्टी की टिकट से सांसद बनकर लोक सभा पहुंचे थे। जब सत्ता के चक्कर में गठजोड़ की राजनीति पर उतारू हो गए थे।
मैं उस कहावत को भूल गया था, जो कदम दर कदम पढ़ाई जाती है, सिखायी जाती है कि एक मच्छली पूरे जल को बिगाड़ देती है, एक सेब दूसरे सेबों को खराब कर देता है, मैंने तो खराब सेबों के बीच अपना सेब रख दिया। मैंने तो गंदे जल में अपनी एक मच्छली छोड़ दी। आखिर नतीजा तो कुछ निकलना था।
सोच में पड़े होंगे जेपी, और सोच रहे होंगे, जब मेरी पुण्यतिथि में पांच दिन शेष होंगे, तब ( 03 अक्टूबर 2013 ) मेरे एक शार्गिद को अदालत सजा सुनाएगी। शायद इस वक्त मुझे कोई याद भी न करे।
वैसे भी मेरा जन्म एक महानायक की जन्म तारीख के साथ आता है। आज वे महानायक है, भले रुपहले पर्दे का, लेकिन मुझे से अधिक नाम है उसका। धन दौलत, शोहरत सब कुछ है उसके पास। उसको चाहने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। मेरा नाम तो सियासतदान लेते हैं, वोट बैंक को निशाना बनाने के लिये, लोगों को भ्रमित करने के लिए।
वैसे लालू प्रसाद यादव, के कारण ही सही, कुछ लोग मुझे याद तो कर रहे होंगे। मेरा उन से शिकवा नहीं, जो मुझे अपना आदर्श मानते हैं। जो मेरी बातें करते हैं, और घर के किसी कोने में बैठे देश के सिस्टम को कोसते हैं, और किसी अंदोलन को जन्म नहीं देते।
वो लोग ही तो मेरे सच्चे आशिक हैं। वे नहीं चाहते मेरा अस्तित्व खत्म हो। जेपी अंदोलन की जगह कोई और अंदोलन जन्म ले। वे मुझे जिन्दा रखना चाहते हैं। वे मेरी कदर करते हैं।
कुलवंत हैप्पी, संचालक Yuvarocks Dot Com, संपादक Prabhat Abha हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र, उप संपादक JanoDuniya Dot Tv। पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में।
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उचित प्रश्न-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
वारे न्यारे कब किये, कब का चारा साफ़ |
पर कोई चारा नहीं, कोर्ट करे ना माफ़ |
कोर्ट करे ना माफ़, दिखे करनी सी भरनी |
गौशाला आबाद, ,पार करले वैतरणी |
फटता अध्यादेश, कहाँ अब जाय पुकारे |
गैयों में आनंद, विलापें गधे दुवारे |
शुक्रिया........... आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
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