fact 'n' fiction : सड़क मेरे मोहल्ले वाली
भारत में सड़क सलामत बन जाये, शायद यह उस सड़क का अपना भाग्य होगा, वरना यहां पर सड़क बनने के बाद उस पर कुदाल आदि चलते हैं। पिछले दिनों मेरे मोहल्ले वाली सड़क बन गई, सही सलामत। यह उसका अपना भाग्य था। सच में उसका भाग्य, क्यूंकि उसको एक सही सोच वाले अधिकारी का दिमाग मिल गया था।
यह पहली सड़क थी, जो सब रीति रिवाज पूरे होने के बाद संपन्न हुई। इसलिये यह सलामत बन गई। आप सोच रहे होंगे। यह कैसी पहेली है। पहेली को सुलझाने के लिये एक लघु कथा सुनाता हूं। छोटी कहानी। कहानी शुरू होती है कुछ महीने पहले। एक अख़बार में ख़बर प्रकाशित हुई, मेरे मोहल्ले की सड़क बन गई। इस सुर्खी ने कई विभागों की नींद उड़ा दी। बस फिर क्या था, दूर संचार, वॉटर सप्लाई और बिजली विभाग के अधिकारियों ने कमर कस ली। नई सड़क बनने के बाद के रीति रिवाज पूरे करने के लिये, दूसरे देशों का तो पता नहीं, लेकिन हमारे भारत में यही रीति है, पहले सड़क बनेगी, फिर अन्य रीति रिवाज विधिवत संपन्न होंगे, जैसे वॉटर सप्लाई लाइन, टेलीफोन लाइन व स्ट्रीट लाइटिंग पोल।
सभी विभाग के कर्मचारी नई बनी सड़क पर पहुंचते हैं। देखते हैं चादर सी पतली बंजरी व तारकोल मिश्रित पट्टी, जो पुरानी कच्ची सड़क के ऊपर डाली गई, देखते ही बोले, इस विभाग की चांदी है। देखो कितना घपला, केवल बीस फीसद से काम चला दिया, 80 फीसद खा गये। भ्रष्टाचार की बातें करते करते सभी विभागों के कर्मचारी अपने अपने काम में जुट गये। शाम होते होते कुछ पत्रकार पहुंचे, फोटो खींचे गये। अगले दिन सुर्खियों में सड़क को खोदे जाने की ख़बरें। सभी विभाग हर्ष के मारे फूले नहीं समा रहे थे। खुश थे कि इस बार भी सुर्खियां हमारे नाम रही।
कुछ दिन बीते। अख़बार में एक और सुर्खी आई। इस सड़क के संदर्भ में, जिसमें एक नगरपालिका का अधिकारी सड़क का रीबन काटते हुए उद्घाटन कर रहा है, और उसकी दाहिनी ओर एक अन्य फोटो प्रकाशित हुई, जिसमें नगरपालिका अधिकारी को सम्मानित करते हुये मोहल्ला वासी उपस्थित थे, और पीछे लगे बैनर पर लिखा था,What an Idea Sirji....पहली सड़क, जो अपने रीति रिवाज पूरे होने के बाद बनी।
चलते चलते एक चुटकला, नहीं.... नहीं... कटुकला
यह पहली सड़क थी, जो सब रीति रिवाज पूरे होने के बाद संपन्न हुई। इसलिये यह सलामत बन गई। आप सोच रहे होंगे। यह कैसी पहेली है। पहेली को सुलझाने के लिये एक लघु कथा सुनाता हूं। छोटी कहानी। कहानी शुरू होती है कुछ महीने पहले। एक अख़बार में ख़बर प्रकाशित हुई, मेरे मोहल्ले की सड़क बन गई। इस सुर्खी ने कई विभागों की नींद उड़ा दी। बस फिर क्या था, दूर संचार, वॉटर सप्लाई और बिजली विभाग के अधिकारियों ने कमर कस ली। नई सड़क बनने के बाद के रीति रिवाज पूरे करने के लिये, दूसरे देशों का तो पता नहीं, लेकिन हमारे भारत में यही रीति है, पहले सड़क बनेगी, फिर अन्य रीति रिवाज विधिवत संपन्न होंगे, जैसे वॉटर सप्लाई लाइन, टेलीफोन लाइन व स्ट्रीट लाइटिंग पोल।
सभी विभाग के कर्मचारी नई बनी सड़क पर पहुंचते हैं। देखते हैं चादर सी पतली बंजरी व तारकोल मिश्रित पट्टी, जो पुरानी कच्ची सड़क के ऊपर डाली गई, देखते ही बोले, इस विभाग की चांदी है। देखो कितना घपला, केवल बीस फीसद से काम चला दिया, 80 फीसद खा गये। भ्रष्टाचार की बातें करते करते सभी विभागों के कर्मचारी अपने अपने काम में जुट गये। शाम होते होते कुछ पत्रकार पहुंचे, फोटो खींचे गये। अगले दिन सुर्खियों में सड़क को खोदे जाने की ख़बरें। सभी विभाग हर्ष के मारे फूले नहीं समा रहे थे। खुश थे कि इस बार भी सुर्खियां हमारे नाम रही।
कुछ दिन बीते। अख़बार में एक और सुर्खी आई। इस सड़क के संदर्भ में, जिसमें एक नगरपालिका का अधिकारी सड़क का रीबन काटते हुए उद्घाटन कर रहा है, और उसकी दाहिनी ओर एक अन्य फोटो प्रकाशित हुई, जिसमें नगरपालिका अधिकारी को सम्मानित करते हुये मोहल्ला वासी उपस्थित थे, और पीछे लगे बैनर पर लिखा था,
टीचर.... टीचर.... यह राजनीति क्या होती है ?
बेटे राजनीति, वो लकीर है, जो दो चचेरे भाईयों को एक दूसरे के सामने खड़ा कर देती है।
टीचर.... टीचर....example
बेटे राजनीति, वो लकीर है, जो दो चचेरे भाईयों को एक दूसरे के सामने खड़ा कर देती है।
टीचर.... टीचर....
बेटा जैसे
कुलवंत हैप्पी, संचालक Yuvarocks Dot Com, संपादक Prabhat Abha हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र, उप संपादक JanoDuniya Dot Tv। पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में।
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