लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है

(1)

जिस्म के जख्म
मिट्टी से भी आराम आए
रूह के जख्मों के लिए
लेप भी काम न आए

(2)
वक्त वो बच्चा है,
जो खिलौने तोड़कर
फिर जोड़ने की
कला सीखता है

(3)
माँ का आँचल
तो हमेशा याद रहा,
मगर, 
भूल गया बूढ़े बरगद को
छाँव तले जिसकी खेला अक्सर।

(4)
जब कभी भी, टूटते सितारे को देखता हूँ
यादों में किसी, अपने प्यारे को देखता हूँ।

(5)
जब तेरी यादें धुँधली सी होने लगे,
तेरे दिए जख्म खरोंच लेता हूँ।

(6)
तेरे शहर में मकानों की कमी नहीं,
लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है
वेलकम लिखा शहर में हर दर पर
खुले जो, मुझे उस दर की जरूरत है

आभार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. माँ का आँचल
    तो हमेशा याद रहा,
    मगर,
    भूल गया बूढ़े बरगद को
    छाँव तले जिसकी खेला अक्सर।


    -क्या बात है!!

    जवाब देंहटाएं
  2. जब तेरी यादें धुँधली सी होने लगे,
    तेरे दिए जख्म खरोंच लेता हूँ।
    यादो को जिन्दा रखने का यह अन्दाज भी निराला है
    बहुत सुन्दर
    वाह

    जवाब देंहटाएं
  3. तेरे शहर में मकानों की कमी नहीं,
    लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है
    वेलकम लिखा शहर में हर दर पर
    खुले जो, मुझे उस दर की जरूरत है



    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

    जवाब देंहटाएं
  4. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. माँ का आँचल
    तो हमेशा याद रहा,
    मगर,
    भूल गया बूढ़े बरगद को
    छाँव तले जिसकी खेला अक्सर।
    BAHUT GAHAREE BAAT HAI. KAISE HO? AAJ KAL NET PAR AANE KAA TIME NAHIN MILATA JAISE HEE MILA KAREGA JAROOR AAOONGEE. JUNE KE BAAD HEE REGULAR HO PAAOONGEE. AASHEERVAAD

    जवाब देंहटाएं
  6. गहरे भाव समेटे रचा ...मन को छु गई

    जवाब देंहटाएं

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