हैप्पी अभिनंदन में हरिप्रसाद शर्मा
जैसे आप जानते ही हैं कि हैप्पी अभिनंदन में हर बार हम किसी न किसी ब्लॉगर हस्ती से रूबरू होते हैं हम सब और जानते हैं उनके दिल की बातें। जो ब्लॉग हस्ती इस बार हमारे बीच मौजूद है, वो पेशे से सरकारी अधिकारी हैं, लेकिन शौक से साहित्य अनुरागी, क्रिकेट कमेंटेटर भी हैं। काव्य अनुरागी से बैंक अधिकारी और उसके बाद ब्लॉगर श्री हरि शर्मा से जानते हैं उनके दिल की बातें उनकी जुबानी।
कुलवंत हैप्पी : आप ब्लॉगजगत मैं कैसे आए, और आने से पहले क्या सोचा था?
हरि शर्मा : भाई कुलवन्त ब्लॉग से मेरा नाता ३ साल का है और ये तब शुरू हुआ जब मै मैनपुरी जिले में था। सोचा यही था कि ये उस आदमी के लिए जो थोड़े अपने विचारों को पठनीय बनाना चाहता है वो ऐसा कर सकता है ब्लॉग के मार्फत। मैंने सबसे पहले अनीता कुमार जी का ब्लॉग पढ़ा, फिर कोशिश करता रहा। और हिन्दी टाइप करना मुश्किल था, जी और पीछे बहुत जाना पड़ेगा।
कुलवंत हैप्पी : हरि जी पहले से ही कवि थे या बैंक अधिकारी के बाद कवि बने?
हरि शर्मा : मेरा पहला सार्वजनिक परिचय क्रिकेट कमेन्ट्रेटर के रूप में था मेरे अपने इलाके में, और इस रूप को मेरे चाहने वाले बहुत पसन्द करते थे, लेकिन साथ साथ कविता प्रेम भी अपनी जगह था २००५ तक मैंने कभी भी अपनी लिखी कविता को संगृहित नहीं किया और नाही सार्वजनिक किया। कवि होने का भ्रम आज भी मुझे नहीं है लेकिन प्रथम श्रेणी का कविता प्रेमी मैं अपने आपको डन्के की चोट पर कहता हूँ, बहुत से प्रसिद्ध कवि लगभग पूरे रटे हुए थे उनमें सबसे अन्त में नाम आज के लोकप्रिय कवि डा. कुमार विश्वास है। हाँ! एक और बात, नौकरी की शुरुआत अधिकारी के रूप मे नहीं हुई लम्बे समय तक क्लर्क रहा।
कुलवंत हैप्पी : क्या आप भी अन्य उच्च बैंक अधिकारियों की तरह काले शीशों के पीछे रहते हैं, और आम जन से नहीं मिलते?
हरि शर्मा : अभी जो दायित्व मेरे पास है उसमें आम जन से कोई सरोकार नही है, लेकिन पहले जब में फ़ील्ड ऑफिसर था बाद में शाखा प्रबंधक बना था, तब शायद अपनी जमात में सबसे ज्यादा आम आदमी के बीच था सिर्फ़ दलाल के अलावा मेरे कमरे में हर किसी का स्वागत था। अभी में जिस कार्यालय में हूँ, वहां समाशोधन का काम होता है। वो केन्द्रीयकृत समाशोधन कार्यालय है।
कुलवंत हैप्पी : क्या ब्लॉग जगत और बैंक कार्य के साथ जुड़ने के बाद आपने क्रिकेट केमेंट्री करना छोड़ दिया?
हरि शर्मा : अब तो बहुत समय हो गया क्रिकेट केमेंट्री छोड़े। कभी कभी अपने शहर जाता हूँ और कोई मैच देखने जाता हूँ तो पुराने लोग शोर करते हैं कि आप केमेन्ट्री करें तो नए लोग भी जगह छोड़ देते हैं लेकिन अब ये यदा कदा ही होता है। जिन्दगी इस तरफ़ से उदास सी है।
कुलवंत हैप्पी : आपने ऊपर अपने शहर जाने की बात की, तो आप अब कहाँ रहते हैं और आपका शहर कौन सा जरूर जानना चाहेंगे?
हरि शर्मा : जी मेरे ब्लॉग का शीर्षक है नगरी नगरी द्वारे द्वारे। ये यात्रा हिन्डौन सिटी जो मेरा पारिवारिक निवास स्थान है वहाँ से शुरू हुई और अभी जोधपुर हूँ । 2004 से एक यात्रा पर हूँ, जिसके दौरान जयपुर, अलीगढ, गाज़ियाबाद, आगरा, भोगाव और अलीपुर खेडा ( दोनों मैन्पुरी जिला) घूमा और अब जोधपुर में हूँ। अगली पोस्टिंग की जल्दी उम्मीद है।
कुलवंत हैप्पी : 2004 से यात्रा पर हैं, इस यात्रा के दौरान कई जगहों पर जाना हुआ, लेकिन सबसे सुखद और अच्छा वातावरण कहाँ मिला?
हरि शर्मा : सुख और दुख साथ चलते रहते है कभी सुख के लिए इन्तेजार करना पड़ता है, हम अगर आने वाली स्थिति के लिए पहले से ही तैयार हों तो बड़े से बड़ा दुख भी छोटा सा लगता है।
कुलवंत हैप्पी : आप ब्लॉगिंग की दुनिया में पिछले तीन साल से हैं, इन तीन सालों में ब्लॉगरों की संख्या ग्राफ बहुत तेजी के साथ बढ़ा है, इससे हिन्दी ब्लॉगिंग को फायदा हुआ या नुक्सान?
हरि शर्मा : सबके ब्लॉग लिखने का मकसद एक नहीं है। मोटे तौर पर ३-४ तरह के लोग यहाँ हैं। पत्रकार जो अपने अतिरिक्त मसाले को यहाँ छाप देते हैं। इसके अलावा साहित्यकार, लिखने की कोशिश करने वाले हम जैसे साहित्य अनुरागी और खुद की अभिव्यक्त करने को तरसते लोग। जितना यहाम हम पढ़ पाते हैं उतना पुस्तके खरीदकर तो पढ़ नहीं सकते तो मेरे लिए तो ब्लॉग का विस्तार एक सुखद सूचना है लेकिन हाँ इसे परिपक्व होने में समय लगेगा जो हर विधा के साथ होता है।
कुलवंत हैप्पी : क्या ब्लॉग केवल ब्लॉगर साथियों के लिए लिखे जाते हैं, उनका आम पाठक से कोई सारोकार नहीं?
हरि शर्मा : आपने बहुत बढिया प्रश्न किया है। मुझे लगता है कि ब्लॉग को पाठकों के लिए होने चाहिए। इसी में इसकी व्यापक सार्थकता है, लेकिन सफ़ल ब्लॉगर वो हैं जिसे अन्य ब्लॉगर ध्यान से पढ़ते हैं। इसमें कोई विरोधाभास नहीं है, पर इस माध्यम को आम पाठक तक पहुँचने में ही सबकी भलाई है। मै खुद १-२ माह पहले तक ब्लॉगवाणी पर नहीं जाता था और खोजकर ही ब्लॉग पढ़ता था।
कुलवंत हैप्पी : जिन्दगी का कोई रोचक और हसीं लम्हा जो मेरे और युवा सोच युवा खयालात के पाठकों के संग बाँटना चाहते हों?
हरि शर्मा : २००४ मे हम लोग पूना गए थे ४ सप्ताह के लिए। वहां से आये तो एक साथी को मैंने मुम्बई घुमाई। अमिताभ जी के बंगले पर पहुंचे। तो मस्खरी के मूड में थे। दरवान से पूछा कि अमित भैया हैं क्या? वो अलर्ट हो गया और बोला नहीं, वो तो जलसा में रहते हैं। फिर मैंने पूछा कि यहां कौन रहता है?, तो वे बोला कि यहां अभिषेक बाबा और मालकिन (जया जी) रहती हैं, तो मैंने पूछा कि जलसा में कौन कौन रहता है। उसने बताया कि वहां साहब और उनकी माताजी रहती हैं। मैंने कहा कि यार अमित भैया आए तो कहना कि आदमी के मकान चाहे कितने ही हो कम से कम रहे तो ठीक से। एक बार ऐसे ही सुनील गवास्कर से मुलाकात हुई
मुम्बई में। उनके आटोग्राफ के लिए लम्बी कतार लगी थी। मैं सीधा गया और चमचों के बीच से निकलते हुए बोला और सुनील कैसे हो? चमचे हट गए। चमचे एक तरफ़ हट गए। सुनते ही गवास्कर बोले मैं ठीक हूँ, आप कैसे हैं। ऐसे ही थोड़ी बात करके उनसे बच्चों के लिए आटोग्राफ लिया और चले आए। ऐसे ही माधव राव सिन्धिया जब केन्द्र में मन्त्री थे तब उनसे स्टेज पर जाकर हाथ मिलाया।
कुलवंत हैप्पी : अंतिम सवाल, अगर मैं या कोई अन्य व्यक्ति जयपुर, अलीगढ़, गाज़ियाबाद, आगरा या जोधपुर जाना चाहे तो कौन सी जगह आप उसको देखने घूमने के लिए सुझाव के तौर पर बताना चाहोगे?
हरि शर्मा : आगरा मे ताज महल को एक तरफ़ रख दें तो शहर के रूप में आकर्षित नही करता, जयपुर शहर भी देखने लायक है और दर्शनीय स्थल भी बहुत हैं। वैसे आपका सूर्य नगरी जोधपुर में भी स्वागत है।
चक्क दे फट्टे : एक बार भगवान जमीं पर आए, वो गलती से भूरा मिस्त्री को मिल गए। वो उसको लेकर शराब के ठेके पर पहुंच गया। वहाँ दोनों ने खूब पी। कुछ देर बाद भूरा मिस्त्री बोला, तुम को चढ़ती क्यों नहीं। आगे से उत्तर आया "मैं भगवान हूँ"। तो भूरा मिस्त्री बोला "चढ़ गई साल्ले नूँ।
कुलवंत हैप्पी : आप ब्लॉगजगत मैं कैसे आए, और आने से पहले क्या सोचा था?
हरि शर्मा : भाई कुलवन्त ब्लॉग से मेरा नाता ३ साल का है और ये तब शुरू हुआ जब मै मैनपुरी जिले में था। सोचा यही था कि ये उस आदमी के लिए जो थोड़े अपने विचारों को पठनीय बनाना चाहता है वो ऐसा कर सकता है ब्लॉग के मार्फत। मैंने सबसे पहले अनीता कुमार जी का ब्लॉग पढ़ा, फिर कोशिश करता रहा। और हिन्दी टाइप करना मुश्किल था, जी और पीछे बहुत जाना पड़ेगा।
कुलवंत हैप्पी : हरि जी पहले से ही कवि थे या बैंक अधिकारी के बाद कवि बने?
हरि शर्मा : मेरा पहला सार्वजनिक परिचय क्रिकेट कमेन्ट्रेटर के रूप में था मेरे अपने इलाके में, और इस रूप को मेरे चाहने वाले बहुत पसन्द करते थे, लेकिन साथ साथ कविता प्रेम भी अपनी जगह था २००५ तक मैंने कभी भी अपनी लिखी कविता को संगृहित नहीं किया और नाही सार्वजनिक किया। कवि होने का भ्रम आज भी मुझे नहीं है लेकिन प्रथम श्रेणी का कविता प्रेमी मैं अपने आपको डन्के की चोट पर कहता हूँ, बहुत से प्रसिद्ध कवि लगभग पूरे रटे हुए थे उनमें सबसे अन्त में नाम आज के लोकप्रिय कवि डा. कुमार विश्वास है। हाँ! एक और बात, नौकरी की शुरुआत अधिकारी के रूप मे नहीं हुई लम्बे समय तक क्लर्क रहा।
कुलवंत हैप्पी : क्या आप भी अन्य उच्च बैंक अधिकारियों की तरह काले शीशों के पीछे रहते हैं, और आम जन से नहीं मिलते?
हरि शर्मा : अभी जो दायित्व मेरे पास है उसमें आम जन से कोई सरोकार नही है, लेकिन पहले जब में फ़ील्ड ऑफिसर था बाद में शाखा प्रबंधक बना था, तब शायद अपनी जमात में सबसे ज्यादा आम आदमी के बीच था सिर्फ़ दलाल के अलावा मेरे कमरे में हर किसी का स्वागत था। अभी में जिस कार्यालय में हूँ, वहां समाशोधन का काम होता है। वो केन्द्रीयकृत समाशोधन कार्यालय है।
कुलवंत हैप्पी : क्या ब्लॉग जगत और बैंक कार्य के साथ जुड़ने के बाद आपने क्रिकेट केमेंट्री करना छोड़ दिया?
हरि शर्मा : अब तो बहुत समय हो गया क्रिकेट केमेंट्री छोड़े। कभी कभी अपने शहर जाता हूँ और कोई मैच देखने जाता हूँ तो पुराने लोग शोर करते हैं कि आप केमेन्ट्री करें तो नए लोग भी जगह छोड़ देते हैं लेकिन अब ये यदा कदा ही होता है। जिन्दगी इस तरफ़ से उदास सी है।
कुलवंत हैप्पी : आपने ऊपर अपने शहर जाने की बात की, तो आप अब कहाँ रहते हैं और आपका शहर कौन सा जरूर जानना चाहेंगे?
हरि शर्मा : जी मेरे ब्लॉग का शीर्षक है नगरी नगरी द्वारे द्वारे। ये यात्रा हिन्डौन सिटी जो मेरा पारिवारिक निवास स्थान है वहाँ से शुरू हुई और अभी जोधपुर हूँ । 2004 से एक यात्रा पर हूँ, जिसके दौरान जयपुर, अलीगढ, गाज़ियाबाद, आगरा, भोगाव और अलीपुर खेडा ( दोनों मैन्पुरी जिला) घूमा और अब जोधपुर में हूँ। अगली पोस्टिंग की जल्दी उम्मीद है।
कुलवंत हैप्पी : 2004 से यात्रा पर हैं, इस यात्रा के दौरान कई जगहों पर जाना हुआ, लेकिन सबसे सुखद और अच्छा वातावरण कहाँ मिला?
हरि शर्मा : सुख और दुख साथ चलते रहते है कभी सुख के लिए इन्तेजार करना पड़ता है, हम अगर आने वाली स्थिति के लिए पहले से ही तैयार हों तो बड़े से बड़ा दुख भी छोटा सा लगता है।
कुलवंत हैप्पी : आप ब्लॉगिंग की दुनिया में पिछले तीन साल से हैं, इन तीन सालों में ब्लॉगरों की संख्या ग्राफ बहुत तेजी के साथ बढ़ा है, इससे हिन्दी ब्लॉगिंग को फायदा हुआ या नुक्सान?
हरि शर्मा : सबके ब्लॉग लिखने का मकसद एक नहीं है। मोटे तौर पर ३-४ तरह के लोग यहाँ हैं। पत्रकार जो अपने अतिरिक्त मसाले को यहाँ छाप देते हैं। इसके अलावा साहित्यकार, लिखने की कोशिश करने वाले हम जैसे साहित्य अनुरागी और खुद की अभिव्यक्त करने को तरसते लोग। जितना यहाम हम पढ़ पाते हैं उतना पुस्तके खरीदकर तो पढ़ नहीं सकते तो मेरे लिए तो ब्लॉग का विस्तार एक सुखद सूचना है लेकिन हाँ इसे परिपक्व होने में समय लगेगा जो हर विधा के साथ होता है।
कुलवंत हैप्पी : क्या ब्लॉग केवल ब्लॉगर साथियों के लिए लिखे जाते हैं, उनका आम पाठक से कोई सारोकार नहीं?
हरि शर्मा : आपने बहुत बढिया प्रश्न किया है। मुझे लगता है कि ब्लॉग को पाठकों के लिए होने चाहिए। इसी में इसकी व्यापक सार्थकता है, लेकिन सफ़ल ब्लॉगर वो हैं जिसे अन्य ब्लॉगर ध्यान से पढ़ते हैं। इसमें कोई विरोधाभास नहीं है, पर इस माध्यम को आम पाठक तक पहुँचने में ही सबकी भलाई है। मै खुद १-२ माह पहले तक ब्लॉगवाणी पर नहीं जाता था और खोजकर ही ब्लॉग पढ़ता था।
कुलवंत हैप्पी : जिन्दगी का कोई रोचक और हसीं लम्हा जो मेरे और युवा सोच युवा खयालात के पाठकों के संग बाँटना चाहते हों?
हरि शर्मा : २००४ मे हम लोग पूना गए थे ४ सप्ताह के लिए। वहां से आये तो एक साथी को मैंने मुम्बई घुमाई। अमिताभ जी के बंगले पर पहुंचे। तो मस्खरी के मूड में थे। दरवान से पूछा कि अमित भैया हैं क्या? वो अलर्ट हो गया और बोला नहीं, वो तो जलसा में रहते हैं। फिर मैंने पूछा कि यहां कौन रहता है?, तो वे बोला कि यहां अभिषेक बाबा और मालकिन (जया जी) रहती हैं, तो मैंने पूछा कि जलसा में कौन कौन रहता है। उसने बताया कि वहां साहब और उनकी माताजी रहती हैं। मैंने कहा कि यार अमित भैया आए तो कहना कि आदमी के मकान चाहे कितने ही हो कम से कम रहे तो ठीक से। एक बार ऐसे ही सुनील गवास्कर से मुलाकात हुई
मुम्बई में। उनके आटोग्राफ के लिए लम्बी कतार लगी थी। मैं सीधा गया और चमचों के बीच से निकलते हुए बोला और सुनील कैसे हो? चमचे हट गए। चमचे एक तरफ़ हट गए। सुनते ही गवास्कर बोले मैं ठीक हूँ, आप कैसे हैं। ऐसे ही थोड़ी बात करके उनसे बच्चों के लिए आटोग्राफ लिया और चले आए। ऐसे ही माधव राव सिन्धिया जब केन्द्र में मन्त्री थे तब उनसे स्टेज पर जाकर हाथ मिलाया।
कुलवंत हैप्पी : अंतिम सवाल, अगर मैं या कोई अन्य व्यक्ति जयपुर, अलीगढ़, गाज़ियाबाद, आगरा या जोधपुर जाना चाहे तो कौन सी जगह आप उसको देखने घूमने के लिए सुझाव के तौर पर बताना चाहोगे?
हरि शर्मा : आगरा मे ताज महल को एक तरफ़ रख दें तो शहर के रूप में आकर्षित नही करता, जयपुर शहर भी देखने लायक है और दर्शनीय स्थल भी बहुत हैं। वैसे आपका सूर्य नगरी जोधपुर में भी स्वागत है।
आभार
कुलवंत हैप्पी
bahut khusi hui mil kar
जवाब देंहटाएंHari anant hari katha ananta,
जवाब देंहटाएंhari sharma ji purusharthi blagar hain, jinhe der rat tak jagate dekhata haun aur subah fir net par hote hain.
inke vishay me jan kar achchha laga. shubhkamnayen
हरि प्रसाद जी से यह मुलाकात बहुत बढ़िया लगी ।
जवाब देंहटाएंHari prasad ji se milkar bahut acha laga.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रही यह मुलाकात ! आभार ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा हरि जी से मिल कर....
जवाब देंहटाएंअमिताभ और गावस्कर के रोचक किस्से बताये शर्मा जी ने .....इनकी खूबियों से भी परिचय हुआ ....शुक्रिया .....!!
जवाब देंहटाएंहरि हरि बोल
जवाब देंहटाएंपर शर्मा मत।
अच्छे साक्षात्कार के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंHappy bhai, Hari ji se yahan milane ke liye shukriya.. Hari sir vastav me ek bahut hi nekdil aur behatreen insaan hain.
जवाब देंहटाएंunka hastiyon se miln eka tareeka bhi khoob bhaya.. :)
Jai Hind...
अच्छा लगा हरि प्रसाद जी से मिल कर...आभार !!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
हरि प्रसाद जी से मिल कर आनद आया!
जवाब देंहटाएंआगरा मे ताज महल को एक तरफ़ रख दें तो शहर के रूप में आकर्षित नही करता, बिलकुल सही... यहाँ का पानी भी बहुत मैला है. (छोटे से अनुभव के आधार पे कहा है)
हरि जी से बातचीत बहुत ही रोचक लगी.....उनका काव्यानुराग सचमुच काबिल-ए-तारीफ़ है.
जवाब देंहटाएंबड़ी शख्शियत और अच्छी जानकारी,अच्छा लगा मिल के .
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
हरि जी का साक्षात्कार पढा़ अच्छा लगा । उन्हें जानने का अवसर मिला । हरिजी की यह बात काफी हद तक सही है कि आगरा में ताजमहल के अलावा और कुछ नहीं है । वैसे मैं आगरा की ही बेटी हूं लेकिन वहां से निकले हुए पूरे उन्नीस वर्ष हो गए हैं इसलिए अब वह शहर अपना सा नहीं लगता । मैंने पांच साल पहले जयपुर घूमा था लेकिन अभी भी जयपुर घूमने की ललक है ।
जवाब देंहटाएंhariprasad sharmajee se milane ke liye dhanyvad....
जवाब देंहटाएंशर्मा जी से मिल बहुत आनद आया !! आभार आपका !!
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