कंधे बदलते देखे

चिता पर तो अक्सर लाशें जलती हैं दोस्तो,
मैंने तो जिन्दा इंसान चिंता में जलते देखे।

तब जाना, जरूरत न पैरों की चलने के लिए
जब भारत में कानून बिन पैर चलते देखे।

फरेबियों को जफा भी रास आई दुनिया में,
सच्चे दिल आशिक अक्सर हाथ मलते देखे।

सुना था मैंने, चार कंधों पर जाता है इंसाँ
मगर, कदम दर कदम कंधे बदलते देखे।

कुछ ही थे, जिन्होंने बदले वक्त के साँचे
वरना हैप्पी, मैंने लोग साँचों में ढलते देखे। 

चलते चलते : प्रिय मित्र जनक सिंह झाला की कलम से निकले कुछ अल्फाज।
हमारे जनाजे को उठाने वाले कंधे बदले,
रूह के रुकस्त होने पै कुछ रिश्ते बदले,
एक तेरा सहारा काफी था मेरे दोस्त,
वरना, जिंदगी में कुछ लोग अपने आपसे बदले।
Soldier of Love
आभार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. सुना था मैंने, चार कंधों पर जाता है इंसाँ
    मगर, कदम दर कदम कंधे बदलते देखे।
    अब कन्धे भी कहाँ नसीब है
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन भाव लिए बढ़िया रचना कुलवंत जी बधाई हो जी ....

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ ही थे, जिन्होंने बदले वक्त के साँचे
    वरना हैप्पी, मैंने लोग साँचों में ढलते देखे।
    Vastvikta ko bayan karati panktiyan....bahut behtreen rachana!!

    जवाब देंहटाएं

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