नेता, अभिनेता और प्रचार विक्रेता

Change Your Brain, Change Your Body: Use Your Brain to Get and Keep the Body You Have Always Wantedजब हम तीनों बहन भाई छोटे थे, तब आम बच्चों की तरह हमको भी टीवी देखने का बहुत शौक था, मुझे सबसे ज्यादा शौक था। मेरे कारण ही घर में कोई टीवी न टिक सका, मैं उसके कान (चैनल ट्यूनर) मोड़ मोड़कर खराब कर देता था। पिता को अक्सर सात बजे वाली क्षेत्रिय ख़बरें सुनी होती थी, वो सात बजे से पहले ही टीवी शुरू कर लेते थे, लेकिन जब कभी हमें टीवी देखते देखते देर रात होने लगती तो बाहर सोने की कोशिश कर रहे पिता की आवाज आती,"कंजरों बंद कर दो, इन्होंने तो पैसे कमाने हैं, तुम्हें बर्बाद कर देंगे टीवी वाले"।

तब पिता की बात मुझे बेहद बुरी लगती, लगे भी क्यों न टीवी मनोरंजन के लिए तो होता है, और अगर कोई वो भी न करने दे तो बुरा लगता ही है, लेकिन अब इंदौर में पिछले पाँच माह से अकेला रह रहा हूँ, घर में केबल तार भी है, मगर देखने को मन नहीं करता, क्योंकि पिता की कही हुई वो कड़वी बात आज अहसास दिलाती है कि देश के नेता, अभिनेता और अब प्रचार विक्रेता (न्यूज चैनल) भी देश की जनता को उलझाने में लगे हुए हैं।

आज 24 घंटे 7 दिन निरंतर चलने वाले न्यूज चैनल वो सात बजे वाली खबरों सी गरिमा बरकरार नहीं रख पा रहे, पहले जनता को नशे की अवस्था में रखने का काम केवल अभिनेता लोग करते थे, लेकिन अब वो काम हमारे प्रचार विक्रेता भी करने लगे हैं। पहले एक को रोते थे हम, अब तो पूरे का पूरा तलाब गंदा हो गया है। देश में सेक्स को तो निरंतर पाप कह कहकर दबाया गया, लेकिन सेक्स को भीतर ज्वालामुखी बनाने वाले सिनेमे रूपी लावे को निरंतर आजादी दी गई, जल्द ही रात को पोर्न फिल्मों का प्रचलन भी शुरू हो जाएगा।

मेरे पिता कोई कॉलेज प्रोफेसर नहीं थे, बल्कि एक आम किसान थे, फिर भी आज उनकी एक एक बात सत्य होती महसूस हो रही है, वो अक्सर कहते थे आँवले और समझदार की बात का स्वाद बाद में मालूम पड़ता है, सच में आज वो स्वाद महसूस हो रहा है। देश की जनता का ध्यान असली मुद्दों की तरफ जाए ही ना, ऐसा करने के लिए मनोरंजन को अश्लीलता की सभी हदें पार करने की आज्ञा दे डाली। इतना ही नहीं, अपनी प्रचारक रैलियों में भी सुंदरियों को लाकर खड़ा करना शुरू कर दिया नेताओं ने। जहाँ जहाँ टीवी मनोरंजन जैसी नशीली वस्तु नहीं पहुंची, वहां वहाँ लोग अपने मुद्दों को बनवाने के लिए, अपने हकों को माँगने के लिए गलत रास्तों की ओर चल दिए, और बन गए नक्सलवादी।

टीवी मनोरंजन के बाद एक आस की किरण बन उभरे थे न्यूज चैनल, लेकिन वो भी एक प्रचार विक्रेता बनकर रह गए, वो भी आम आदमी को भ्रमित करने लगे। आज ख़बरों में क्या है, नेता, अभिनेता और प्रचार विक्रेता। यकीन नहीं आता तो हाल में उठ रहा अमिताभ बच्चन का मसला क्या है? शाहरुख खान बाल ठाकरे का मुद्दा क्या था? प्रचार विक्रेता लगा हुआ है, फुल प्रचार करने में। मैं मीडिया को एक डाकिया मानता था, जो आम जनता की बात खुली चिट्ठी में लिखकर सरकार तक और सरकार की बात आम जन तक पहुंचाता था, लेकिन आज तो जनता तक सिर्फ और सिर्फ गॉशिप पहुंचाया जाता है या फिर सरकारी विज्ञापनों में प्रकाशित मन अनुसार तैयार किए विकास के झूठे आंकड़े।
भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. न्यूज चैनल, लेकिन वो भी एक प्रचार विक्रेता बनकर रह गए, वो भी आम आदमी को भ्रमित करने लगे।

    बिलकुल सही फ़रमाया कुलवंत जी आपने

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