आमिर खान की सफलता के पीछे क्या?
'तारे जमीं पर' एवं 'थ्री इड्यिटस' में देश के शिक्षा सिस्टम के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए आमिर खान को रुपहले पर्दे पर तो सबने देखा होगा। इन दोनों फिल्मों की अपार सफलता ने जहां आमिर खान के एक कलाकार रूपी कद को और ऊंचा किया है, वहीं आमिर खान के गम्भीर और संजीदा होने के संकेत भी दिए हैं।
इन दिनों फिल्मों में आमिर खान का किरदार अलग अलग था। अगर 'तारे जमीं पर' में आमिर खान एक अदार्श टीचर था तो 'थ्री इड्यिटस' में एक अलहदा विद्यार्थी था, जो कुछ अलहदा ही करना चाहता था। इन किरदारों में अगर कुछ समानता नज़र आई तो एक जागरूक व्यक्ति का स्वाभाव और कुछ लीक से हटकर करने की जिद्द। इन दोनों किरदारों में शिक्षा सिस्टम पर सवालिया निशान लगाने वाले आमिर खान असल जिन्दगी में केवल 12वीं पास हैं। यह बात जानकर शायद किसी को हैरानी हो, लेकिन यह हकीकत है।
आमिर खान ने अपना कद इतना ऊंचा कर लिया है कि कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर सकता कि आप कितने पढ़े हैं। शायद यह सवाल उनकी काबलियत को देखते हुए कहीं गुम हो जाता है। कभी कभी लगता है कि आमिर खान ने देश के शिक्षा सिस्टम से तंग आकर स्कूली पढ़ाई को ज्यादा अहमियत नहीं दी या फिर उसने जिन्दगी की असली पाठशाला से इतना कुछ सीख लिया कि स्कूली किताबें उसके लिए आम किताबें बनकर रहेगीं।
ऐसा नहीं कि आमिर खान को पढ़ने का शौक नहीं था, आमिर खान ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि वो घर पहुंचते सबसे पहले टीवी रिमोट नहीं बल्कि किताबें उठाते हैं। उनके बारे में किरण राव तो यहाँ तक कहती हैं, "वो पढ़ने के इतने शौकीन हैं कि टॉयलेट और कार में किताबें साथ ले जाते हैं"। वो बात जुदा है कि वो किताबें स्कूल पाठ्यक्रम की नहीं होती। अगर आज आमिर खान एक सफल अभिनेता, फिल्म निर्माता और फिल्म निर्देशक हैं, तो इसमें उसकी स्कूल पढ़ाई नहीं बल्कि वो किताबी ज्ञान है, जो उसने छ: साल की उम्र से अब तक विद्वानों की किताबें पढ़कर अर्जित किया है।
सफलता की जिस शिखर पर आमिर खान आज पहुंच चुके हैं, वहां पहुंचते बहुत सारे व्यक्ति जमीं छोड़ देते हैं, पैसे और शोहरत के घुम्मड में सोचने की शक्ति तक खो देते हैं, लेकिन जिन्दगी की असल पाठशाला में पढ़े आमिर इसलिए बरकरार हैं कि उन्होंने कभी दौलत और शोहरत को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। और कभी जमीं नहीं छोड़ी।
आमिर अपने किरदारों में इस तरह ढल जाते हैं, जैसे वो असल जिन्दगी में ही उन किरदारों को जी रहे हो। इस तरह का ढलना उस व्यक्ति के बस में ही हो सकता है, जो महावीर के उस कथन को जानता हो, जिसमें कहा गया है कि अगर कुछ सीखना है तो अपने दिमाग के बरतन को पूरी तरह खाली कर लो। तभी उसमें कुछ नया ग्रहण कर पाओगे। आमिर खान के किरदारों में दोहराव नाम की चीज आज तक नहीं देखने को मिली। यह बात भी इस तरह संकेत करती है कि आमिर खान कुछ नया करने से पहले अपने आपको पूरी तरह खाली कर लेते हैं, और फिर नए किरदार को नए विचार को अपने भीतर समा लेते हैं।
इसके अलावा मुझे आमिर खान की सफलता और उसके युवापन के पीछे उसका स्पष्टवादी सोच का होना बहुत ज्यादा नजर आता है। आमिर खान को कई बार मीडिया से बात करते हुए देखा है, वो अपनी बात पूरी स्पष्टता और निर्भय होकर कहता है। उसकी स्पष्टवादी नीति है, जो उसको 44 साल की उम्र में भी युवा रखे हुए है। किसी विचारक ने लिखा है कि अगर आप ताउम्र युवा रहना चाहते हो तो अपनी सोच को इतना स्पष्टवादी बना दो, अस्पष्टता बाकी न रहे। स्पष्टवादी व्यक्ति चिंतारहित हो जाता है और भयमुक्त हो जाता है, वो करनी में यकीन करता है। आमिर खान युवा पीढ़ी के लिए एक अदार्श व्यक्ति है, और आमिर खान से युवाओं को सीखना चाहिए।
इन दिनों फिल्मों में आमिर खान का किरदार अलग अलग था। अगर 'तारे जमीं पर' में आमिर खान एक अदार्श टीचर था तो 'थ्री इड्यिटस' में एक अलहदा विद्यार्थी था, जो कुछ अलहदा ही करना चाहता था। इन किरदारों में अगर कुछ समानता नज़र आई तो एक जागरूक व्यक्ति का स्वाभाव और कुछ लीक से हटकर करने की जिद्द। इन दोनों किरदारों में शिक्षा सिस्टम पर सवालिया निशान लगाने वाले आमिर खान असल जिन्दगी में केवल 12वीं पास हैं। यह बात जानकर शायद किसी को हैरानी हो, लेकिन यह हकीकत है।
आमिर खान ने अपना कद इतना ऊंचा कर लिया है कि कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर सकता कि आप कितने पढ़े हैं। शायद यह सवाल उनकी काबलियत को देखते हुए कहीं गुम हो जाता है। कभी कभी लगता है कि आमिर खान ने देश के शिक्षा सिस्टम से तंग आकर स्कूली पढ़ाई को ज्यादा अहमियत नहीं दी या फिर उसने जिन्दगी की असली पाठशाला से इतना कुछ सीख लिया कि स्कूली किताबें उसके लिए आम किताबें बनकर रहेगीं।
ऐसा नहीं कि आमिर खान को पढ़ने का शौक नहीं था, आमिर खान ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि वो घर पहुंचते सबसे पहले टीवी रिमोट नहीं बल्कि किताबें उठाते हैं। उनके बारे में किरण राव तो यहाँ तक कहती हैं, "वो पढ़ने के इतने शौकीन हैं कि टॉयलेट और कार में किताबें साथ ले जाते हैं"। वो बात जुदा है कि वो किताबें स्कूल पाठ्यक्रम की नहीं होती। अगर आज आमिर खान एक सफल अभिनेता, फिल्म निर्माता और फिल्म निर्देशक हैं, तो इसमें उसकी स्कूल पढ़ाई नहीं बल्कि वो किताबी ज्ञान है, जो उसने छ: साल की उम्र से अब तक विद्वानों की किताबें पढ़कर अर्जित किया है।
सफलता की जिस शिखर पर आमिर खान आज पहुंच चुके हैं, वहां पहुंचते बहुत सारे व्यक्ति जमीं छोड़ देते हैं, पैसे और शोहरत के घुम्मड में सोचने की शक्ति तक खो देते हैं, लेकिन जिन्दगी की असल पाठशाला में पढ़े आमिर इसलिए बरकरार हैं कि उन्होंने कभी दौलत और शोहरत को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। और कभी जमीं नहीं छोड़ी।
आमिर अपने किरदारों में इस तरह ढल जाते हैं, जैसे वो असल जिन्दगी में ही उन किरदारों को जी रहे हो। इस तरह का ढलना उस व्यक्ति के बस में ही हो सकता है, जो महावीर के उस कथन को जानता हो, जिसमें कहा गया है कि अगर कुछ सीखना है तो अपने दिमाग के बरतन को पूरी तरह खाली कर लो। तभी उसमें कुछ नया ग्रहण कर पाओगे। आमिर खान के किरदारों में दोहराव नाम की चीज आज तक नहीं देखने को मिली। यह बात भी इस तरह संकेत करती है कि आमिर खान कुछ नया करने से पहले अपने आपको पूरी तरह खाली कर लेते हैं, और फिर नए किरदार को नए विचार को अपने भीतर समा लेते हैं।
इसके अलावा मुझे आमिर खान की सफलता और उसके युवापन के पीछे उसका स्पष्टवादी सोच का होना बहुत ज्यादा नजर आता है। आमिर खान को कई बार मीडिया से बात करते हुए देखा है, वो अपनी बात पूरी स्पष्टता और निर्भय होकर कहता है। उसकी स्पष्टवादी नीति है, जो उसको 44 साल की उम्र में भी युवा रखे हुए है। किसी विचारक ने लिखा है कि अगर आप ताउम्र युवा रहना चाहते हो तो अपनी सोच को इतना स्पष्टवादी बना दो, अस्पष्टता बाकी न रहे। स्पष्टवादी व्यक्ति चिंतारहित हो जाता है और भयमुक्त हो जाता है, वो करनी में यकीन करता है। आमिर खान युवा पीढ़ी के लिए एक अदार्श व्यक्ति है, और आमिर खान से युवाओं को सीखना चाहिए।
आभार
कुलवंत हैप्पी
accha lekh .
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद देखा है ब्लाग। बहुत अच्छी प्रेरणा और सीख देती प्रस्तुती के लिये बधाई। आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंveer ji bahut wadiya . young generation nu bahut wadiya mesg milda hai . thanks n congrats .
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