दिल्ली की प्रशासक महिला, फिर महिला असुरक्षित!
दिल्ली गैंगरेप मामले ने उस तरह तुल पकड़ लिया, जिस तरह मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले ने। भले ही इससे पहले भी गैंगरेप हुए थे, भले ही इससे पहले भी आतंकवादी हमले हुए थे। शायद किसी न किसी चीज की एक हद होती है, जब हद पार हो जाए तो उसका विनाश तय होता है।
दिल्ली गैंगरेप के बाद लोग सड़कों पर उतर आए, मगर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं, उनमें हिम्मत नहीं कि वो रेप पीड़िता से मिल सकें, लगातार तीन बार दिल्ली की जनता ने उनको मुख्यमंत्री बनाया। दिल्ली का प्रशासन एक महिला के हाथ में है, मगर हैरत की बात है कि दिल्ली को महिलाओं के लिए असुरक्षित माना जा रहा है। इससे पहले दिल्ली पर सुषमा स्वराज का राज रहा। निरंतर महिलाएं दिल्ली की सत्ता संभालें हुए हैं, मगर फिर भी दिल्ली सुरक्षित नहीं महिलाओं के लिए।
देश की सबसे बड़ी पार्टी को चलाने वाली सोनिया गांधी दिल्ली में दस जनपथ पर रहती हैं। वहीं, सेक्सी शब्द को सुंदरता की संज्ञा देने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा भी तो दिल्ली में बसती हैं। गैंग रेप मामले ने जैसे ही तुल पकड़ा तो सेक्सी शब्द की सुंदरता से तुलना करने वाली ममता शर्मा ने बलात्कारियों नपुंसक बना देना चाहिए ताकि वे अपने जीवन के हर दिन पर पछताएं, वाला बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ लिया।
मुम्बई की ठुमके लगाने वाली जय बच्चन, ''संजय निरुपम के एक अदाकारा के संदर्भ में दिए बयान को मद्देनजर रखते हुए'' सांसद में गैंगरेप मामले को लेकर रो पड़ती हैं, मगर दिल्ली में बैठी हुई महिलाओं में हिम्मत नहीं कि वो पीड़िता के सामने जाकर उसका हाल चाल पूछ पाएं। शीला दीक्षित बयान देती हैं कि उनमें हिम्मत नहीं कि वो पीड़िता से मिल सकें, सवाल तो यह है कि अगर अस्पताल में पड़ी लड़की की जगह उनकी अपनी बेटी होती तो, क्या वो फिर भी उक्त बयान देती।
दिल्ली को चंडीगढ़ से सीख लेनी होगी। चंडीगढ़ पुलिस ने गैंग रेप एवं सार्वजनिक स्थलों पर होने वाली छेड़खानी को रोकने के लिए विशेष मुहिम चलाई है। चंडीगढ़ पुलिस ने कुछ महिला पुलिस कर्मचारियों को कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों का रूप दे दिया एवं उनको उन जगहों पर भेजा, जहां से सर्वाधिक लड़कियां अपने कॉलेजों की तरफ जाती हैं। मनचलों को पता नहीं होता कि छात्राओं सी लगने वाली लड़कियां पुलिस कर्मचारी हैं, जैसे ही मनचले अपना मन बहलाने के लिए अपने शरारती हाथों को आगे बढ़ाते हैं, पीछे कैमरे में कैच कर रहे अन्य पुरुष पुलिस कर्मचारी मनचलों को दबोच लेते हैं।
जब ऐसे शरारती तत्वों को हम सार्वजनिक स्थलों पर पकड़ेंगे एवं उनकी वहीं पर सार्वजनिक तौर पर इज्जत उतारेंगे तो कहीं न कहीं इससे समाज में सकारात्मक संकेत मिलेंगे। इससे पूर्व बठिंडा में तैनात एक पुलिस कर्मचारी सुबह सुबह बस स्टेंडों पर पहुंच जाता था, वो देखता लड़के वहां किस तरह से लड़कियों के साथ व्यवहार करते हैं, बस संदिग्ध युवाओं की घटनास्थल पर धुलाई कर देता। उसके नाम का डर पूरे शहर में फैल गया। दुनिया किसी बात से डरे न डरे, लेकिन डर के आगे भूत भी नाचते हैं।
डर पैदा करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, नहीं तो पुलिस लाठीचार्ज, पानी की बौछारें एवं गैसी गोले लोगों के बढ़ते आक्रोश को कभी नहीं रोक पाएंगे। आक्रोश का दमन हमेशा असफल सिद्ध होता है। विश्व प्रसिद्ध लेखिका तस्लीम नसरीन लिखती हैं, भारतीय महिला सदियों से जुल्म को सहती आ रही है। अंत वो गुस्से हुई एवं सड़कों पर उतरी। मुम्बई से एक फिल्मी अदाकार डेजी ईरानी कहती हैं, बलात्कारियों को मारो नहीं, नपुंसक बनाकर छोड़ दो।
दिल्ली गैंगरेप के बाद लोग सड़कों पर उतर आए, मगर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं, उनमें हिम्मत नहीं कि वो रेप पीड़िता से मिल सकें, लगातार तीन बार दिल्ली की जनता ने उनको मुख्यमंत्री बनाया। दिल्ली का प्रशासन एक महिला के हाथ में है, मगर हैरत की बात है कि दिल्ली को महिलाओं के लिए असुरक्षित माना जा रहा है। इससे पहले दिल्ली पर सुषमा स्वराज का राज रहा। निरंतर महिलाएं दिल्ली की सत्ता संभालें हुए हैं, मगर फिर भी दिल्ली सुरक्षित नहीं महिलाओं के लिए।
देश की सबसे बड़ी पार्टी को चलाने वाली सोनिया गांधी दिल्ली में दस जनपथ पर रहती हैं। वहीं, सेक्सी शब्द को सुंदरता की संज्ञा देने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा भी तो दिल्ली में बसती हैं। गैंग रेप मामले ने जैसे ही तुल पकड़ा तो सेक्सी शब्द की सुंदरता से तुलना करने वाली ममता शर्मा ने बलात्कारियों नपुंसक बना देना चाहिए ताकि वे अपने जीवन के हर दिन पर पछताएं, वाला बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ लिया।
मुम्बई की ठुमके लगाने वाली जय बच्चन, ''संजय निरुपम के एक अदाकारा के संदर्भ में दिए बयान को मद्देनजर रखते हुए'' सांसद में गैंगरेप मामले को लेकर रो पड़ती हैं, मगर दिल्ली में बैठी हुई महिलाओं में हिम्मत नहीं कि वो पीड़िता के सामने जाकर उसका हाल चाल पूछ पाएं। शीला दीक्षित बयान देती हैं कि उनमें हिम्मत नहीं कि वो पीड़िता से मिल सकें, सवाल तो यह है कि अगर अस्पताल में पड़ी लड़की की जगह उनकी अपनी बेटी होती तो, क्या वो फिर भी उक्त बयान देती।
दिल्ली को चंडीगढ़ से सीख लेनी होगी। चंडीगढ़ पुलिस ने गैंग रेप एवं सार्वजनिक स्थलों पर होने वाली छेड़खानी को रोकने के लिए विशेष मुहिम चलाई है। चंडीगढ़ पुलिस ने कुछ महिला पुलिस कर्मचारियों को कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों का रूप दे दिया एवं उनको उन जगहों पर भेजा, जहां से सर्वाधिक लड़कियां अपने कॉलेजों की तरफ जाती हैं। मनचलों को पता नहीं होता कि छात्राओं सी लगने वाली लड़कियां पुलिस कर्मचारी हैं, जैसे ही मनचले अपना मन बहलाने के लिए अपने शरारती हाथों को आगे बढ़ाते हैं, पीछे कैमरे में कैच कर रहे अन्य पुरुष पुलिस कर्मचारी मनचलों को दबोच लेते हैं।
जब ऐसे शरारती तत्वों को हम सार्वजनिक स्थलों पर पकड़ेंगे एवं उनकी वहीं पर सार्वजनिक तौर पर इज्जत उतारेंगे तो कहीं न कहीं इससे समाज में सकारात्मक संकेत मिलेंगे। इससे पूर्व बठिंडा में तैनात एक पुलिस कर्मचारी सुबह सुबह बस स्टेंडों पर पहुंच जाता था, वो देखता लड़के वहां किस तरह से लड़कियों के साथ व्यवहार करते हैं, बस संदिग्ध युवाओं की घटनास्थल पर धुलाई कर देता। उसके नाम का डर पूरे शहर में फैल गया। दुनिया किसी बात से डरे न डरे, लेकिन डर के आगे भूत भी नाचते हैं।
डर पैदा करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, नहीं तो पुलिस लाठीचार्ज, पानी की बौछारें एवं गैसी गोले लोगों के बढ़ते आक्रोश को कभी नहीं रोक पाएंगे। आक्रोश का दमन हमेशा असफल सिद्ध होता है। विश्व प्रसिद्ध लेखिका तस्लीम नसरीन लिखती हैं, भारतीय महिला सदियों से जुल्म को सहती आ रही है। अंत वो गुस्से हुई एवं सड़कों पर उतरी। मुम्बई से एक फिल्मी अदाकार डेजी ईरानी कहती हैं, बलात्कारियों को मारो नहीं, नपुंसक बनाकर छोड़ दो।
डर पैदा करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, प्रसासक चाहे महिला हो या पुरुष,,,,
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