असली 'द व्हाइट टाइगर' नरेंद्र मोदी
अपनी पहली बुक 'द व्हाइट टाइगर' से धूम मचाने देने वाले अरविंद अडिगा को अगर अपनी दूसरी बुक लिखने का मन करे तो वो नरेंद्र मोदी पर लिख सकते हैं, क्यूंकि नरेंद्र मोदी भी 'अरविंद अडिगा' की किताब 'द व्हाइट टाइगर' के किरदार की तरह काफी उतार चढ़ावों से गुजरते हुए गुजरात की सत्ता पर विराजमान हुए हैं। नरेंद्र मोदी का जन्म उत्तर गुजरात में पड़तते वडनगर कस्बे के एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता चाय बेचने का कार्य करते थे, उनकी मां हीरा बा को आज भी विश्वास नहीं होता कि उनका पुत्र नरेंद्र आज देश की राजनीति में सबसे बड़े कद के नेताओं को मात दे रहा है।
नरेंद्र मोदी, चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, जबकि 2012 के विधान सभा चुनावों में हुई उनकी इस जीत को उनकी चुनावी हैट्रिक कहा जा रहा है। दरअसल केशुभाई पटेल के 2001 में त्याग पत्र देने के बाद तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अपनी सरकार की बागडोर नरेंद्र मोदी को सौंप दी थी। शायद तब भाजपा को भी अंदाजा न था कि नरेंद्र मोदी इतना लम्बा राजनीति की पिच पर खेल पाएंगे, क्यूंकि गुजरात की राजनीति में इतना लम्बा तब तक किसी भी मुख्यमंत्री ने नहीं खेला था।
1960 से लेकर 2001 तक गुजरात के अंदर लगभग 5 बार तो राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। गुजरात के अंदर 1960 के बाद सबसे पहले कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई, तो जीवराज मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1960 से 1971 तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी को तीन मुख्यमंत्री क्रमश: जीवराज मेहता, बलवंत राय मेहता, हतेंद्रभाई देसाई बनाने पड़े। 1971 में पहली बार गुजरात के अंदर राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
भाजपा ने गुजरात में पहली बार सत्ता में उस वक्त कदम रखा, जब 1995 के दौरान केशुभाई की अगुवाई वाली भाजपा ने चुनावों में विजय अर्जित की, लेकिन केशुभाई की अगुवाई वाली सरकार 221 दिन चली, इसके बाद इस सरकार का नेतृत्व सुरेश मेहता के हाथों में आया, जो भी 365 दिन पूरे न कर सके, और राष्ट्रपति शासन गुजरात में फिर लागू हो गया।
1998, भाजपा केशुभाई की अगुवाई में एक बार गुजरात के सिंहासन पर बैठी, मगर 2001 में केशुभाई पटेल द्वारा त्याग पत्र दिए जाने के बाद सत्ता नरेंद्र मोदी के हाथ में आई, जो आज तक उनके हाथों में है। नरेंद्र मोदी गुजरात के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो तीन बार लगातार चुनाव जीतकर सत्ता में लौटे हैं, और उनके शासन के बाद गुजरात के अंदर पिछले 11-12 सालों में एक बार भी राष्ट्रपति शासन लागू करने की नौबत नहीं आई।
नरेंद्र मोदी, चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, जबकि 2012 के विधान सभा चुनावों में हुई उनकी इस जीत को उनकी चुनावी हैट्रिक कहा जा रहा है। दरअसल केशुभाई पटेल के 2001 में त्याग पत्र देने के बाद तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अपनी सरकार की बागडोर नरेंद्र मोदी को सौंप दी थी। शायद तब भाजपा को भी अंदाजा न था कि नरेंद्र मोदी इतना लम्बा राजनीति की पिच पर खेल पाएंगे, क्यूंकि गुजरात की राजनीति में इतना लम्बा तब तक किसी भी मुख्यमंत्री ने नहीं खेला था।
1960 से लेकर 2001 तक गुजरात के अंदर लगभग 5 बार तो राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। गुजरात के अंदर 1960 के बाद सबसे पहले कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई, तो जीवराज मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1960 से 1971 तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी को तीन मुख्यमंत्री क्रमश: जीवराज मेहता, बलवंत राय मेहता, हतेंद्रभाई देसाई बनाने पड़े। 1971 में पहली बार गुजरात के अंदर राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
भाजपा ने गुजरात में पहली बार सत्ता में उस वक्त कदम रखा, जब 1995 के दौरान केशुभाई की अगुवाई वाली भाजपा ने चुनावों में विजय अर्जित की, लेकिन केशुभाई की अगुवाई वाली सरकार 221 दिन चली, इसके बाद इस सरकार का नेतृत्व सुरेश मेहता के हाथों में आया, जो भी 365 दिन पूरे न कर सके, और राष्ट्रपति शासन गुजरात में फिर लागू हो गया।
1998, भाजपा केशुभाई की अगुवाई में एक बार गुजरात के सिंहासन पर बैठी, मगर 2001 में केशुभाई पटेल द्वारा त्याग पत्र दिए जाने के बाद सत्ता नरेंद्र मोदी के हाथ में आई, जो आज तक उनके हाथों में है। नरेंद्र मोदी गुजरात के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो तीन बार लगातार चुनाव जीतकर सत्ता में लौटे हैं, और उनके शासन के बाद गुजरात के अंदर पिछले 11-12 सालों में एक बार भी राष्ट्रपति शासन लागू करने की नौबत नहीं आई।
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