अब तुम ही कहो

सरकार पुरानी है
उसकी वो ही कहानी है
ऑफिस में वजीर,
तो जनपथ रहती रानी है

वो चुपके से बयान देते हैं
लोग कहां ध्‍यान देते हैं
चंद पैसों के बदले में
गिरवी रख हिन्‍दुस्‍तान देते हैं

नहीं कृष्‍ण कोई यहां, तभी तो
आबरू ए द्रोपदी
सड़कों पर तार तार होती है
कोई सरेआम उतारे कपड़े
तो कोई कपड़े ओढ़ने को
किसी कोने में बैठी रोती है

शुक्र ए खुदा कि
एक सोई 'दामिनी' तो जागे कई हजार
वरना फाइलों में
दबी रहती है कई दामिनियों की पुकार

अब तुम ही कहो
कैसे कहूं हैप्‍पी न्‍यू ईयर मेरे यार।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार

हैप्पी अभिनंदन में महफूज अली

महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!

पति से त्रसद महिलाएं न जाएं सात खून माफ

fact 'n' fiction : राहुल गांधी को लेने आये यमदूत

सर्वोत्तम ब्लॉगर्स 2009 पुरस्कार

सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें