राहुल गांधी : तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला
राहुल गांधी, युवा चेहरा। समय 2009 लोक सभा चुनाव। समय चार साल बाद । युवा कांग्रेस उपाध्यक्ष बना पप्पू। हफ्ते के पहले दिन कांग्रेस की मीडिया कनक्लेव। राहुल गांधी ने शुभारम्भ किया, नेताओं को चेताया वे पार्टी लाइन से इतर न जाएं। वे शालीनता से पेश आएं और सकारात्मक राजनीति करें। राहुल गांधी का इशारा साफ था। कांग्रेसी नेता अपने कारतूस हवाई फायरिंग में खत्म न करें। राहुल गांधी, जिनको ज्यादातर लोग प्रवक्ता नहीं मानते, लेकिन वे आज प्रवक्तागिरी सिखा रहे थे।
दिलचस्प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्पेस रोक ली, जो मध्यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्यूं प्रचार समिति अध्यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की धुनें सुनाई पड़ी, ‘तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला, जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला’ चांद से याद आता है राहुल गांधी का चेहरा, जो कुछ महीने पहले जयपुर में नजर आया था, और आज सोमवार को नजर आ रहा है। शायद दूर कहीं ये गीत सही वक्त पर बजा रहा है। काश यह गीत राहुल गांधी के समारोह के आस पास बजता तो राहुल आज की होट स्टोरी होते।
राहुल गांधी ने जमीनी राजनीति पर उतर कर बेटिंग करने को कहा। यकीनन कांग्रेस के लिए यह बहुत बेहतरीन सुझाव है, वैसे भी कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को घर आए तो उसको भूला नहीं कहते, अगर कांग्रेस आज भी अपने ग्रामीण क्षेत्र के वोटरों को संभाल ले तो हैट्रिक लगा सकती है। कांग्रेस ने जयपुर में मंथन किया था, शायद वे जमीनी नहीं था। अगर होता तो कांग्रेस अपने कारतूसों को हवाई फायरिंग में खराब करने से बेहतर सही दिशा में खर्चती। कांग्रेस के दामन में दाग बहुत हैं, लेकिन कांग्रेस अपनी योजनाओं के सर्फ एक्सल से धो सकती है।
कांग्रेस केंद्र में है। उसके द्वारा शुरू की गई, योजनाएं एक अच्छी पहल हैं। केंद्र सरकार ने इन योजनाओं को लागू करने के लिए करोड़ों रुपए राज्य सरकारों को दिए, लेकिन राज्य सरकारों की गड़बड़ियों के कारण योजनाएं पिट गई, और दोष पूरा कांग्रेस के सिर मढ़ दिया गया। मिड डे मिल, जो आज चर्चा का कारण है, क्या उसमें केंद्र का दोष है ? नहीं, दोष है राज्य सरकारों का जो उसको अच्छी तरह से लागू नहीं कर पा रही। मनरेगा, रोजगार की गारंटी भी निश्चत एक अच्छी पहल है, लेकिन राज्य सरकारों की अनदेखी के कारण धूल फांक रही है, बदनामी की कल्ख कांग्रेस के माथे, हालांकि कुछ घोटालों के आरोपी नेता या मंत्री जेल की हवा तक खा चुके हैं।
कांग्रेस की समस्या है कि वे सोशल मीडिया को समझ नहीं पा रही। दरअसल कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चल रही है, और भाजपा इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए पूरी तरह सोशल मीडिया को कैप्चर कर रही है। कहते हैं कि सोशल मीडिया 160 लोकसभा सीटों को प्रभावित करता है। उसकी पहुंच 12 करोड़ भारतीयों तक है। मगर सोशल मीडिया पर एक बाज की नजर है, जो देश के 80 करोड़ लोगों तक पहुंच बनाए हुए है। जी हां, इलेक्ट्रोनिक मीडिया। आज देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिया, मोदी की ब्रांडिंग कर रहा है। कांग्रेस किसी सहमे हुए बच्चे की तरह, डरी हुई किसी कोने में खड़ी पूरा तमशा देख रही है।
उसके कई कारण हैं। सबसे पहले कांग्रेस के पास एक दमदार प्रवक्ता नहीं। राहुल गांधी युवा पीढ़ी को प्रेरित करता था, लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी चुप्पी ने युवा पीढ़ी को निराश किया, और युवा पीढ़ी का बहाव नरेंद्र मोदी की तरफ ऑटोमेटिक मुड़ गया। नरेंद्र मोदी के पास राजनीति में लम्बा संघर्ष, एक आदर्श राज्य की पृष्ठभूमि, 11 साल का नेतृत्व अनुभव है। राहुल के पास एक मां है, जो उसकी दादी की तरह दमदार प्रवक्ता नहीं। संप्रग के पास प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है, जिसको लोग कथित तौर पर सोनिया गांधी संचालित टेलीविजन कहते हैं। जब भी उनसे राहुल गांधी के पीएम बनने के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब एक था आज कहो, आज पीछे हट जाता हूं, मतलब साफ है, वे केवल मास्क हैं।
राहुल गांधी की कलावती पटकथा हिट हुई तो युवा आइकन बन गए। कलावती के बाद राहुल गांधी की कोई पटकथा हिट नहीं हुई। उसका प्रभाव खत्म होने लगा। सोशल मीडिया ने उसको पप्पू करार दे दिया। राहुल गांधी ने जो कदम आज उठाया है, उस बच्चे की तरह, जो पेपरों से कुछ दिन पहले तैयारी करने बैठता है, नतीजा जो भी आए, अगर राहुल का मंत्र सफल हुआ तो शायद 2014 में अख़बारों की सुर्खियां यह शीर्षक बन सकता है ‘पप्पू पास हो गया”।
ईद के चांद की तरह नजर आने वाला राहुल गांधी शायद आम चांद की तरह नजर आए, और जो सोच वे कभी कभी जनता के सामने रखते हैं, वे प्रत्येक दिन रखे, हफ्ते, महीने में रखे तो स्थितियां बदल सकती हैं।
और वे गीत भी शायद कभी इतना रिलेवेंट न लगे, जो आज कहीं दूर से कानों में पड़ रहा है, जख्म फिल्म का पूजा भट्ट पर फिल्माया गया गीत ”तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला”
दिलचस्प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्पेस रोक ली, जो मध्यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्यूं प्रचार समिति अध्यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की धुनें सुनाई पड़ी, ‘तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला, जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला’ चांद से याद आता है राहुल गांधी का चेहरा, जो कुछ महीने पहले जयपुर में नजर आया था, और आज सोमवार को नजर आ रहा है। शायद दूर कहीं ये गीत सही वक्त पर बजा रहा है। काश यह गीत राहुल गांधी के समारोह के आस पास बजता तो राहुल आज की होट स्टोरी होते।
राहुल गांधी ने जमीनी राजनीति पर उतर कर बेटिंग करने को कहा। यकीनन कांग्रेस के लिए यह बहुत बेहतरीन सुझाव है, वैसे भी कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को घर आए तो उसको भूला नहीं कहते, अगर कांग्रेस आज भी अपने ग्रामीण क्षेत्र के वोटरों को संभाल ले तो हैट्रिक लगा सकती है। कांग्रेस ने जयपुर में मंथन किया था, शायद वे जमीनी नहीं था। अगर होता तो कांग्रेस अपने कारतूसों को हवाई फायरिंग में खराब करने से बेहतर सही दिशा में खर्चती। कांग्रेस के दामन में दाग बहुत हैं, लेकिन कांग्रेस अपनी योजनाओं के सर्फ एक्सल से धो सकती है।
कांग्रेस केंद्र में है। उसके द्वारा शुरू की गई, योजनाएं एक अच्छी पहल हैं। केंद्र सरकार ने इन योजनाओं को लागू करने के लिए करोड़ों रुपए राज्य सरकारों को दिए, लेकिन राज्य सरकारों की गड़बड़ियों के कारण योजनाएं पिट गई, और दोष पूरा कांग्रेस के सिर मढ़ दिया गया। मिड डे मिल, जो आज चर्चा का कारण है, क्या उसमें केंद्र का दोष है ? नहीं, दोष है राज्य सरकारों का जो उसको अच्छी तरह से लागू नहीं कर पा रही। मनरेगा, रोजगार की गारंटी भी निश्चत एक अच्छी पहल है, लेकिन राज्य सरकारों की अनदेखी के कारण धूल फांक रही है, बदनामी की कल्ख कांग्रेस के माथे, हालांकि कुछ घोटालों के आरोपी नेता या मंत्री जेल की हवा तक खा चुके हैं।
कांग्रेस की समस्या है कि वे सोशल मीडिया को समझ नहीं पा रही। दरअसल कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चल रही है, और भाजपा इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए पूरी तरह सोशल मीडिया को कैप्चर कर रही है। कहते हैं कि सोशल मीडिया 160 लोकसभा सीटों को प्रभावित करता है। उसकी पहुंच 12 करोड़ भारतीयों तक है। मगर सोशल मीडिया पर एक बाज की नजर है, जो देश के 80 करोड़ लोगों तक पहुंच बनाए हुए है। जी हां, इलेक्ट्रोनिक मीडिया। आज देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिया, मोदी की ब्रांडिंग कर रहा है। कांग्रेस किसी सहमे हुए बच्चे की तरह, डरी हुई किसी कोने में खड़ी पूरा तमशा देख रही है।
उसके कई कारण हैं। सबसे पहले कांग्रेस के पास एक दमदार प्रवक्ता नहीं। राहुल गांधी युवा पीढ़ी को प्रेरित करता था, लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी चुप्पी ने युवा पीढ़ी को निराश किया, और युवा पीढ़ी का बहाव नरेंद्र मोदी की तरफ ऑटोमेटिक मुड़ गया। नरेंद्र मोदी के पास राजनीति में लम्बा संघर्ष, एक आदर्श राज्य की पृष्ठभूमि, 11 साल का नेतृत्व अनुभव है। राहुल के पास एक मां है, जो उसकी दादी की तरह दमदार प्रवक्ता नहीं। संप्रग के पास प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है, जिसको लोग कथित तौर पर सोनिया गांधी संचालित टेलीविजन कहते हैं। जब भी उनसे राहुल गांधी के पीएम बनने के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब एक था आज कहो, आज पीछे हट जाता हूं, मतलब साफ है, वे केवल मास्क हैं।
राहुल गांधी की कलावती पटकथा हिट हुई तो युवा आइकन बन गए। कलावती के बाद राहुल गांधी की कोई पटकथा हिट नहीं हुई। उसका प्रभाव खत्म होने लगा। सोशल मीडिया ने उसको पप्पू करार दे दिया। राहुल गांधी ने जो कदम आज उठाया है, उस बच्चे की तरह, जो पेपरों से कुछ दिन पहले तैयारी करने बैठता है, नतीजा जो भी आए, अगर राहुल का मंत्र सफल हुआ तो शायद 2014 में अख़बारों की सुर्खियां यह शीर्षक बन सकता है ‘पप्पू पास हो गया”।
ईद के चांद की तरह नजर आने वाला राहुल गांधी शायद आम चांद की तरह नजर आए, और जो सोच वे कभी कभी जनता के सामने रखते हैं, वे प्रत्येक दिन रखे, हफ्ते, महीने में रखे तो स्थितियां बदल सकती हैं।
और वे गीत भी शायद कभी इतना रिलेवेंट न लगे, जो आज कहीं दूर से कानों में पड़ रहा है, जख्म फिल्म का पूजा भट्ट पर फिल्माया गया गीत ”तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला”
सटीक आलेख !!
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