राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और भाजपा की स्थिति
''राह में उनसे मुलाकात हो गई, जिससे डरते
थे वो ही बात हो गई'' विजय पथ फिल्म का यह गीत आज भाजपा नेताओं को रहकर
का याद आ रहा होगा, खासकर उनको जो नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही मत्थे पर
शिकन ले आते हैं।
देश
से कोसों दूर जब न्यूयॉर्क में राजनाथ सिंह ने अपना मुंह खोला, तो उसकी
आवाज भारतीय राजनीति के गलियारों तक अपनी गूंज का असर छोड़ गई। राजनाथ
सिंह, भले ही देश से दूर बैठे हैं, लेकिन भारतीय मीडिया की निगाह उन पर बाज
की तरह थी। बस इंतजार था, राजनाथ सिंह के कुछ कहने का, और जो राजनाथ सिंह
ने कहा, वे यकीनन विजय पथ के गीत की लाइनों को पुन:जीवित कर देने वाला था।
दरअसल,
जब राजनाथ सिंह से पीएम पद की उम्मीदवारी के संबंधी सवाल पूछा गया तो
उनका उत्तर था, मैं पीएम पद की उम्मीदवारी वाली रेस से बाहर हूं। मैं
पार्टी अध्यक्ष हूं, मेरी जिम्मेदारी केवल भाजपा को सत्ता में बिठाने की
है, जो मैं पूरी निष्ठा के साथ निभाउंगा। यकीनन, नरेंद्र मोदी आज सर्वाधिक
लोकप्रिय नेता हैं, अगर भाजपा सत्ता हासिल करती है तो वे पीएम पद के
उम्मीदवार होंगे।
दूर देश में बैठे
राजनाथ सिंह को इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा, ऐसे कैसे हो सकता है कि
उनके मुंह से निकले यह शब्द भारत में बैठे उनके कुछ मित्रों को अग्निबाण
से भी ज्यादा नागवार गुजरेंगे। क्यूंकि भूल गए वे गोवा बैठक के बाद की उस
हलचल को, जो एलके आडवाणी के इस्तीफे से पैदा हुई थी।
भारतीय
मीडिया के बीच अक्सर इस बात संबंधी पूछे सवाल पर पार्टी बैठकर फैसला
करेगी कह निकले वाले राजनाथ सिंह क्यूं भूल गए कि आज का मीडिया सालों
पुराना नहीं, जो ख़बर को प्रकाशित करने के लिए किसी बस या डाक खाने से आने
वाले तार का इंतजार करता रहेगा, आज तो आपने बयान दिया नहीं कि इधर छापकर
पुराना, और चलकर घिस जाता है।
राजनाथ
सिंह, ने पहले पत्ते दिल्ली की बजाय गोवा में खोले, शायद राजनाथ सिंह ने
उनके लिए विकल्प खुला रखा था, जो इस फैसले से ज्यादा हताश होने वाले थे,
क्यूंकि तनाव के वक्त खुली हवा में सांस लेना, टहलना, बीच के किनारे जाकर
मौज मस्ती करना बेहतर रह सके।
अब
वे न्यूयॉर्क पहुंचकर अपने पत्ते खोलते हैं, ताकि उनके भारत लौटने तक
पूरा मामला किसी ठंडे बस्ते में पड़ जाए, और वे नरेंद्र मोदी को दिए हुए
अपने वायदे पर कायम रह सकें। शायद अब तो सहयोगी पार्टियों को अहसास तो हो
गया होगा कि नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा के पास 2014 के लिए कोई और
विकल्प नहीं है।
अगर
अब भी किसी को शक है तो वे अपना भ्रम बनाए रखे, क्यूंकि भ्रम का कोई इलाज
नहीं होता, और अंत आप ठंडी सांस लेते हुए पानी की चंद घूंटों के साथ,
कुर्सी पर पीठ लगाकर गहरी ध्यान अवस्था में जाकर, विजय पथ के उस गीत को
आत्मसात करें, ''राह में उनसे मुलाकात हो गई, जिससे डरते थे वो ही बात हो
गई''।
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