आम आदमी का तोड़

यह तो बहुत ही न इंसाफी है। ब्रांड हम ने बनाया, और कब्‍जा केजरीवाल एंड पार्टी करके बैठ गई। आम आदमी की बात कर रहा हूं, जिस पर केजरीवाल एंड पार्टी अपना कब्‍जा करने जा रहे हैं। गुजरात में चुनाव सिर पर हैं, कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में चीख चीख कर कह रही थी, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ।

मगर आम आदमी तो केजरीवाल एंड पार्टी निकली, जिसकी कांग्रेस के साथ कहां बनती है, सार्वजनिक रूप में, अंदर की बात नहीं कह रहा। अटकलें हैं कि कांग्रेस बहुत शीघ्र अपने प्रचार स्‍लोगन को बदलेगी। मगर आम आदमी का तोड़ क्‍या है?

वैसे क्रिएटिव लोगों के पास दिमाग बहुत होता है, और नेताओं के पास पैसा। यह दोनों मिलकर कोई तोड़ निकालेंगे, कि आखिर आम आदमी को दूसरे किस नाम से पुकार जाए। वैसे आज से कुछ साल पूर्व रिलीज हुई लव आजकल में एक नाम सुनने को मिला था, मैंगो पीप्‍पल।

अगर आम आदमी मैंगो पीप्‍पल बन भी जाता है तो क्‍या फर्क पड़ता है। पिछले दिनों एक टीवी चैनल का नाम बदल गया था। हुआ क्‍या, हर जगह एक ही बात लिखी मिली, सिर्फ नाम बदला है। वैसा ही सरकार का रवैया रहने वाला है आम आदमी के प्रति।
आम आदमी की बात सब करते हैं, लेकिन उसके लिए काम कोई नहीं करता। स्‍वयं आम आदमी ही नहीं करता। सरकारी दफ्तरों में बैठा कर्मचारी या अधिकारी आम आदमी नहीं, लेकिन फिर भी वो आम आदमी के काम नहीं आता, जब तक आम आदमी, आम फीस से ज्‍यादा नहीं देता। आम आदमी को कुर्सी पर बैठा आम आदमी इस तरह ऊपर से नीचे घूर के देखता है, जैसे काम के लिए आया व्‍यक्‍ित किसी बाहर दुनिया से आया हो।

एक आम आदमी को दूसरा आम आदमी लूट रहा है, चाहे वो आम वाला हो या सेब वाला क्‍या फर्क पड़ता है। अमीरों के हाथ में एप्‍पल "मोबाइल" है तो गरीब रेहड़ी वाले से जाकर मैंगो का भाव भी नहीं पूछता, कहीं वो गले ही न पड़ जाए।

सड़क पर खड़ा ट्रैफिक कर्मचारी किसी वीआईपी इलाके से नहीं आता, लेकिन वो भी शाम तक जेब भरने के तरीके ढूंढता है। उसकी नजर के सामने से सैंकड़ों व्‍हीकल गुजरते हैं, एक ही नियम तोड़ते हुए, लेकिन वो कुछेक को रोकता है। कुछ आम आदमी मोबाइल पर वीआईपी से बात करवाकर निकल जाते हैं तो कुछ गांधी छाप देकर।

आम आदमी सब्‍जी लेने निकलता है, वो सब्‍जी वाले आम आदमी से जिरहा करता है, लेकिन सरकार के खिलाफ झंडा उठाने के लिए समय नहीं। देश की जनसंख्‍या किसी ने बढ़ाई वीआईपी लोगों ने या आम आदमी ने। जॉब्‍स के लिए पैसे की सिफारिश कौन करता है वीआईपी या आम आदमी। गांधीछाप देकर जॉब्‍स पर लगा आम आदमी, आम आदमी से गांधीछाप की उम्‍मीद करता है।

आम आदमी का तोड़ आम आदमी के पास है, और किसी के पास नहीं।

टिप्पणियाँ

  1. अब 'आम आदमी' भी 'नेता' बनेगा ... बस यही दुआ है कि वो 'नेता' बन कर भी 'आम' बना रहे !

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  2. सही बात -आम आदमी से ही आम आदमी परेशान है ...

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