'आम आदमी' की दस्तक, मीडिया को दस्त
अन्ना हजारे के साथ लोकपाल बिल पारित करवाने के लिए संघर्षरत रहे अरविंद केजरीवाल ने जैसे 'आम आदमी' से राजनीति में दस्तक दी, तो मीडिया को दस्त लग गए। कल तक अरविंद केजरीवाल को जननेता बताने वाला मीडिया नकारात्मक उल्टियां करने लगा। उसको अरविंद केजरीवाल से दुर्गंध आने लगी। अब उसके लिए अरविंद केजरीवाल नकारात्मक ख़बर बन चुका है।
कल जब अरविंद केजरीवाल ने औपचारिक रूप में आम आदमी को जनता में उतारा तो, मीडिया का रवैया, अरविंद केजरीवाल के प्रति पहले सा न था, जो आज से साल पूर्व था। राजनीति में आने की घोषणा करने के बाद अरविंद ने कांग्रेस एवं भाजपा पर खुलकर हमला बोला। मीडिया ने उनके खुलासों को एटम बम्ब की तरह फोड़ा। मगर बाद में अटम बम्बों का असर उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था, और अरविंद केजरीवाल को मीडिया ने हिट एंड रन जैसी नीति के जन्मदाता बना दिया, जो धमाके करने के बाद भाग जाता है।
मुझे पिछले दिनों रिलीज हुई ओह माय गॉड तो शायद मीडिया के ज्यादातर लोगों ने देखी होगी, जिन्होंने नहीं देखी, वो फिर कभी जरूर देखें, उस में एक संवाद है, जो अक्षय कुमार बोलते हैं, जो इस फिल्म में भगवान कृष्ण का किरदार निभा रहे हैं, कि मैं तो केवल मार्ग दिखा सकता हूं, जाना तो तुम्हें खुद ही पड़ेगा। अरविंद केजरीवाल ने तो मीडिया के सामने साबूत रख दिए, अब वो साबूत कितने सच्चे हैं या झूठे हैं इसकी पैरवी तो मीडिया को करनी चाहिए।
अगर यह काम भी केजरीवाल को करना है तो उनको खुद का मीडिया हाऊस खोल लेना चाहिए, और हर ख़बर को खुद ढूंढ़े एवं प्रकाशित करें। उसके बाद उनका संपादकीय उठाकर मीडिया वाले ख़बर बना लेंगे, जैसे बाला साहेब के संपादकीय के साथ होता था या अमिताभ बच्चन के िट्वटर स्टेट्स के साथ होता है।
एक अख़बार नया इंडिया ने अपने संपादकीय में अरविंद केजरीवाल के पार्टी उतारने के घटनाक्रम को आम आदमी का पाखंड टाइटल देकर प्रकाशित किया है, वहीं दूसरी तरफ नवभारत टाइम्स ने 'आप' भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अलग नहीं? के टाइटल से आप एवं अन्य पार्टियों में सामानता ढूंढ़ने की कोशिश की।
एक व्यक्ति ने तो केजरीवाल पार्टी को खुजलीवाल पार्टी की संज्ञा दी है। सोचने वाली बात है कि संजय दत्त राजनीति में उतरते हैं, बराक ओबामा राजनीति में उतरते हैं या इमरान ख़ान तो हम उनको 24 घंटे कवरेज देते हैं, उनकी छोटी छोटी बातों को बड़ा बड़ा कर लिखते हैं, उनके प्रति लिखते हुए हम आशावाद में पूरी तरह लिपटे हुए होते हैं, जब अरविंद केजरीवाल के रूप में कोई आम आदमी राजनीति में दस्तक देता है तो हम को दस्त क्यूं लगने लगते हैं, या कहें कुत्ते का कुत्ता वैरी, मतलब आम आदमी का आदमी दुश्मन।
कहीं मीडिया को इस बात का मलाल तो नहीं कि उनका स्टार बनाया हुआ अरविंद केजरीवाल उनसे पहले संसद तक न पहुंच जाए। मेरे हिसाब से सकारात्मक रवैया अपनाते हुए मीडिया को कदम दर कदम चलना चाहिए, अगर वो अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी को लेकर सकारात्मक सोच नहीं रख सकते तो नकारात्मकता का जनमत भी तैयार करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।
अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी ने एक साहस किया, उसका नतीजे भले ही कैसा क्यूं न हो। जनता पार्टी अकेले स्वामी डटे हुए हैं, यह वो पार्टी है, जिसने 1977 में कांग्रेस का भ्रम तोड़ा था, भले ही यह पार्टी लम्बा समय न टिकी, और दो ढांचों में ढल गई एक जनता पार्टी और दूसरी भारतीय जनता पार्टी। जनता पार्टी से मोहभंग होने के बाद देवानंद साहेब ने नेशनल पार्टी के गठन के लिए बहुत सी कोशिशें की, जो फिल्म सितारों को राजनीतिक मंच तक लाने का प्रयास था, मगर देवानंद के हाथ असफलता लगी। आज बॉलीवुड के सितारें राजनीति में हैं, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से देव साहेब उनको लाना चाहते थे, आज ज्यादातर सितारे कांग्रेस या भाजपा के सहारे हैं, लेकिन देवानंद उनको उनकी पार्टी देना चाहते थे, उस समय देवानंद के पास करण जौहर के पिता जैसा धमाकेदार प्रवक्ता था।
हो सकता है कि जो काम देवानंद करना चाहते थे, वो अब अरविंद केजरीवाल की टीम करे। अरविंद केजरीवाल को अपना गढ़ मजबूत करते हुए कुछ क्षेत्रियों संगठनों से हाथ मिलाना चाहिए, जो जनहित के लिए बड़ी पार्टियों को छोड़कर अपनी पार्टियों को अस्तित्व में लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
अगर बराक ओबामा को अमेरिका की जनता दूसरा मौका दे सकती है तो अरविंद केजरीवाल को भी एक मौका देना बनता है। बाकी आपकी मर्जी।
कल जब अरविंद केजरीवाल ने औपचारिक रूप में आम आदमी को जनता में उतारा तो, मीडिया का रवैया, अरविंद केजरीवाल के प्रति पहले सा न था, जो आज से साल पूर्व था। राजनीति में आने की घोषणा करने के बाद अरविंद ने कांग्रेस एवं भाजपा पर खुलकर हमला बोला। मीडिया ने उनके खुलासों को एटम बम्ब की तरह फोड़ा। मगर बाद में अटम बम्बों का असर उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था, और अरविंद केजरीवाल को मीडिया ने हिट एंड रन जैसी नीति के जन्मदाता बना दिया, जो धमाके करने के बाद भाग जाता है।
मुझे पिछले दिनों रिलीज हुई ओह माय गॉड तो शायद मीडिया के ज्यादातर लोगों ने देखी होगी, जिन्होंने नहीं देखी, वो फिर कभी जरूर देखें, उस में एक संवाद है, जो अक्षय कुमार बोलते हैं, जो इस फिल्म में भगवान कृष्ण का किरदार निभा रहे हैं, कि मैं तो केवल मार्ग दिखा सकता हूं, जाना तो तुम्हें खुद ही पड़ेगा। अरविंद केजरीवाल ने तो मीडिया के सामने साबूत रख दिए, अब वो साबूत कितने सच्चे हैं या झूठे हैं इसकी पैरवी तो मीडिया को करनी चाहिए।
अगर यह काम भी केजरीवाल को करना है तो उनको खुद का मीडिया हाऊस खोल लेना चाहिए, और हर ख़बर को खुद ढूंढ़े एवं प्रकाशित करें। उसके बाद उनका संपादकीय उठाकर मीडिया वाले ख़बर बना लेंगे, जैसे बाला साहेब के संपादकीय के साथ होता था या अमिताभ बच्चन के िट्वटर स्टेट्स के साथ होता है।
एक अख़बार नया इंडिया ने अपने संपादकीय में अरविंद केजरीवाल के पार्टी उतारने के घटनाक्रम को आम आदमी का पाखंड टाइटल देकर प्रकाशित किया है, वहीं दूसरी तरफ नवभारत टाइम्स ने 'आप' भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अलग नहीं? के टाइटल से आप एवं अन्य पार्टियों में सामानता ढूंढ़ने की कोशिश की।
एक व्यक्ति ने तो केजरीवाल पार्टी को खुजलीवाल पार्टी की संज्ञा दी है। सोचने वाली बात है कि संजय दत्त राजनीति में उतरते हैं, बराक ओबामा राजनीति में उतरते हैं या इमरान ख़ान तो हम उनको 24 घंटे कवरेज देते हैं, उनकी छोटी छोटी बातों को बड़ा बड़ा कर लिखते हैं, उनके प्रति लिखते हुए हम आशावाद में पूरी तरह लिपटे हुए होते हैं, जब अरविंद केजरीवाल के रूप में कोई आम आदमी राजनीति में दस्तक देता है तो हम को दस्त क्यूं लगने लगते हैं, या कहें कुत्ते का कुत्ता वैरी, मतलब आम आदमी का आदमी दुश्मन।
कहीं मीडिया को इस बात का मलाल तो नहीं कि उनका स्टार बनाया हुआ अरविंद केजरीवाल उनसे पहले संसद तक न पहुंच जाए। मेरे हिसाब से सकारात्मक रवैया अपनाते हुए मीडिया को कदम दर कदम चलना चाहिए, अगर वो अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी को लेकर सकारात्मक सोच नहीं रख सकते तो नकारात्मकता का जनमत भी तैयार करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।
अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी ने एक साहस किया, उसका नतीजे भले ही कैसा क्यूं न हो। जनता पार्टी अकेले स्वामी डटे हुए हैं, यह वो पार्टी है, जिसने 1977 में कांग्रेस का भ्रम तोड़ा था, भले ही यह पार्टी लम्बा समय न टिकी, और दो ढांचों में ढल गई एक जनता पार्टी और दूसरी भारतीय जनता पार्टी। जनता पार्टी से मोहभंग होने के बाद देवानंद साहेब ने नेशनल पार्टी के गठन के लिए बहुत सी कोशिशें की, जो फिल्म सितारों को राजनीतिक मंच तक लाने का प्रयास था, मगर देवानंद के हाथ असफलता लगी। आज बॉलीवुड के सितारें राजनीति में हैं, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से देव साहेब उनको लाना चाहते थे, आज ज्यादातर सितारे कांग्रेस या भाजपा के सहारे हैं, लेकिन देवानंद उनको उनकी पार्टी देना चाहते थे, उस समय देवानंद के पास करण जौहर के पिता जैसा धमाकेदार प्रवक्ता था।
हो सकता है कि जो काम देवानंद करना चाहते थे, वो अब अरविंद केजरीवाल की टीम करे। अरविंद केजरीवाल को अपना गढ़ मजबूत करते हुए कुछ क्षेत्रियों संगठनों से हाथ मिलाना चाहिए, जो जनहित के लिए बड़ी पार्टियों को छोड़कर अपनी पार्टियों को अस्तित्व में लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
अगर बराक ओबामा को अमेरिका की जनता दूसरा मौका दे सकती है तो अरविंद केजरीवाल को भी एक मौका देना बनता है। बाकी आपकी मर्जी।
सार्थक पोस्टत, लिखते रहें, पढ़ते रहें
जवाब देंहटाएं'आम आदमी' की दस्ततक, मीडिया को दस्तद
अन्नाम हजारे के साथ लोकपाल बिल पारित करवाने के लिए संघर्षरत रहे अरविंद केजरीवाल ने जैसे 'आम आदमी' से राजनीति में दस्तजक दी, तो मीडिया को दस्तए लग गए। कल तक अरविंद केजरीवाल को जननेता बताने वाला मीडिया नकारात्ममक उल्टि यां करने लगा। उसको अरविंद केजरीवाल से दुर्गंध आने लगी। अब उसके लिए अरविंद केजरीवाल नकारात्ममक ख़बर बन चुका है। next.me आभार.
आकर्षण होता ख़तम, व्यक्ति हो रहा गौण ।
जवाब देंहटाएंपका पकाया माल हो, लगे मीडिया दौड़ ।
लगे मीडिया दौड़, घुटाले रेपकांड हों ।
पार्टी का हो गठन, समय तो सही डांड़ हो ।
प्रायोजित हों न्यूज, ब्लैक मेलिंग का घर्षण ।
आम आदमी जमा, यहाँ नहिं है आकर्षण ।।
मीडिया निष्पक्ष है नहीं और उस पर भी उसको पका पकाया चाहिए ऐसे में अब केजरीवाल उसके लिए कोई ज्यादा अहम नहीं रह गए है क्योंकि मीडिया ने पहले ही केजरीवाल को इतना दिखाया है कि जनता के मन से केजरीवाल का आकर्षण खतम हो चूका है !!
जवाब देंहटाएंअन्ना 'गांधी " हो गए "भगतसिंह "अरविन्द ,
जवाब देंहटाएंबिगुल बज गया क्रान्ति का ,जागेगा अब हिन्द (श्री अरुण निगम )
बिकाऊ मीडिया जो भी करता है टी आर पी के लिए करता है .
अरविन्द को कवरेज़ न देने की एवज भारी राशि मिली है सो अलग .
ram ram bhai
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बुधवार, 28 नवम्बर 2012
किस कांग्रेस पर गर्व करते हैं मनीष तिवारी ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
भाई मेने एक बलोग बनाया है जिसमे आम आदमी पार्टी के बारे में फेस बुक ब्लॉग.. और भी सोसल नेटवर्किंग साइट्स पर लिखने वाले लोगो की पोस्ट उसमे डाल रहा हूँ, जिससे सब आम आदमियों की पोस्ट एक ही जगह मिल सके...
जवाब देंहटाएंइसलिए इस पोस्ट को भी डाल रहा हूँ..
क्षमा करे.. यदि आपको बुरा लगे तो..
आम आदमी जिंदाबाद..
http://aamadmipartynews.blogspot.com/
ये लिंक है.. ब्लॉग का.
आम आदमी जिंदाबाद
जवाब देंहटाएंआम आदमी जिंदाबाद
जवाब देंहटाएंARVID KEJARIVAL KO MAUKA MILEGA HI. VO EAK SHUDDHA, SULJHA AUR SATEEK AADMI HAI.
जवाब देंहटाएं