थप्‍पड़ अच्‍छे हैं

जोर से थप्‍पड़ मारने के बाद धमकी देते हुए मां कहती है, आवाज नहीं, आवाज नहीं, तो एक और पड़ेगा। जी हां, मां कुछ इस तरह धमकाती है। फिर देर बाद बच्‍चा पुराने हादसे पर मिट्टी डालते हुए मां के पास जाता है तो मां कहती है कि तुम ऐसा क्‍यूं करते हो कि मुझे मारना पड़े।

अब मां को कौन समझाए कि मां मैं अभी तो बहुत छोटा हूं या छोटी हूं, तुम कई बसंत देख चुकी हो। तुम भी इन थप्‍पड़ों को महसूस कर चुकी हो। मेरे पर तो तुम इतिहास दोहरा रही हो या कहूं कि एक विरासत को आगे बढ़ा रही हो। यह थप्‍पड़ मुझे जो आपने दिए हैं, वो कल मैं भी अपनी संतान को रसीद करूंगा या करूंगी, और मुझे पता भी न होगा, कब मेरा हाथ आपकी नकल करते हुए उसकी गाल पर छप जाएगा।
जब मम्‍मी मारती है तो पड़ोस में खड़े पापा या कोई अन्‍य व्‍यक्‍ति कहता है, क्‍यूं मारती हो बच्‍चे को, बच्‍चे तो जिद्द करते ही हैं, तुम्‍हें समझने की जरूरत है, मगर मां को नसीहत देने वाला, कुछ समय बाद इस नसीहत की धज्‍जियां उड़ा रहा होता है।

मां बाप के थप्‍पड़ का दर्द नहीं होता, क्‍यूंकि उनके पास प्‍यार की महरम है। हम बच्‍चे भी तो कितनी जिद्द करते हैं, ऐसे में क्षुब्‍ध होकर मां बाप तो मरेंगे ही न, वो बेचारे अपना गुस्‍सा और कहां निकालें। हम बच्‍चे मां बाप को छोड़कर कहीं जा भी तो नहीं सकते, अगर पापा ने मम्‍मी पर या मम्‍मी ने पापा पर अपना गुस्‍सा निकाल दिया तो बच्‍चों को जिन्‍दगी भर ऐसे थप्‍पड़ सहने पड़ते हैं, जिनके निशां कभी नहीं जाते। इसलिए थप्‍पड़ अच्‍छे हैं।

टिप्पणियाँ

  1. हम तो अपने ऊपर बहुत संयम रखते हैं और केवल बातों से ही सारी समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करते हैं, अच्छा लेख ।

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  2. "जब मम्‍मी मारती है तो पड़ोस में खड़े पापा या कोई अन्‍य व्‍यक्‍ति कहता है, क्‍यूं मारती हो बच्‍चे को, बच्‍चे तो जिद्द करते ही हैं, तुम्‍हें समझने की जरूरत है, मगर मां को नसीहत देने वाला, कुछ समय बाद इस नसीहत की धज्‍जियां उड़ा रहा होता है।"
    बात सही है। समझाना तो तब हो जब स्वयं संयमित आचरण हो! बच्चों को मारने से ज्यादा समझाने का प्रभाव पड़ता-यह तो मानी हुई बात है।

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  3. कोशिश तो सभी यही करते हैं की हाथों के बजाए बातों से ही समस्या का समाधान हो जाये मगर क्या करें कभी-कभी बच्चों की भलाई के लिए हाथों से भी काम लेना ही पड़ता है इसलिए कभी-कभी थप्पड़ भी अच्छे हैं साटक पोस्ट....

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