मैं हूं खादी वाला गुंडा

मैं हूं खादी वाला गुंडा।  यह किसी फिल्‍म का नाम नहीं बल्‍कि भाजपा नेता का बयान है। जी हां, भाजपा नेता एवं मध्‍य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा व जिले के प्रभारी मंत्री अनूप मिश्रा ने ऐसा बयान देकर मध्‍यप्रदेश की राजनीति में खलबली पैदा कर दी है। वो खुद को खादी वाला गुंडा कह रहे हैं। उनका मानना है कि भिंड जिले के कुछ गुंडों को सुधारने के लिए खादी वाला गुंडा बनना बेहद जरूरी है। शायद वैसे ही जैसे आज से कुछ साल पहले एक फिल्‍म में धर्मेंद्र बना था पुलिस वाला गुंडा।

सवाल यह उठता है कि रावण को मारने के लिए रावण बनना जरूरी है। आज के युग में श्रीराम बनकर श्री हनुमान के द्वारा रावण की लंका को राख नहीं किया जा सकता। जब अन्‍ना हजारे की भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुहिम जोरों पर थी तो तब ज्‍यादातर युवाओं ने एक टोपी पहनी थी मैं हूं अन्‍ना, भले ही बाद में कुछ युवाओं ने उससे उतारते हुए एक नई टोपी पहन ली, जिस पर लिखा था मैं हूं आम आदमी।

जिस तरह का तर्क देते हुए अनूप मिश्रा कहते हैं कि मैं हूं खादी वाला गुंडा। कहीं अब युवा बुराई को खत्‍म करने के लिए इस तरह के फिकरे वाली टोपी पहनाना न शुरू कर दें। भले ही हम गांधी को राष्‍ट्रपिता की उपाधि देते हों, भले ही हमारे धर्म अहिंसा के मार्ग पर चलने की बात हमें बार बार सिखाते हों, मगर हम भीतर से दबंग हैं, गांधीगीरी हम को किताबों में अच्‍छी लगती है। हिंसा का जवाब हम हिंसा में देना पसंद करते हैं।

हमारी फिकरे या मुहावरे तो कुछ यूं बयान करते हैं, देखो न ईंट का जवाब पत्‍थर। दूध मांगो खीर दूंगा, कश्‍मीर मांगा चीर दूंगा। सिने हाल की खिड़कियों पर कभी हमें मुन्‍ना भाई अच्‍छा लगता है, लेकिन सिंहम, राउडी राठौड़ एवं सिंहम को भी हम कम प्‍यार नहीं करते। नायक एवं इंडियन फिल्‍म देखते हुए कई लोगों का खून खौलते हुए देखा है, लेकिन वो शांत फिल्‍म के खत्‍म होते ही हो जाता है।

सवाल तो यह भी है कि अगर एक नेता अपने बिगड़ैल ऑफिसरों एवं कुछ बिजनस माफियाओं को सुधारने के लिए दबंग गिरी पर उतरने की बात कहता है तो एक आम आदमी शरारती तत्‍वों को सुधारने के लिए बापू गांधी बनना कहां पसंद करेगा। अनूप मिश्रा का यह रवैया कहीं, गांधी बापू की खादी को गुंडों की वर्दी न बना दें।

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