बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए

आज की ब्रेकिंग न्‍यूज क्‍या है ? सर अभी तक तो कोई नहीं, लेकिन उम्‍मीद है कि कोई दिल्‍ली से धमाका होगा। अगर न हुआ तो। फिर तो मुश्‍िकल है सर। बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। कुछ ऐसे ही संवाद होते हैं आज के बाजारू मीडिया संपादक के।

मजबूरी का नाम महात्‍मा गांधी हो या मनमोहन सिंह, कोई फर्क नहीं पड़ता। मजबूरी तो मजबूरी है। उसके सामानर्थी शब्‍द ढूंढ़ने से कुछ नहीं होने वाला। पापी पेट के लिए कुछ तो पाप करने पड़ते हैं। आज मीडिया हाऊसों की वेबसाइटों को अश्‍लील वेबसाइटों में तब्‍दील किया जा रहा है। अगर कोई ब्रेकिंग न्‍यूज नहीं तो क्‍या हुआ, तुम कुछ बनाकर डालो, अश्‍लील फोटो डालो, लिप लॉक की फोटो डालो। मुझे तो बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। इतना ही नहीं, मासिक पत्रिकाएं भी कहती हैं अब कुछ करो, बुक स्‍टॉलों पर ट्रैफिक चाहिए, वरना घर जाइए।

हर किसी को ट्रैफिक चाहिए। हर कोई ट्रैफिक के पीछे दौड़ रहा है। सड़कें ट्रैफिक से निजात पाना चाहती हैं, मगर ऐसा हो नहीं पा रहा। पैट्रोल के रेट बढ़ रहे हैं तो कंपनियां वाहनों के रेट गिराकर डीजल मॉडल उतार रही हैं। ट्रैफिक कम होने का नाम नहीं ले रहा, वहीं दूसरी तरफ नेता अभिनेता भी ट्रैफिक बढ़ाने को लेकर लगे हुए हैं।

फिल्‍मी दुनिया में तो आजकल इतना जद्दोजहद चल रहा है, जो सितारा बॉक्‍स ऑफिस पर ट्रैफिक खींचने की कुव्‍वत रखता है, उसको पहल के आधार पर साइन किया जाता है एवं शर्त होती है कि फिल्‍मी नफे का कुछ प्रतिशत आपको मिलेगा। ऐसे में अभिनेताओं में युद्ध शुरू हो गया है। यही कारण था कि जब तक है जान के रिलीज होने के लिए सिनेहाल पहले से बुक कर लिए गए थे, और अजय देवगन की सन ऑफ सरदार को कम सिनेहालों में रिलीज करना पड़ा। अब आमिर ख़ान भी अपनी अगली फिल्‍म तलाश को लेकर कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। आमिर ख़ान बॉलीवुड में सबसे अधिक ट्रैफिक खींचने वाला सितारा है, लेकिन इस बार उसके पास भी समय कम है, क्‍यूंकि तलाश के अगले हफ्ते खिलाड़ी 786 रिलीज हो रही है। सोनम को छोड़कर निर्देशक सोनाक्षी को साइन कर रहे हैं, क्‍यूंकि ट्रैफिक खींचने वाली आइटम चाहिए।

नरेंद्र मोदी को हाईटेक प्रचार की जरूरत क्‍यूं पड़ रही है, क्‍यूंकि पिछले दस सालों के अंदर किसी पौधे को पनपने नहीं दिया, अब हैट्रिक का दबाव है, ऐसे में हर जगह पहुंच नहीं पा रहा, लेकिन हैट्रिक लगाने के लिए जरूरत कहती है कि ट्रैफिक चाहिए। मगर सड़कें कहती हैं ट्रैफिक नहीं चाहिए। नहीं चाहिए। नहीं चाहिए। इतने शोर शराबे में उनकी सुनता कौन है। क्‍यूंकि वाहन बनाने वाली कंपनियों ने प्रचार कंपनियों पर दबाव डाल दिया है कि शो रूम के अंदर ट्रैफिक चाहिए।

टिप्पणियाँ

  1. अच्छा लिखा है कुलवंत जी ट्रेफिक में तो सभी आते हैं चाहे नेता हो या अभिनेता. .आत्महत्या -परिजनों की हत्या

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  2. बहुत बहुत आभार। अपने मूल्‍य विचार रखने एवं मुझे प्रोत्‍साहन देने हेतु

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  3. बहुत सटीक कुलवंत जी ... वैसे ब्लॉग जगत भी इससे अछूता नहीं है

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