खुर्शीद और कांग्रेसी ता ता थैय्या

वाकई, अब तो यकीन हो गया है कि कांग्रेस महासचिव दि‍ग्विजय सिंह की दिमागी हालत ठीक नहीं है. उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने की दरकार है. वे कहते हैं कि सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी ने शालीनता से  सारे सवालों का जवाब दे दिया है ऐसे में खुर्शीद के खिलाफ कुछ करने को बचता ही नहीं है. गलत केजरीवाल हैं खुर्शीद नहीं. (लाल रंग के शब्दों पर ख़ास ध्यान दें.)

इसी को कहते हैं, पहले चोरी फिर सीना ज़ोरी. चोरों को यह ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि अब माना बदल गया है. अब 'सीसीटीवी कैमरा' है, जो चोर को पकड़वाने में बड़ा मददगार है. पर... चोर हैं कि पुराने ढर्रे पर चोरी किए चले जा रहे हैं. सिनेमा भी नहीं देखते. धूम और धूम 2 देखी होती तो चोरी का कोई नया तरीका इज़ाद करते. खैर..

हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है. इसमें कहा गया है कि डॉ. ज़ाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट ने ऐसे गांवों में भी कैंप लगा दिए जो वास्तव में हैं ही नहीं. वाह क्या बात है.

यहां दो संभावनाएं नज़र आती हैं -

एक संभावना यह है कि वे गांव हैं और भारत सरकार अभी तक उन तक पहुंच नहीं पाई है, उन्हें पहचान नहीं पाई है. हो सकता है कि सलमान जी का ट्रस्ट वहां पहुंच गया हो. अगर ऐसा है तो फिर वह सूची भी सच्ची है, जिसमें ऐसे नाम हैं, जिनका कोई वजूद नहीं होने की बात कही जा रही है. फिर तो सलमान खुर्शीद साहब ने बड़ा ही नेक काम किया है. ख़ुदा ने उनके लिए ज़न्नत में एक सीट अभी से तय कर दी होगी. पर इस संभावना में कोई संभावना नज़र नहीं आती.

दूसरी और ज़्यादा विश्वसनीय संभावना यह है कि गांव है ही नहीं. अगर गांव हैं ही नहीं और वे लोग भी नहीं हैं, जिन्हें लाभ दिए जाने की बात कही जा रही है तो फिर कांग्रेसी महासचिव और पार्टी के बाकी नेता अरविंद केजरीवाल को झूठा कैसे कह रहे हैं. आरोपों को नकार देने से ही अपराध मुक्त नहीं हुआ जा सकता. कांग्रेस के सभी बड़े नेता खुर्शीद का पक्ष ले चुके हैं. अब दिग्गी भला क्यों पीछे रहें. चलो, इनके बयान का इंतज़ार था, सो आ गया. कांग्रेसी लोग सिर्फ केजरीवाल को ही झूठा नहीं बता रहे, बल्कि मीडिया, अफसरों और तमाम उन विकलांगों को भी झूठा बता रहे हैं, जो सलमान खुर्शीद और उनके ट्रस्ट के खिलाफ़ खड़े हैं. या मैं कहूं कि कांग्रेसी सच को झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं. और यदि सलमान खुर्शीद सच झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं तो अल्लाह तआला ने जहन्नम में खुर्शीद साहब की सीट का अरेंजमेंट करवा दिया होगा. उनके लिए अलग ख़ास किस्म के अज़ाब (ट्रीटमेंट) तैयार करवा रहे होंगे. अलग ख़ास किस्म का इसलिए क्योंकि विकलांगों का हक़ खा जाना भी एक तरह का अलग अपराध है.

तो दोस्तो आपकी कौन सी संभावना प्रबल नज़र आती है?
एक छोटी सी बात और. इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा तो 70 लाख को बहुत कम रकम मानते हैं. पर मैं एक छोटा सा कैलकुलेशन बताना चाहता हूं. मान लो एक आम आदमी एक महीने में 20 हज़ार रुपए कमाता है. साल भर में कमाएगा 20 हज़ार गुणा 12. मतलब 2 लाख 40 हजार. अब सत्तर लाख कमाने में उसे कितने साल लगेंगे? कम से कम 29 साल. मतलब एक आदमी अगर 20 साल की उम्र में कमाना शुरू कर दे तो 50 साल का होकर 70 लाख रु कमा चुका होगा. इस महंगाई में अगर वह 10 हज़ार रुपए महीना भी बचा ले तो वह 50 साल की उम्र तक 30 लाख रुपए बचा पाएगा. 30 लाख में एक घर खरीदना भी संभव नहीं है. तो बेनी साहब को यह गणित क्यों समझ में नहीं आता?? अरे हां, समझ में कैसे आएगा, कभी आम आदमी की तरह संघर्ष किया हो तो समझ में आए. माइंड इट.

यह लेख मलखान सिंह, जो कि उम्‍दा ब्‍लॉगर हैं, और रफ्तार डॉट कॉम में कार्यरत हैं, द्वारा लिखा गया है, इस को युवा सोच युवा खयालात  प्रबंधन ने  उनके दुनाली ब्‍लॉग से लिया है, जोकि नवभारत टाइम्‍स पर संचालित है। 


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