लफ्जों की धूल
(1)
भले ही,
तुम लहरों सी करो दीवानगी,
लेकिन मैं अक्सर तेरा,
किनारों की तरह इंतजार करूँगा।
(2)
कुछ मेरे डगमगाते कदमों का,
कसूर कुछ अंधेरों का भी होगा
इतनी गुस्ताख निगाहें नहीं हैप्पी,
कुछ दोष चेहरों का भी होगा।
(3)
फूल में महक तो तब भी थी,
जब तेरी निगाह खार पर थी।
दुनिया अब भी है, तब भी थी,
जब तेरी निगाह यार पर थी।
(4)
वो आजकल अक्सर मेरी कबर पर आते हैं,
शायद देखने
कोई साँस बाकी तो नहीं, मेरे महबूब का।
(5)
मिला था जो अजनबी बनकर
हुआ जुदा अज्ज नबी बनकर।
1.अज्ज-आज 2.नबी - ईश्वरीय दूत
(6)
मजहबी दंगों की आग में
झुलस गया पूरा चेहरा,
अब रक्तकणों से कर पहचान
मरने वाला हिन्दु या मुस्लमान
(7)
वो समय ही कुछ और था,
जब माँ आटे से चपाती,
और मैं चिड़िया बनाता था।
(8)
सच मानो, कुत्ते की भांति इंसान भी रोटी दर-ब-दर ढूँढता है
सिमटे कब्रिस्तान, दफन होने के लिए मुर्दा भी कबर ढूँढता है
मकानों के इस शहर में कोई हैप्पी सा मनचला घर ढूँढता है
(9)
जीने के लिए तो मरा कई दफा मैं पागल,
मरने के लिए जीना चाहता हूँ अब कुछ पल।
भले ही,
तुम लहरों सी करो दीवानगी,
लेकिन मैं अक्सर तेरा,
किनारों की तरह इंतजार करूँगा।
(2)
कुछ मेरे डगमगाते कदमों का,
कसूर कुछ अंधेरों का भी होगा
इतनी गुस्ताख निगाहें नहीं हैप्पी,
कुछ दोष चेहरों का भी होगा।
(3)
फूल में महक तो तब भी थी,
जब तेरी निगाह खार पर थी।
दुनिया अब भी है, तब भी थी,
जब तेरी निगाह यार पर थी।
(4)
वो आजकल अक्सर मेरी कबर पर आते हैं,
शायद देखने
कोई साँस बाकी तो नहीं, मेरे महबूब का।
(5)
मिला था जो अजनबी बनकर
हुआ जुदा अज्ज नबी बनकर।
1.अज्ज-आज 2.नबी - ईश्वरीय दूत
(6)
मजहबी दंगों की आग में
झुलस गया पूरा चेहरा,
अब रक्तकणों से कर पहचान
मरने वाला हिन्दु या मुस्लमान
(7)
वो समय ही कुछ और था,
जब माँ आटे से चपाती,
और मैं चिड़िया बनाता था।
(8)
सच मानो, कुत्ते की भांति इंसान भी रोटी दर-ब-दर ढूँढता है
सिमटे कब्रिस्तान, दफन होने के लिए मुर्दा भी कबर ढूँढता है
मकानों के इस शहर में कोई हैप्पी सा मनचला घर ढूँढता है
(9)
जीने के लिए तो मरा कई दफा मैं पागल,
मरने के लिए जीना चाहता हूँ अब कुछ पल।
आभार
nice
जवाब देंहटाएंसभी सुंदर हैं एक से बढ कर एक
जवाब देंहटाएंबस एक पंक्ति में मुझे लगा कि शायद
कोई सांस बांकी तो नहीं मेरे महबूब का .....इसमें का के स्थान पर की होना चाहिए ..था शायद देख लीजिएगा जरा कुलवंत भाई
अजय कुमार झा
बहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण 'धूल' है आपके 'लफ़्ज़ों' की ! बहुत सुन्दर खयालात और बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
बेहतरीन प्रस्तुति .......भावों को बहुत अच्छे से आपने शब्दों का रूप दिया है .....बहुत बहुत बंधाई .
जवाब देंहटाएंवाह भाई बहुत से दिल से जोड़े है,
जवाब देंहटाएंखूबसूरत क्षाणिकाएँ...पहले वाली कुछ खास ही लगा..दिल को भा गया..
"भले ही,
तुम लहरों सी करो दीवानगी,
लेकिन मैं अक्सर तेरा,
किनारों की तरह इंतजार करूँगा।"
बधाई हो भाई
वो समय ही कुछ और था,
जवाब देंहटाएंजब माँ आटे से चपाती,
और मैं चिड़िया बनाता था।
-काश! वो दिन लौट पाते!!
यूँ तो सभी एक से बढ़कर एक है ...मगर फिर भी ये ख़ास है ...
जवाब देंहटाएं@जीने के लिए तो मरा कई दफा मैं पागल,
मरने के लिए जीना चाहता हूँ अब कुछ पल...
हर इंसान जीना चाहता है मरने से पहले .....
@ मिला था जो अजनबी बनकर
हुआ जुदा अज्ज नबी बनकर...
ये पंक्तियाँ बहुत भायी...!!
फूल में महक तो तब भी थी,
जवाब देंहटाएंजब तेरी निगाह खार पर थी।
दुनिया अब भी है, तब भी थी,
जब तेरी निगाह यार पर थी।
sahi he
bahut sundar
wow !!!!!!!!!!
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
लफ्जो का खुबसुरत ताल मेल ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..
वो समय ही कुछ और था,
जवाब देंहटाएंजब माँ आटे से चपाती,
और मैं चिड़िया बनाता था।
भाई... यह किन दिनो की याद दिलादी आपने ..अब आगे कुछ भी कहना मुश्किल है ।
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं