प्रधान मंत्री के नाम खुला पत्र

प्रिय मनमोहन सिंह। मैं देश का आम नागरिक हूं। मुझे ऐसा लगने लगा है कि अब देश पर चल रही साढ़े साती खत्‍म होने का वक्‍त आ गया है। आपको अब नैतिक तौर पर अपने पद से अस्‍तीफा दे देना चाहिए। बहुत मजाक हो चुका। अब और मत गिराओ प्रधान मंत्री पद की गरिमा को। तुम राष्‍ट्र संदेश के अंत में पूछते हो ठीक है, जबकि देश में कुछ भी ठीक नहीं। हर तरफ थू थू हो रही है। उस समय 'ठीक' शब्‍द बहुत ख़राब लगता है, जब देश के नागरिक ठीक करवाने के लिए सड़कों पर उतर कर दमन का सामना कर रहे हों।

प्रिय मनमोहन सिंह मैं जानता हूं, चाय में चायपत्‍ती की मात्र चीनी, पानी एवं दूध से कम होती है। मगर पूरा दोष चायपत्‍ती को दिया जाता है, अगर चाय अच्‍छी न हो। मैं जानता हूं, आपकी दशा उस चायपत्‍ती से ज्‍यादा नहीं, लेकिन अब बहुत हुआ, अब तो आपको सोनिया गांधी पद छोड़ने के लिए कहे चाहे न कहे, आपको अपना पद स्‍वयं जिम्‍मेदारी लेते हुए छोड़ा देना चाहिए, ये ही बेहतर होगा।

वरना पूरा देश उस समय सदमे में पहुंच जाएगा। जब सचिन की तरह आपके भी संयास की ख़बर एक दम से मीडिया में आएगी। सचिन के नाम तो बहुत सी अच्‍छी उपलब्‍िधयां हैं, लेकिन आप की सरकार के नाम तो भ्रष्‍टाचार एवं घोटालों के अलावा कोई बड़ी उपलब्‍धि नहीं। आप एक अच्‍छे अर्थ शास्‍त्री हैं। लेकिन मैं हैरान हूं कि तीन दिन लग गए, यह बताने में कि आपके तीन बेटियां हैं। आप से पहले गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया था, मेरे दो बेटियां हैं। मैं सोचता हूं कि अगर इन दिनों देश की कामना हमारे विश्‍व प्रसिद्ध बिहारी ब्रांड लालू प्रसाद यादव के हाथ में होती तो इस बयान के लिए जनता को सात दिन इंतजार करना पड़ता, क्‍यूंकि उनके तो सात बेटियां हैं।

यकीनन सोनिया गांधी को अफसोस रहा होगा कि उनको मौका नहीं मिला अपनी इकलौती पुत्री के बारे में बताने का, क्‍यूंकि शिंदे जी पहले ही दो नम्‍बर को जग जाहिर कर चुके थे। वैसे देश को खुशी हुई यह जानकार कि अब आप अपने परिवार समेत घर में सलामत हैं।

इस बयान से कहीं मनमोहन सिंह जी आप ये तो कहना नहीं चाहते थे कि मेरे तीन बेटियां हैं, अगर वो सुरक्षित हैं, और आपकी बेटियां असुरक्षित हैं तो इसमें सरकार नहीं, बल्‍िक जनता का कसूर है या फिर जब आग हमारे घर आएगी तो देखेंगे। अगर आप दूसरे विकल्‍प को दर्शाने की बात करते हैं तो मैं आपको एक कविता सुनाना चाहूंगा, जो मार्टिन नेमोलर की एक विश्‍व प्रसिद्ध कविता 'फर्स्‍ट दे कम' का हिन्‍दी अनुवाद है, जो कुछ दिन पूर्व राजस्‍थान पत्रिका में प्रकाशित हुई थी ''पहले वे फूलनों के लिए आए, मैंने कुछ नहीं कहा, क्‍यूंकि मैं फूलन नहीं थी, फिर वे नैनाओं के लिए आए, मैंने कुछ नहीं कहा, क्‍यूंकि मैं नैना नहीं थी, फिर वे भंवरियों के लिए आए, मैंने कुछ नहीं कहा, क्‍यूंकि मैं भंवरी नहीं थी, उसके बाद वे मेरे लिए आए, और वहां मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं था।

अंत में मनमोहन सिंह जी आपको एक बार फिर नैतिक जिम्‍मेदारी का अहसास करवाते हुए अपना पद छोड़ने की सलाह दूंगा। वैसे एक और बात, महात्‍मा गांधी के नाम दर्ज एक कहावत को लोगों ने बहुत पहले आपके नाम दर्ज कर दिया था, जिसे लोग अब ऐसे कहते हैं, मजबूरी का नाम मनमोहन सिंह।

वैसे आज मैंने भी एक बद दुआ को जन्‍म दिया, कुछ यूं, अगर आप का किसी देश को बद दुआ देने का मन करे तो चुपके से कह दीजिए, तुम्‍हारे देश का प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जैसा हो।

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