बंद खिड़की के उस पार




करने को कल जब कुछ न था
मन भी अपना खुश न था
जिस ओर कदम चले
उसी तरफ हम चले
रब जाने क्यों
जा खोली खिड़की
जो बरसों से बंद थी
खुलते खिड़की
इक हवा का झोंका आया
संग अपने
समेट वो सारी यादें लाया
दफन थी जो
बंद खिड़की के उस पार
देखते छत्त उसकी
भर आई आँखें
आहों में बदल गई
मेरी सब साँसें
आँखों में रखा था जो
अब तक बचाकर
नीर अपने
एक पल में बह गया
जैसे नींद के टूटते
सब सपने

टिप्पणियाँ

  1. यह जो खिड़की हवा से खुल गई
    कुछ पुरानी यादें जेहन मे घु्ल गई
    बस यही तो खजाना है जीवन का
    जैसे कोई नई जिन्दगी मिल गई




    मिल्नेगे यहाँ पर 12.30 के बाद

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह जी कमाल की खिडकी खोल डाली आपने तो
    अजय कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी कविता,शुभकामनायें.
    krantidut.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. खिड़की खुली है तो हवा के झोंके आते ही रहेंगे खुश रहे ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी कविता,शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं

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