रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का।



बहुत छेद हैं
तन पे, मन पे
टुकड़ों में बिखरा कराह रहा है

रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का।
आओ युवाओं तुम्हें बुला रहा है।

बे-आबरू हुई औरतों सा
बे-लिबास है
उदास है
अपनी बेबसी पे अश्क बहा रहा है।
रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का।
आओ युवाओं तुम्हें बुला रहा है।


देख रहा है रास्ता,
कोई आए, ढके मेरे तन को
लिए मन में चाह
रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का।
आओ युवाओं तुम्हें बुला रहा है।


मत बनो पितामा युवाओ
सच देखो, आगे आओ
सोया अंदर युवा जगाओ
 ऊँची उँची आवाज लगा रहा है
रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का
आओ युवाओं तुम्हें बुला रहा है।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत छेद हैं
    तन पे, मन पे
    टुकड़ों में बिखरा कराह रहा है

    रक्तरंजित लोकतंत्र मेरे देश का।
    आओ युवाओं तुम्हें बुला रहा है।
    कुलवन्त इस कविता के लिये जितने भी शब्द कहूँ कम हैं अगर सभी युवकों मे ये जज़्वा आ जाये तो सच मे देश स्वर्ग बन जाये बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  2. इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही उम्दा कविता पेश की है कुलवंत भाई आपने, सच में हर एक शब्द जैसे बहुत कुछ कह रहें हों । बधाई

    जवाब देंहटाएं

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