बस! एक गलती
जाओ, मत रूको और जाओ मत, रूको। इस में सिर्फ और सिर्फ एक अल्पविराम का फर्क है, एक थोड़ा से पहले लग गया और एक थोड़ा सा बाद में, लेकिन इसने पूरे पूरे वाक्य का अर्थ ही बदल दिया। वैसे ही, जैसे आज एक इंग्लिग न्यूज पेपर में प्रकाशित हुए एक विज्ञापन ने। वो था विज्ञापन, लेकिन एक गलती से ख़बर बन गया।
यहां इस विज्ञापन में हुई गलती दृश्य एवं प्रचार निदेशालय के अधिकारियों की लापरवाही को उजागर करती है, वहीं मुझे थोड़ा सा सुकून भी देती है, क्योंकि विज्ञापन का अर्थ होता है किसी भी चीज का प्रचार करना। चूक कहीं से भी हुई हो, चाहे सरकारी दफतरों के अधिकारियों से या फिर दैनिक समाचार पत्र के कर्मचारियों से।
इस छोटी भूल ने इस भ्रूण हत्या विरोधी विज्ञापन को आज जन जन तक पहुंचा दिया। थोड़ी सी भूल हुई, विज्ञापन खुद ब खुद ख़बर बन गया, और ख़बर बन आम जन तक पहुंच गया। जो विज्ञापन का मकसद था। आम तौर पर दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले केवल वो ही विज्ञापन पढ़े जाते हैं, जिनमें कोई फायदे की बात हो...जैसे एक पर एक फ्री, इतने की खरीदी पर इतने का सामान मुफ्त पाएं। सच में ऐसे विज्ञापन ही पढ़े जाते हैं।
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित होने वाला अमन की आशा विज्ञापन कितने लोगों ने पढ़ा, जिसमें फिल्म अभिनेता अमिताभ बचन की फोटो के साथ गुलजार की एक शानदार रचना है और एक परिंदा उड़ रहा है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच अमन कायम करने का पैगाम देता है। इस विज्ञापन को किसी न्यूज चैनल ने प्रमुखता के साथ नहीं लिया, अगर गलती से अमिताभ बच्चन की जगह किसी पाकिस्तानी का फोटो लग जाता तो शायद खबर बनते ही अमन का संदेश घर घर पहुंच जाता। अमन की आशा विज्ञापन ऐसे समय में बहुत काम की चीज है, जब आईपीएल के कारण पाकिस्तान और भारत में एक बार फिर से तनाव बढ़ने लगा है।
यहां इस विज्ञापन में हुई गलती दृश्य एवं प्रचार निदेशालय के अधिकारियों की लापरवाही को उजागर करती है, वहीं मुझे थोड़ा सा सुकून भी देती है, क्योंकि विज्ञापन का अर्थ होता है किसी भी चीज का प्रचार करना। चूक कहीं से भी हुई हो, चाहे सरकारी दफतरों के अधिकारियों से या फिर दैनिक समाचार पत्र के कर्मचारियों से।
इस छोटी भूल ने इस भ्रूण हत्या विरोधी विज्ञापन को आज जन जन तक पहुंचा दिया। थोड़ी सी भूल हुई, विज्ञापन खुद ब खुद ख़बर बन गया, और ख़बर बन आम जन तक पहुंच गया। जो विज्ञापन का मकसद था। आम तौर पर दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले केवल वो ही विज्ञापन पढ़े जाते हैं, जिनमें कोई फायदे की बात हो...जैसे एक पर एक फ्री, इतने की खरीदी पर इतने का सामान मुफ्त पाएं। सच में ऐसे विज्ञापन ही पढ़े जाते हैं।
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित होने वाला अमन की आशा विज्ञापन कितने लोगों ने पढ़ा, जिसमें फिल्म अभिनेता अमिताभ बचन की फोटो के साथ गुलजार की एक शानदार रचना है और एक परिंदा उड़ रहा है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच अमन कायम करने का पैगाम देता है। इस विज्ञापन को किसी न्यूज चैनल ने प्रमुखता के साथ नहीं लिया, अगर गलती से अमिताभ बच्चन की जगह किसी पाकिस्तानी का फोटो लग जाता तो शायद खबर बनते ही अमन का संदेश घर घर पहुंच जाता। अमन की आशा विज्ञापन ऐसे समय में बहुत काम की चीज है, जब आईपीएल के कारण पाकिस्तान और भारत में एक बार फिर से तनाव बढ़ने लगा है।
क्या बात बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंsahi kaha
जवाब देंहटाएंसटीक कहा ... बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सटीक......
जवाब देंहटाएंसदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा भाई आपने ।
जवाब देंहटाएंसही बात कही आपने..एक ग़लती वाक्य का पूरा अर्थ बदल देती है..
जवाब देंहटाएंभले ही संदेश घर घर पहुँचा हो लेकिन गलती के पीछे बहुतो के बैंड बज गए होंगे।
जवाब देंहटाएंकभी कहना नहीं, चुप रहना....
जवाब देंहटाएंकभी कहना, नहीं चुप रहना....
जाने क्या सिखला गए हैं आप... ऊंचा सुनने कि मशीन कही थी लगाने को... हेड फ़ोन लगा गए हैं आप...
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
अमन पैग़ाम है मेरा...
जवाब देंहटाएंख्वाब है कोई सरहद न इसे रोके...
जय हिंद...
...सही कह रहे हैं!!!!!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा!
जवाब देंहटाएंबेटा आजकल तो बहुत बडी बडी बातें करने लगे हो । आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंसही बात कही आपने.
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