अखिलेश दुर्गा ले लेगी तेरी जान, तू लिखके ले ले
युवा पीढ़ी आमने सामने है। एक तरफ युवा आईएएस अधिकारी तो दूसरी तरफ युवा मुख्यमंत्री। एक महिला वर्ग का नेतृत्व कर रहा है तो दूसरा पुरुष वर्ग का। एक ने कड़ी मुश्क्कत के बाद पद हासिल किया तो एक को पिता से विरासत में मिली गद्दी।
जी हां, उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पिता की ओर से विरासत में गद्दी मिली है, हालांकि दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ ऐसा नहीं हुआ। आईएएस के इम्तिहानों को पास करना कोई बच्चों का खेल नहीं, खासकर नेताओं का तो बिल्कुल नहीं।
अखिलेश यादव ने जब आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित करने के मामले को सही ठहराते हुए सफाई दी, तब शायद उनको याद भी नहीं आया कि यूपी के रामपुर में एक मदरसा गिराया गया है, वहां पर भी स्थिति बिगड़ सकती थी, लेकिन वहां तो कोई इस तरह की कार्रवाई नहीं हुई। यह बात तब सामने आई, जब फिल्म अभिनेत्री से राजनेता बनीं, जयप्रदा ने अखिलेश यादव से सवाल करते हुए पूछा कि क्या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यह पता नहीं है कि रामपुर
में 23 जुलाई को एक मदरसा तोड़ दिया गया था? इससे भी तो माहौल खराब हो सकता
था? फिर रामपुर में किसी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
यकीनन, पिता मुलायम सिंह की निगाह हमेशा मुस्लिम वोटरों पर रही है, तो बेटा मुस्लिम वोटों की आड़ में ईमानदार अधिकारियों की विकेट गिराकर खनन माफियों से कनेक्शन स्थापित करने की होड़ में जुटा हुआ है, क्यूंकि हरियाणा के कांग्रेसी नेता बीरेंद्र सिंह ने पिछले दिनों खुलासा किया कि राज्य सभा की सीट की कीमत 100 करोड़ रुपये है। अखिलेश यादव पढ़ा लिखा नौजवान है। उसने स्मार्ट फोन पर जोड़ घटा करने वाला एप्स खोला, और देखा कि कहां से कितना पैसा आ सकता है, ताकि कुछ सीटों का बंदोबस्त किया जा सके।
रिपोर्टों की मानने तो दुर्गा शक्ति नागपाल की सख्ताई के कारण अब तक खनन माफिया का कारोबार रूकने से अखिलेश यादव की सरकार को पांच सीटों का नुक्सान हो चुका है, मतलब पांच सौ करोड़ रुपये का। अब नेता लोग रिश्वत खोखे में नहीं, सीट में मांगेंगे। एक सीट बोलेंगे तो सौ करोड़, डेढ़ सीट बोले तो डेढ़ सौ करोड़।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कुछ समय के लिए शब्द कोशों का निर्माण रोक दिया है। दरअसल, भारत में कुछ नये शब्दों का प्रयोग हो रहा है। आपदा पर्यटन, 41 मिनट में तबादला, सौ टंच माल बगैरह बगैरह। अखिलेश यादव भैया ने सरकार के फैसले के बचाने के लिए जी जान लगा दी, लेकिन जिस नेता की सिफारिश पर पूरा कांड हुआ, वे नेता ही भूल गया कि मीडिया है, जो वे बोल रहे हैं रातोरात आपको स्टार और डस्ट बना सकता है।
मामला पूरा डस्ट से जुड़ा हुआ है। डस्ट धूल होती है, लेकिन इसका उत्तम संस्करण, रेत कहलाता है, जो आज कल यूपी में नोट छापने के काम आ रहा है। रेत नोट छापने के काम नहीं आती, लेकिन इसके बेचान से खूब कमाई की जा रही है। उस कमाई का जो हिस्सा अखिलेश सरकार को जाना था, वे केवल समाजवादी पार्टी के नेताओं को जा रहा है। इससे समाजवादी पार्टी धनाढ्यों की पार्टी तो बनती जा रही है, लेकिन यूपी सरकार का खजाना दिन प्रति दिन लूट रहा है। यह धोखा है उन यूपी वासियों के साथ, जो आज भी सुविधाओं को तरस रहे हैं। युपी की जनता के सामने दो युवा खड़े हैं एक अखिलेश यादव तो दूसरी दुर्गा शक्ति नागपाल। उम्मीद है कि यूपी की जनता सच्चाई और ईमानदारी के साथ जाएगी, जैसे कि कलादपुर गांव के वासियों ने डीएम रिपोर्ट में दुर्गा का साथ दिया।
परत दर परत खुल रही है। अखिलेश यादव की हकरतों से अक्सर तंग परेशान रहने वाले पिता भी कुछ बोलेंगे, शायद इस बार मुलायम सिंह को बीस साल का समय नहीं लगेगा, क्यूंकि लोक सभा चुनाव कभी भी हो सकते हैं। मॉनसून की तरह अब चुनावों का अनुमान लगाना कठिन है। फिलहाल, जो कुछ यूपी में हो रहा है उससे अन्य पार्टियों को बल मिल रहा है।
राजनीति और शर्म का कोई रिश्ता होता नहीं है !!
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