बिहार को किस की नजर लग गई
आधुनिकता के इस युग में नजर कोई मायने नहीं रखती। नजर से तात्पर्य, दृष्टि नहीं, अंधविश्वास है। कहते सुना होगा कि नजर लग गई। नजर लगना, बुरी बला का साया पड़ना। अच्छा होते होते एकदम बुरा होने लगना। जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं तो भारतीय लोग अपने पुराने रीति रिवाजों के ढर्रे पर आ जाते हैं, और सोचने लगते हैं कि इसके पीछे कुछ न कुछ है, जो अंधविश्वास से जुड़ा हुआ है।
सड़कों पर चलने वाले ट्रकों के पीछे बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, यह पंक्ति आम मिल जाएगी, हालांकि बुरी नजर वाले का मुंह कभी काला नहीं होता, जो लोग पैदाइशी काले होते हैं, उनके दिल और उनकी नजर भी अन्य लोगों की तरह पाक साफ होती है। काला रंग, तो ग्रंथों की शान है। काले रंग की फकीर कंबली ओढ़ते हैं। कोर्ट में वकील काले रंग का कोर्ट पहनता है। आंखों में डालने वाला काजल काला होता है। कुछ लोग तो बुरी नजर से बचाने के लिए घर की छत या मुख्यद्वार पर काला घड़ा रखते हैं।
महाबोधि मंदिर के हमले से तो बच निकले, लेकिन छपरा में मिड डे मील के कारण जिन्दगियां बचाने से मात खा गए। यहां एक स्कूल में भोजन खाने से लगभग दो दर्जन के करीब बच्चे अपनी जिन्दगी से हाथ धो बैठे, और पीछे छोड़ गए मातम, कुछ सवाल और चर्चाएं ।
छपरा के दर्द से बिहार उभरता कि इस सोमवार को भारतीय सीमा पर आतंकवादियों ने घातक लगाकर भारत के पांच जवानों को शहीद कर दिया, लेकिन इसमें भी चार जवान बिहार के थे, जो शहीद हुए। बिहार को एक बार फिर पीड़ा से गुजरना पड़ा।
एक हादसे के बाद एक बिहार को कष्ट, दर्द दे रहे हैं। ऐसे में यकीनन एक सवाल तो आता है कि आखिर बिहार को किस की नजर लग गई। कोई तो जाओ, मिर्च बिहार के ऊपर से घूमाकर चुल्हे में जला डालो, कुछ अगरबत्तियां बिहार के सिर से घूमाकर मुख्य द्वार पर लगा दीजिए, शायद बुरी भलाओं का साया बिहार से टल जाए, कहते हैं कि बुरी नजर तो पत्थरों को भी चीर देती है। हलका सा काला काजल का टिक्का लगा लें, शायद किसी ने चांद पर भी दाग इसलिए छोड़ दिया था कि इसको किसी की नजर न लगे, वरना चमकते हुए चांद में काला सा धब्बा क्यूं नजर आता।
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