रक्षा बंधन : वक्‍त मिले तो सोचिएगा

रक्षा बंधन। रक्षा का वचन। हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर एक धागा बांधती है। रक्षा का वचन लेते हुए बहन भाई की तरक्‍की की कामना भी करती है। यकीनन, उसके भावी पति के लिए भी कोई बहन इस दिन दुआ कर रही होगी। रक्षा बंधन से कई कहानी जुड़ी हैं, रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं, सिकंदर की पत्‍िन व राजा पौरस की, श्रीकृष्‍ण भगवान और द्रोपदी की। दिलचस्‍प बात तो यह है कि इन सब में खून का रिश्‍ता नहीं, बल्‍कि एक धागे का रिश्‍ता, भरोसे, भावनाओं का रिश्‍ता था।

कहानियों के मुताबिक शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। यहां तक ही नहीं, भगवान ने तो महाभारत में भी पांडवों का पूरा साथ दिया।

सिकंदर को अगर दुनिया में कोई टक्‍कर दे सकता था, और दी, वे केवल पौरस। मगर कहते हैं कि सिकंदर की पत्‍िन पौरस की ताकत को जानती थी, बहुत कुछ सुना था। सिंधु घाटी में मुंह बोली बहनों से राखी बंधवाने की प्रथा थी, जिसके बारे में सिकंदर की पत्‍िन ने सुन रखा था। कहते हैं कि पौरस से सिकंदर की पत्‍िन मिली, और उनसे अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए कहा। पौरस ने अपना वादा निभाया, दुनिया आज भी पौरस को उसकी महानता के लिए याद करती है। ऐसा ही किस्‍सा रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं का।

आज रक्षा बंधन सगे बहन भाईयों का त्‍यौहार  बनकर रह गया। उसमें भी गिफ्ट या पैसे का लेन देन मायने रखने लगा है। गरीब बहन पहले अपने अमीर भाई के पास जाएगी, गरीब के घर बाद में, हो सकता है न भी जाए, उसके बेटियां हुई तो ज्‍यादा देने पड़ सकते हैं। रक्षा बंधन। रक्षा करने का वचन देने का त्‍यौहार, कुछ कहते हैं कि इस दिन बहन अपने भाईयों की तरक्‍की के लिए दुआ करती है।

बहन की रक्षा। भाई कब करते हैं बहन की रक्षा। आज बहन को बाहर निकलने की थोड़ी सी आजादी मिली है। सदियों तक वे घर की चार दीवारी के भीतर थी, और भाई तो आज की तरह आजाद पंछी थे। ऐसे में रक्षा किस से करनी थी। शायद जो आज देश के कुछ हिस्‍सों में घटित हो रहा है, भाई बहन की इज्‍जत आसानी से लूट रहा है, इसे रोकने की कोशिश थी, ताकि घर की चार दीवारी में यह धागा दोनों को रिश्‍ते का अहसास करा सके। उनको पता हो उनकी रगों में दौड़ने वाला खून एक ही है, क्‍यूंकि जो कथाएं हैं, वे तो दो अलग अलग खून वाले शख्‍सों की हैं, जिन्‍होंने मदद का हाथ बढ़ाया। एक दूसरे की रक्षा की। रक्षा कब करता है भाई। पहले तो भाई घर में रूकता नहीं, फिर दूसरा सौ में से पांच भाई बहन के साथ बाजार के लिए निकलते होंगे, गर्ल फ्रेंड के साथ 95 फीसद। एक समय के बाद वे पति की हो जाती है। वे उसके घर चली जाती है। वहां उसकी रक्षा का जिम्‍मा उसके पति के सिर होता है। आज के युग में पांच रिश्‍ते ऐसे मिलेंगे जो निष्‍ठा और ईमानदारी से निभाये जा रहे हैं, वरना अधिकतर रिश्‍ते बहन भाई नहीं, पैसे के लिहाजे से निभाये जाते हैं। फैंसी राखियों की तरह रिश्‍ते फैंसी होते जा रहे हैं। सुनने में आया है कि चाइना की राखियां भी भारत में खूब बिक रही हैं।

जब एक बहन के अधिकारों की रक्षा की बात आती है तो भाई ही सबसे बड़ा दुश्‍मन बन उसके सामने खड़ा होता है। लड़का अपनी पसंद से दुल्‍हन चुनना है, लेकिन लड़की को केवल चुना जाता है। तब रक्षा बंधन पर दिया वचन याद नहीं आता। मुझे लगता है कि रक्षा बंधन। रक्षा के वचन से ही जुड़ा हुआ है। एक बहन प्रण लेती है कि मैं अपने भाई के अहं की रक्षा करूंगी, कभी उसके अहं को चोटिल नहीं होने दूंगी, जब तक मुझे नया और अपना सरनेम नहीं मिलता, जब तक पापा के मिले सरनेम की रक्षा करूंगी, जो मेरे नाम के पीछे लगा है। घर की चारदीवारी के बाहर भी निकली तो नजरें झुकाए निकलूंगी, वहां खड़े लड़कों से, जो मेरे तो नहीं लेकिन किसी के भाई जरूर हैं, जो रक्षा बंधन का धागा कलाई पर एक दिन बांधने के बाद भूल जाते हैं। अगर फिर भी को अप्रिय घटना घट गई तो स्‍थिति के अनुसार फैसला कर लूंगी, क्‍यूंकि कोई कृष्‍ण द्रोपदी को बचाने नहीं आएगा, भले ही कथाओं में ऐसा हो।

दिल्‍ली की निर्भया, जब हादसे का शिकार हुई तो उसके साथ उसका दोस्‍त था। भाई घर में चैन से सो रहा था, लेकिन दोनों उसकी रक्षा करने में असफल हुए, अंत निर्भया जिन्‍दगी गंवाकर चल दी। अगर रक्षा बंधन के दिन उसको खुद की रक्षा करने का जिम्‍मा सौंपा होता तो शायद वे रक्षा के लिए किसी अन्‍य का रस्‍ता तो न तांकती। आज महिलाओं को सशक्‍त बनाने की जरूरत है। उनको हम रक्षा का वादा कर कहीं न कहीं असहाय और कमजोर बनाते हैं। झांसी की रानी, दुर्गा मां को कब किसी भाई की जरूरत पड़ी थी। उनको रक्षा बंधन के दिन सशक्‍त बनाओ, कमजोर नहीं। उनको उनकी ताकतों से अवगत करवाओ। जब जब देवताओं पर आन पड़ी, तब तब वे रक्षा के लिए आन खड़ी। वे मर्दानी है। रक्षा बंधन के वक्‍त अगर देना है तो उसके अधिकारों की रक्षा का वादा करो। अपने सी स्‍वतंत्रता दो। प्रेमिका जीन्‍स टी शर्ट में अच्‍छी दिखती है, बहन बुरी।

पुरानी कथाओं में दो अजनबी एक भाई बहन के रिश्‍ते में बंधते हुए नजर आते हैं, लेकिन आज के युग में फ्रेंडशिप डे वाले दिन लड़के सड़कों पर निकलने वाले और रक्षा बंधन के दिन घरों में छुपकर बैठने वाले मोबाइल संदेश एक दूसरे से एक्‍सचेंज करते हैं। त्‍यौहारों को लेकर ऐसी मानसिकता है। उधर से बहन कोरियर में राखी भेजती है, इधर इंटरनेट बैकिंग के जरिये भाई गिफ्ट खरीदने के लिए पैसे, ताकि रिश्‍ता और प्‍यार बना रहे। इस जमाने में कुछ लोग हैं, जिनको आप महान कह सकते हैं, जो ताउम्र बहनों को बच्‍चों की तरह पत्‍िन की तकरार के बाद भी संभाले रखते हैं। हम समाज में रहते हैं तो कुछ परंपराओं को निभाना पड़ेगा, यह सोचकर परंपराएं मत निभाईए, देश में स्‍वतंत्रता का मजाक जैसे सरकार उड़ाती है, मत उड़ाइए। हैप्‍पी रक्षा बंधन। सलीके, तरीके, भावनाओं से मनाइए।

टिप्पणियाँ

  1. रक्षाबंधन के इस त्यौहार पर आप सभी मित्रगणों, और मेरे प्यारे देश वासियों को तहे दिल से हार्दिक शुभ-कामनायें। ,

    href="http://hindiblogsamuh.blogspot.in/">हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा अंक -2: रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर
    सामयिक प्रस्तुति
    रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

हार्दिक निवेदन। अगर आपको लगता है कि इस पोस्‍ट को किसी और के साथ सांझा किया जा सकता है, तो आप यह कदम अवश्‍य उठाएं। मैं आपका सदैव ऋणि रहूंगा। बहुत बहुत आभार।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार

हैप्पी अभिनंदन में महफूज अली

महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!

पति से त्रसद महिलाएं न जाएं सात खून माफ

fact 'n' fiction : राहुल गांधी को लेने आये यमदूत

सर्वोत्तम ब्लॉगर्स 2009 पुरस्कार

सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें