वॉट्सएप, फेसबुक और समाज
12 साल का रोहन फेसबुक पर खाता बनाता है। अपनी उंगलियों को मोबाइल पर तेज रफतार दौड़ाता है। एंड्रॉयड, विन्डोज, स्मार्ट फोन और ब्लैकबेरी के बिना जिन्दगी चलती नहीं। भारतीय रेलवे विभाग भले साधारण फोन से रेलवे टिकट कटवाने की व्यवस्था की तरफ बढ़ रहा हो, लेकिन भारतीय एक पीढ़ी हाईटेक फोनों की तरफ बढ़ रही है।
गेम्स, चैट और नेटसर्फिंग आज की युवा पीढ़ी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी है। यह दिनचर्या उनको अजनबियों से जोड़ रही है और अपनों से तोड़ रही है। अंधेर कमरे में भी हल्की लाइटिंग रहती है, यह लाइटिंग किसी कम रोशनी वाले बल्ब की नहीं, बल्िक मोबाइल फोन की स्क्रीन से निकली रोशनी है।
आज युवा पीढ़ी कहीं पर भी हो, लेकिन उसकी नजर मोबाइल फोन की स्क्रीन पर रहती है। रतन टाटा, बिरला और अम्बानी से ज्यादा व्यस्त है, हमारी युवा पीढ़ी। सेक्सी, होट कैमेंट आज आम बात हो चली है। फेसबुक, वॉट्सएप्स के मालिक दिन प्रति दिन धनी हो रहे हैं। सीबीआई और आईबी के दस्तावेजों से भी ज्यादा आज की युवा पीढ़ी के मोबाइल कॅन्फीडेंशियल होते हैं। एक शादी समारोह में एक लड़की मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी, इसलिए नहीं कि वे दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की थी, बल्कि इसलिए उसका ध्यान शादी समारोह में कम मोबाइल पर ज्यादा था। उंगलियां मोबाइल की स्क्रीन पर इस तरह चल रही थीं, जैसे कचहरी में बैठे टाइपिस्ट बाबू की। हर सेकेंड पर रीप्लई करना आज आम बात हो गई लगता है।
सस्ते इंटरनेट पैकेजों ने हर किसी की आदत बिगाड़ दी है। मिलने के लिए घर पर आया दोस्त, अगर मोबाइल फोन पर उंगलियां चलाता रहे, और बातों में सिर्फ औपरचारिक तौर पर सिर हिलाए तो गुस्सा किसी को भी आ जाएगा, पर ऐसे वक्त पर गुस्से को काबू रखने वाले को महात्मा गांधी कह सकते हैं।
अगर हमारा कोई मित्र दोस्त फेसबुक पर नहीं तो हम उसको सलाह देते हैं फेसबुक पर आ जा, लेकिन हम एक बार भी नहीं सोचते कि वहां पर हजार का आंकड़ा पार कर चुके लोगों से हमने कितनों के साथ बात की। हम फोटो शेयर कर देते हैं, वहां से कुछ लाइक आ जाते हैं। हम खुश होते हैं।
जब हमारी जिन्दगी में फेसबुक, स्मार्टफोन आदि इतना घुस चुके हैं, वहां पर अदालती आदेश क्या मायने रखता है, जिसमें कहा गया हो कि 13 से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया पर रोक होनी चाहिए। वे तो बहुत पहले से है, लेकिन वहां पर उम्र का प्रमाण पत्र मांगता कौन है, यहां तो भारत के सरकारी कार्यालय नहीं, जहां के कर्मचारी अपनी जेब गर्म करने या कायदे कानून का हवाला देते हुए आपके पैदा होने के साबूत मांग मांगकर आपको मरने जैसा कर देंगे।
यकीनन, इसका बढ़ता क्रेज घातक है, लेकिन इसको रोकने वाले अभिभावक, खुद इसका शिकार हैं। सिने दुनिया ने आम दुनिया की युवा पीढ़ी को अति बिंदास बना दिया है। एक घटनाक्रम की बात करें तो एक लड़की अपने फेसबुक खाते से एक अन्य दोस्त के साथ फोटो शेयर करती है, और कहती हैं भैया कैसी लगी, जो पूरी तरह बेलिबास पिक्चर है, और हैरानी की बात यह है कि लड़की की उम्र 14 साल भी नहीं है।
फेसबुक पर खाता बनाने के चक्कर में बच्चे सबसे पहला झूठ बोलते हैं उम्र के संबंध में। वे अन्य फेस के सहारे फेसबुक पर आते हैं। अपनों के अधिक बेगानों से दोस्ती करना पसंद करते हैं। जब अधिकतर बच्चे घरों में सुरक्षित नहीं, तो साइबर की दुनिया में उनके सुरक्षित होने की गारंटी कौन देगा।
गेम्स, चैट और नेटसर्फिंग आज की युवा पीढ़ी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी है। यह दिनचर्या उनको अजनबियों से जोड़ रही है और अपनों से तोड़ रही है। अंधेर कमरे में भी हल्की लाइटिंग रहती है, यह लाइटिंग किसी कम रोशनी वाले बल्ब की नहीं, बल्िक मोबाइल फोन की स्क्रीन से निकली रोशनी है।
आज युवा पीढ़ी कहीं पर भी हो, लेकिन उसकी नजर मोबाइल फोन की स्क्रीन पर रहती है। रतन टाटा, बिरला और अम्बानी से ज्यादा व्यस्त है, हमारी युवा पीढ़ी। सेक्सी, होट कैमेंट आज आम बात हो चली है। फेसबुक, वॉट्सएप्स के मालिक दिन प्रति दिन धनी हो रहे हैं। सीबीआई और आईबी के दस्तावेजों से भी ज्यादा आज की युवा पीढ़ी के मोबाइल कॅन्फीडेंशियल होते हैं। एक शादी समारोह में एक लड़की मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी, इसलिए नहीं कि वे दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की थी, बल्कि इसलिए उसका ध्यान शादी समारोह में कम मोबाइल पर ज्यादा था। उंगलियां मोबाइल की स्क्रीन पर इस तरह चल रही थीं, जैसे कचहरी में बैठे टाइपिस्ट बाबू की। हर सेकेंड पर रीप्लई करना आज आम बात हो गई लगता है।
सस्ते इंटरनेट पैकेजों ने हर किसी की आदत बिगाड़ दी है। मिलने के लिए घर पर आया दोस्त, अगर मोबाइल फोन पर उंगलियां चलाता रहे, और बातों में सिर्फ औपरचारिक तौर पर सिर हिलाए तो गुस्सा किसी को भी आ जाएगा, पर ऐसे वक्त पर गुस्से को काबू रखने वाले को महात्मा गांधी कह सकते हैं।
अगर हमारा कोई मित्र दोस्त फेसबुक पर नहीं तो हम उसको सलाह देते हैं फेसबुक पर आ जा, लेकिन हम एक बार भी नहीं सोचते कि वहां पर हजार का आंकड़ा पार कर चुके लोगों से हमने कितनों के साथ बात की। हम फोटो शेयर कर देते हैं, वहां से कुछ लाइक आ जाते हैं। हम खुश होते हैं।
जब हमारी जिन्दगी में फेसबुक, स्मार्टफोन आदि इतना घुस चुके हैं, वहां पर अदालती आदेश क्या मायने रखता है, जिसमें कहा गया हो कि 13 से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया पर रोक होनी चाहिए। वे तो बहुत पहले से है, लेकिन वहां पर उम्र का प्रमाण पत्र मांगता कौन है, यहां तो भारत के सरकारी कार्यालय नहीं, जहां के कर्मचारी अपनी जेब गर्म करने या कायदे कानून का हवाला देते हुए आपके पैदा होने के साबूत मांग मांगकर आपको मरने जैसा कर देंगे।
यकीनन, इसका बढ़ता क्रेज घातक है, लेकिन इसको रोकने वाले अभिभावक, खुद इसका शिकार हैं। सिने दुनिया ने आम दुनिया की युवा पीढ़ी को अति बिंदास बना दिया है। एक घटनाक्रम की बात करें तो एक लड़की अपने फेसबुक खाते से एक अन्य दोस्त के साथ फोटो शेयर करती है, और कहती हैं भैया कैसी लगी, जो पूरी तरह बेलिबास पिक्चर है, और हैरानी की बात यह है कि लड़की की उम्र 14 साल भी नहीं है।
फेसबुक पर खाता बनाने के चक्कर में बच्चे सबसे पहला झूठ बोलते हैं उम्र के संबंध में। वे अन्य फेस के सहारे फेसबुक पर आते हैं। अपनों के अधिक बेगानों से दोस्ती करना पसंद करते हैं। जब अधिकतर बच्चे घरों में सुरक्षित नहीं, तो साइबर की दुनिया में उनके सुरक्षित होने की गारंटी कौन देगा।
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