रैली समीक्षा - नरेंद्र मोदी एट हैदराबाद विद यस वी कैन
भाजपा के संभावित नहीं, बल्कि पक्के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने आज हैदराबाद में एक रैली को संबोधन किया, कहा जा रहा था कि यह रैली आगामी लोक सभा चुनावों के लिए शुरू होने वाले अभियान का शंखनाद है।
राजनेता के लिए रैलियां करना कोई बड़ी बात नहीं। रैलियां तो पहले से होती आ रही हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की रैली को मीडिया काफी तरजीह दे रहा है, कारण कोई भी हो। संभावित अगले प्रधानमंत्री या पैसा। नरेंद्र मोदी की रैली का शुभारम्भ स्थानीय भाषा से हुआ, जो बड़ी बात नहीं, क्यूंकि इटली की मैडम हर बात हिन्दी में बोलती हैं, भले शब्द उनके अपने लिखे हुए न हों।
नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का नारा इस्तेमाल किया, यैस वी कैन। इस बात से ज्यादा हैरान होने वाली बात नहीं, क्यूंकि नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग का जिम्मा उसी कंपनी के हाथों में है, जो बराक ओबामा को विश्वस्तरीय ब्रांड बना चुकी है, और जो आज भी अपनी गुणवत्ता साबित करने के लिए संघर्षरत है। ज्यादातर अमेरिकन का उस पर से भरोसा उठा चुका है। अफगानिस्तान से सेना वापसी, वॉल स्ट्रीट की दशा सुधारने, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने जैसे मोर्चों पर ओबामा पूरी तरह असफल हैं।
विज्ञापन कंपनियों का काम होता है, उत्पाद को बाजार में पहचान दिलाना, उस पहचान को बनाए रखना शायद उत्पाद निर्माता के हाथ में होता है। विज्ञापन हमेशा दिल को लुभावने वाले बनाए जाते हैं, अगर वे आकर्षक न होंगे, तो ग्राहक नहीं जाएगा उसको खरीदने के लिए।
यस वी कैन पर एक बार फिर लौटता हूं, यह शब्द सुनने भर से अगर आपको लगता है कि बहुत बड़ा करिश्मा हो गया है तो हर रविवार आपके शहर में किसी न किसी एमएलएम, नेटवर्किंग कंपनी की बैठक आयोजित होती होगी, उसमें जाइए, इससे भी ज्यादा आपको मोटिवेशन का नशा पिला दिया जाएगा, लेकिन जब उतरेगा तो आप पहले से भी ज्यादा खुद को कमजोर पाएंगे।
नरेंद्र मोदी ने कहा, किसी भी सरकार का पहला मजहब होता है राष्ट्र, जबकि नरेंद्र मोदी ने तो इंडिया कहा, और सरकार का ग्रंथ होता है संविधान। मोदी की तैयारी बहुत सही थी, लेकिन अगर गुजरात के अंदर लोकायुक्त के लिए युद्ध न चल रहा होता तो। सुप्रीम कोर्ट तक जाने की क्या जरूरत थी, संविधान को मानते, और राज्य में लोकायुक्त को नियुक्त करते।
बीजिंग की तारीफ पर नरेंद्र मोदी ने एक नेता को निशाने पर लिया। किसी शहर या देश की तारीफ करना बुरी बात नहीं, लेकिन नरेंद्र मोदी खुद को भूल गए, जब वे पुणे में विद्यार्थियों को शिक्षा पर भाषण दे रहे थे तो उन्होंने भी चीन की तारीफ की थी, वहां के आंकड़े पेश किए थे, जो वहां की सरकारों के पास भी नहीं। हो सकता है अधिक काम और जिम्मेदारियों के चलते खुद की गलतियां याद न रहीं हो, जैसे आज विपक्ष में बैठी एनडीए को अपने कार्यकाल के दौरान हुए आतंकवादी हमले, पाकिस्तान से दोस्ताना संबंध याद नहीं रहे। और आरोपों से बचने के लिए कहते हैं, देश की जनता ने तब हम को नकार दिया था, मतलब गंगा नहा लेने से किए पाप धुल गए, तो चालीस साल के गुनाह तो कांग्रेस के भी धुल चुके हैं, जो आपके आने सत्ता से उतर गई थी। अगर आपकी भाषा में सत्ता से उतरना पाप धूलना होता है तो।
यह एक युवा रैली थी। उम्मीद थी संभावनाओं का माया जाल बुनने वाले नरेंद्र मोदी युवा पीढ़ी के लिए कुछ खास बात लेकर आने वाले हैं, लेकिन अफसोस के रैली में नरेंद्र मोदी ने सरकार विरोधी अख़बार का संपादकीय पन्ना ही पढ़ डाला। सरकार की बुराईयां तो अख़बारों में हर रोज सुर्खियां बनती हैं, उनको गिनाकर देश की जनता को लुभावना, ठगने जैसा लगा। मुझे लगता है कि आंध्र प्रदेश में अख़बार निकलते होंगे, हर रोज नेताओं के सरकार विरोधी बयानों को जगह मिलती होगी।
नरेंद्र मोदी को इस रैली में समस्याएं और कांग्रेस को नीचा दिखाने की बजाय अपने भीतर के लीडर की उन योजनाओं से अवगत करवाना चाहिए था, जिसको लेकर युवा पीढ़ी सोच सके कि नरेंद्र मोदी को वोट किया जाए। मंच पर ऊंचे सुर में बोलने से कुछ सच्चाईयां नहीं बदलती। शराब का नशा सुबह तक रहता है। नशा मत पिलाइए, कोई देश बदलने का सुझाव बतलाइए। वो कौन सी बातें हैं, जो देश को नये आयाम तक लेकर जा सकती हैं। नरेंद्र मोदी राष्ट्रवाद की बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार की टशन हमेशा पड़ोसी राज्यों से चलती रहती है। वहां पर नरेंद्र मोदी राष्ट्रहित क्यूं नहीं देख पाते ? वहां पर एक क्षेत्रीय प्रतिनिधि का फर्ज ही अदा क्यूं करते हैं ?
सवाल बहुत हैं, लेकिन चलते चलते इतना कहूंगा कि नरेंद्र मोदी के पास 11 साल का अनुभव है, एक राज्य को चलाने का, वे संभावनाओं का खुला आसमान दिखाते हैं। उधर, राहुल गांधी के पास विरासत में मिली कांग्रेस की रियासत है, लेकिन वे सकारात्मकता की किताब को बीच में से पढ़ने की कोशिश करते हैं। दोनों राजनीति तो सकारात्मक सोच से कर रहे हैं, लेकिन कहीं कहीं उलझ जाते हैं।
आज की रैली एक राजनेता की रैली थी, नरेंद्र मोदी बतौर एक मार्गदर्शक, देश के प्रधानमंत्री पूरी तरह पिछड़ते नजर आए।
आप अपनी राय जरूर रखें, ताकि रैली समीक्षा को समझने में मुझे और आसानी हो।
nishpaksh shandar prastuti . मन को गहराई तक छू गयी .आभार शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .
जवाब देंहटाएंnishpaksh shandar abhivyakti .मन को गहराई तक छू गयी .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने आभार शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, आप के जवाब मुझे मिल रहे हैं।
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