बोफोर्स घोटाला, अमिताभ का बयान और मेरी प्रतिक्रिया
इसके बाद सरकारें बदली, स्थितियां परिस्थितियां बदली, मैं भी समय के साथ साथ बड़ा होता चला गया। लेकिन मुझे इस घोटाले की जानकारी उस समय मिली जब इस घोटाले के कथित दलाल ओत्तावियो क्वोत्रिकी की हिरासत के लिए सीबीआई जद्दोजहद कर रही थी, और मैं एक न्यूज वेबसाइट के लिए कीबोर्ड पर उंगलियां चला रहा था, तकरीबन तब मैं पच्चीस साल का हो चुका था, और यह घोटाला करीबन 22 साल का।
आप सोच रहे होंगे कि घोटाले और मेरी उम्र में क्या तालुक है, तालुक है पाठक साहिब, क्यूंकि जब यह घोटाला हुआ तो राजीव गांधी का नाम उछलकर सामने आया, चूंकि वह उस समय प्रधानमंत्री बने थे, और राजीव गांधी प्रधानमंत्री कब बने, जब इंदिरा गांधी का मौत हुई, और जब इंदिरा की मौत हुई, तब मैं पांच दिन का था, एक वो ही ऐसी घटना है, जिसने मेरे जन्मदिन की पुष्टि की।
स्वीडन के पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रॉम ने कल जब 25 साल बाद अपने मरे हुए जमीर को जगाते हुए कहा कि अमिताभ बच्चन का नाम घोटाले में शामिल करने के लिए उन पर दबाव डाला गया था। और मुझे सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई, जब अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा, चलो पच्चीस साल बाद तो मुझे राहत मिली, लेकिन उसकी भरपाई कौन करेगा, जो पच्चीस साल मैंने आरोप का दंश झेला, और मीडिया ने ख़बर बनाई।
अमिताभ बच्चन को शायद पता नहीं कि आरोप का दंश किसे कहते हैं। अगर वह सच में जानना चाहते हैं कि आरोप का दंश किसे कहते हैं तो उनको गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ देखना चाहिए, जो पिछले दस सालों से दंगों के आरोप का दंश झेलते आ रहे हैं। शायद ही उनकी कोई प्रेस कांफ्रेंस ऐसी गई होगी, जिसमें मीडिया ने उनसे दंगों से संबंधित प्रश्न नहीं पूछे। स्िथतियां तो कई बार ऐसी पैदा हुई कि उनको लाइव शो छोड़कर भी जाना पड़ा। मुझे तो एक भी ऐसा मौका याद नहीं आ रहा, जब मीडिया ने अमिताभ बच्चन से बोफोर्स घोटाले के बारे में भूलकर भी कोई प्रशन पूछा हो, या कभी मीडिया ने उनका नाम कहीं उछाला हो।
अमिताभ का नाम इस घोटाले से जुड़ा था, और उनको क्लीन चिट मिल गई, मुझे भी तब पता चला, जब अमिताभ ने इस पर खुशी जताई और मीडिया ने उसको हाईलाइट किया। मेरे ध्यान में शायद यह पहला मामला है, जब मीडिया ने आरोपी के साथ दोषी जैसा व्यवहार नहीं किया, और बेगुनाह होने पर उसको एक अच्छा डिस्पले दिया, मीडिया की अगर यह पहल है तो अच्छी बात है, अगर स्पेस की भरपाई के लिए स्पेस दिया गया है तो अफसोस की बात है।
अफसोस इसलिए कि हम जिस घोटाले की जांच के लिए पिछले ढ़ाई दशक में करोड़ों रुपए खर्च चुके हैं, उस मामले में हमको मिली तो मिली केवल क्लीन चिट, क्या सरकार को जनता का पैसा केवल क्लिन चिट हासिल करने के लिए मिला है। हैरानी तो इस बात से भी हो रही है कि स्टेन का बयान 25 साल बाद ही क्यूं आया? और तब आया जब कांग्रेस की छवि देश के अंदर बिगड़ती जा रही है, और दूसरी बात देश में राष्ट्रपति के पद को लेकर भी नामों का चयन किया जा रहा है, कहीं पिछली बार की तरह इस बार भी तो अमिताभ का नाम उभरकर सामने आने वाला तो नहीं। उक्त दोनों संयोगों को देखने के बाद मुझे लगता है, कहीं स्टेन का यह बयान भी तो किसी दबाव के चलते तो नहीं आया। शायद पुष्टि के लिए 25 साल और इंतजार करना होगा।
चलते चलते इतना ही कहूंगा, ए मेरी सरकार हर घोटाले में क्िलन चिट पहले ही दे देना, क्यूंकि मेरे देश का धन मेरी जनता के काम आ सके, नहीं तो हर बार एक ही कहावत दोहरानी पड़ेगी ''खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना''।
याद रहे कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बांटी थी, मगर भारतीय सरकार ने जांच के लिए 256 करोड़ खर्च किए, और बदले में मिला ठेंगा।
अदालतों से और क्या मिलता है तारीख पे तारीख तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख। लेकिन एक बात कहना पड़ेगी कि कुछ साल पहले तक भारत सरकार ईमानदारी से इसकी जाँच में जुटी थी और किसी निर्दोष को उसने दोषी नहीं होने दिया। चाहे 20 करोड़ के घोटाले के पीछे 64 करोड़ रुपए और अनमोल वर्ष खर्च हो गए।
जवाब देंहटाएंवही बोफोर्स तोप ने कारगिल में हमारे देश के लिए 'हीरो' की भूमिका निभाई। लेकिन फिर भी अदालतें और विपक्षी दल तो कथित तौर पर दलाली खाने के दोषी को ही ढूँढते रहे। इसलिए कहते हैं मेरा भारत महान।
हैप्पी जी, आपका लेख पढ़कर अच्छा लगा, आगे भी इस तरह के लेख लिखते रहिए।
जवाब देंहटाएंफोन द्वारा मिली प्रतिक्रिया सूरत, कुणाल