महिलाओं को चाहिए तराशे हुए वक्ष, मर्दों को चुस्‍त की चाहत

हैरानी हो रही है कि ''युवा सोच युवा खयालात'' यह क्‍या लिख रहा है, लेकिन जनाब यह मैं नहीं हिन्‍दी की बेहद लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टूडे अपने नए अंक की कवर स्‍टोरी 'उभार का सनक' के साथ उक्‍त पंक्‍ित को लिख रही है, जो अंक उसने मई महीने के लिए प्रकाशित किया है।

इसको लेकर बुद्धजीवियों व मीडिया खेमे में बहस छिड़ गई कि एक पत्रिका को क्‍या हो गया, वो ऐसा क्‍यूं कर रही है। मुझे लगता है कि इसका मूल कारण कंटेंट की कमी, और ऊपर से बढ़ता महंगाई का बोझ है। पत्रिका खरीदने से लोग कतराने लगे हैं, ऐसे में भला जॉब खोने का खतरा कोई कैसे मोल ले सकता है, जाहिर सी बात है कि अगर आमदनी नहीं होगी, तो जॉब सुरक्षित नहीं रहेगी, हो सकता है कि इस बार इंडिया टूडे ने अपनी गिरती बिक्री को बचाने के लिए इस तरह की भाषा व पोस्‍टर का प्रयोग किया हो।

मगर दूसरी ओर देखें तो शायद इंडिया टूडे कुछ गलत भी नहीं कह रहा, आज सुंदर बनना किसे पसंद नहीं, युवा रहना किसकी चाहत नहीं, खुद को सबसे खूबसूरत व युवा दिखाने की होड़ ने लाइफस्‍टाइल दवा बाजार को संभावनाओं से भर दिया, व्‍यक्‍ित आज बीमारी से छूटकारा पाने के लिए नहीं, बल्‍कि सुंदर व आकर्षित दिखने के लिए दवाएं खा रहा है। अगर यह बात सच नहीं तो आए दिन अखबारों में ग्रो ब्रेस्‍ट व मर्दाना ताकत बढ़ाओ जैसे विज्ञापनों का खर्च कहां से निकलता है, अगर वह बिकते नहीं। जवाब तो सब के पास है।

शायद ऐसे विषयों पर स्‍टोरी करना तब गलत नजर आता है, जब यह स्‍टोरी केवल बीस फीसद हिस्‍से पर लागू होती हो, इन चीजों के आदी या तो मायानगरी में बसने वाले सितारें हैं या फिर कॉलेजों में पढ़ने वाले कुछेक छात्र छात्राएं या फिर सुंदरता के दीवाने पुरुषों की कसौटी पर खरी उतरने ललक में जद्दोजहद कर रही महिलाएं। मगर मजबूरी का दूसरा नाम, तो आप सभी जानते हैं। शायद इंडिया टूडे की भी कोई मजबूरी रही होगी, इस स्‍टोरी को इस तरह कवर स्‍टोरी बनाने के पीछे।

वैसे इंडिया टूडे ने एक शब्‍द का इस्‍तेमाल किया है सनक, सनक अर्थ शायद क्रेज या चलन होता है। और जब भी किसी चीज का चलन बढ़ता है तो मीडिया उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने से पीछे तो कभी हटता नहीं, फिर इस चलन को लेकर इंडिया टूडे ने पहले मोर्चा मार लिया कह सकते हैं। हर आदमी को क्रेज ने मारा है, किसी को अगले निकलने के, किसी को रातोंरात सफल अभिनेत्री बनने के, किसी को अपने सह कर्मचारियों को पछाड़ने के, किसी को अपने प्रतियोगी से आगे निकलने के। अब हिन्‍दी समाचार चैनलों को ही देख लो, एक दूसरे से पहले स्‍टोरी ब्रेक करने के क्रेज ने मार डाला, स्‍टोरी ब्रेक करने के चक्‍कर में भाषा का सलीका बदल जाता है, एक न्‍यूज रिपोर्ट या एंकर क्रोधित हो उठता है। पंजाब में प्रकाशित होने वाले पंजाब केसरी के फिल्‍मी दुनिया पेज की कॉपियां सबसे ज्‍यादा बिकती हैं, क्‍यूंकि वह वो छापता है, जो कोई दूसरा नहीं छापता, ऐसे में उसका मुकाबला करने के लिए दूसरे ग्रुपों को भी उसी दौड़ में शामिल होना पड़ेगा, क्‍यूंकि पैसा नचाता है, और अश्‍लीलता बिकती है।

अश्‍लीलता बिकती है व पैसा नचाता है से याद आया, पूजा भट्ट व महेश भट्ट को ही देख लो, आखिर कैसा सनक है कि बाप बेटी जिस्‍म 2 को लेकर बड़े उत्‍सुक हैं, सन्‍नी को लेने का फैसला महेश भट्ट ने किया, और फिल्‍म बनाने का पूजा भट्ट ने, वहां बाप बेटी के बीच सब कुछ नॉर्मल है, उनको कुछ भी अजीब नहीं लगता, ऐसा लगता है कि पैसे की चमक हर चीज को धुंधला कर देती है, तो शर्म हया क्‍या भला है।

चलते चलते  इतना ही कहूंगा कि पैसा नचाता है, दुनिया नाचती है। शायद इंडिया टूडे हिन्‍दी पत्रिका वालों की भी कुछ ऐसी ही कहानी होगी, वरना इतनी इज़्ज़तदारपत्रिका ऐसी स्‍टोरी को इस तरह एक्‍सपॉज नहीं करती, वैसे भी मीडिया में कुछ वर्जित नहीं रहा। जो मीडिया आज इंडिया टूडे पर उंगली उठा रहा है, वही मीडिया विदेशी महिला अदाकारों की उस बात को बड़ी प्रमुखता से छापता है, जिसमें वह कहती हैं उसने कब कौमार्य भंग किया, कितनी दवाएं व सर्जरियां करवाकर अपनी ब्रेस्‍ट का साइज बढ़ाया। इतना ही नहीं, कुछेक न्‍यूज वेबसाइटों पर तो एक कोने में अभिनेत्रियों की हॉट से हॉट तस्‍वीरें रखी मिलेगीं, और लिखा मिलेगा एडिटर की चॉव्‍इस, अगर एडिटर की चॉव्‍इस ऐसी होगी, तो अखबार कैसा होगा, मैगजीन कैसी होगी जरा कल्‍पना कीजिए, मैं फिर मिलूंगा, किसी दिन किसी नई चर्चा के साथ।

टिप्पणियाँ

  1. सुख और दुख दोनों के अपने अपने गुणा भाग हैं।
    जिस पर जो राज़ी है, उसी पर वह जी रहा है।
    जिन्होंने बग़ावत कर दी है वे भी कहां पहुंची ?
    कहीं न कहीं आकर उन्हें भी समझौता करना पड़ता है।

    अपनी ज़िंदगी को आसान करने के लिए हरेक समझौता करके ही जी रहा है।
    ख्वाहिशों की तकमील और इंसाफ़ महज़ किताबी अल्फ़ाज़ हैं।
    हक़ीक़त एक समझौता है हालात से।

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  2. भाई, ये तराशने का शब्द कहाँ से लाए? ये स्त्री की बात हो रही है या पत्थर की मूरत की?

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  3. if you are against it then please change the heading and also remove the pic

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    1. अगर शीर्षक बदलूंगा तो पूरा लेख बदलना पड़ेगा, मेरा लेख शुरू ही वहां से होता है, मैं इसके विरुद्ध हूं, इसकी लेखन शैली की वजह से, यह स्‍टोरी करने में कोई बुरी नहीं, रही बात पोस्‍टर की, वो तो कुर्बान से लेकर जिस्‍म टू तक, नग्‍नता के सिवाय कुछ भी नहीं मिल रहा है।

      मैं यह आलेख उस स्‍थिति में लिखा, जब मीडिया वाले ही इसकी आलोचना कर रहे हैं, जो खुद अपनी वेबसाइटों का एक कोर्नर केवल अश्‍लीलता के लिए रिर्जेव रखते हैं, ताकि उनकी वेबसाइट पर भीड़ बनी रहे।

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    2. agar aap ko kisi cheez kaa virodh karna haen to uskae virudh jaa kar hotaa haen unhi chitro ko apnae blog par lagaa kar aap virodh nahin kar rahey anjane badhavaa dae rahae haen

      chitr hataa dae

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  4. Bilkul sahee virodh kiya aapane Kulwant sharma ji. Kuchh cheejon ka parde men rahana hee lakh guna behtar hota hai. Vahan aisa kuchh aap dikha naheen rahe hain jo adbhut hai ya jisase dunia aparichit hai. Bahut hee ghatiya kratya hai magzine ka.. Is cheej ko yaheen rukana chahiye mudde aur bhee hain patrika ko bechane ke aur apane job bachane ke un par dhyan dena Chahiye..

    Rgds Vishal

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  5. thanks for removing the pic
    its good u have raised your voice against a issue please keep doing it but dont make blogs like media sensation

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  6. AAPNE SHACH KHA HE AAJ CHALAN HI ISI CHIJ KA HE

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  7. इंडिया टु डे में लिखा हुआ होने पर आपको हैरानी हुई है, और इस ब्लॉग में आपने भी बिलकुल वैसा ही लिख दिया ये भी तो हैरानी कि ही बात है,

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    1. काश मेरी पहली लाइन को पढ़ते हुए आगे बढ़ते तो अच्छा लगता है। मैंने तो पीछे के कारण टोटले हैं।

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