अगर जंग जीतनी है तो.....बन जाओ सुनहरे मोतियों की माला।
छोटी छोटी चीजें जीवन की दिशा बदल सकती हैं, लेकिन उन छोटी छोटी चीजों पर अमल होना चाहिए, इस रविवार मैं अपने ससुराल में था, यहां घर के मुख्य द्वार पर कुछ इंग्लिश्ा की पंक्ितयां लिखी हुई हैं, जिनका मतलब शायद मेरे हिसाब से यह निकलता है, अगर हम एक साथ आ जाते हैं, तो यह शुरूआत है, अगर हम एक साथ बने रहते हैं तो यह उन्नति है, अगर हम एक साथ मिलकर कार्य करते हैं तो सफलता निश्िचत है।
इस पंक्ित को पढ़ने के बाद लगा, क्या यह पंक्ित हमारे आज के उन नेताओं ने नहीं पढ़ी, जो काले धन को लेकर, लोकपाल बिल को दिल्ली में अनशन कर रहे हैं, अगर पढ़ी होती तो शायद बाबा रामदेव, अन्ना हजारे अलग अलग टीम बनाकर एक ही मिशन के लिए न लड़ते, बात चाहे लोकपाल बिल की हो या कालेधन को बाहर से लाने की, बात तो सरकार से जुड़ी हुई है। बचपन में एक कहानी कई दफा लिखी, क्योंकि उसको लिखने पर मुझे अंक मिलते थे, वो कहानी इम्ितहानों में से पास करवाने में अहम रोल अदा करती थी। एकता से जुड़ी वह कहानी, जिसमें एक किसान के चार पुत्र होते हैं, और किसान उनको पहले एक लकड़ी तोड़ने के लिए देता है और वह तोड़ देते हैं, फिर वह उनको लकड़ियों का बंडल तोड़ने के लिए कहता है, वह नहीं तोड़ पाते, तो किसान कहता है, एकता में शक्ित है, अगर आप एक हो तो आपको कोई नहीं तोड़ सकता।
मुझे लगता है यह कहानी मैंने ही नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान के ज्यादातर लोगों ने पढ़ी होगी, पेपरों में अंक लेने के लिए लिखी भी होगी, हो सकता है उनकी कहानी में किसान न हो, लकड़ी के बंडल न हो, मगर बात तो एकता की ही होगी। हम जब भी लड़े अलग अलग होकर आखिर क्यों, आजादी के समय की बात हो या आज हो रहे विरोध अभियानों की, हम सब एक मंच पर क्यूं नहीं आ सकते, क्या हम को पदों की होड़ है, क्या हम दुनिया में अलग पहचान बनाने के लिए यह सब करते हैं, जो सच्चे लीडर होते हैं, जो सच्चे लड़ाकू होते हैं, वह स्वयं के लिए नहीं बल्कि कौम के लिए, समाज के लिए आगे चलते हैं या कहूं लड़ते हैं।
अगर जंग जीतनी है तो मोतियों की तरह एक ही धागे में घुसते चले जाओ, और बन जाओ सुनहरे मोतियों की माला।
इस पंक्ित को पढ़ने के बाद लगा, क्या यह पंक्ित हमारे आज के उन नेताओं ने नहीं पढ़ी, जो काले धन को लेकर, लोकपाल बिल को दिल्ली में अनशन कर रहे हैं, अगर पढ़ी होती तो शायद बाबा रामदेव, अन्ना हजारे अलग अलग टीम बनाकर एक ही मिशन के लिए न लड़ते, बात चाहे लोकपाल बिल की हो या कालेधन को बाहर से लाने की, बात तो सरकार से जुड़ी हुई है। बचपन में एक कहानी कई दफा लिखी, क्योंकि उसको लिखने पर मुझे अंक मिलते थे, वो कहानी इम्ितहानों में से पास करवाने में अहम रोल अदा करती थी। एकता से जुड़ी वह कहानी, जिसमें एक किसान के चार पुत्र होते हैं, और किसान उनको पहले एक लकड़ी तोड़ने के लिए देता है और वह तोड़ देते हैं, फिर वह उनको लकड़ियों का बंडल तोड़ने के लिए कहता है, वह नहीं तोड़ पाते, तो किसान कहता है, एकता में शक्ित है, अगर आप एक हो तो आपको कोई नहीं तोड़ सकता।
मुझे लगता है यह कहानी मैंने ही नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान के ज्यादातर लोगों ने पढ़ी होगी, पेपरों में अंक लेने के लिए लिखी भी होगी, हो सकता है उनकी कहानी में किसान न हो, लकड़ी के बंडल न हो, मगर बात तो एकता की ही होगी। हम जब भी लड़े अलग अलग होकर आखिर क्यों, आजादी के समय की बात हो या आज हो रहे विरोध अभियानों की, हम सब एक मंच पर क्यूं नहीं आ सकते, क्या हम को पदों की होड़ है, क्या हम दुनिया में अलग पहचान बनाने के लिए यह सब करते हैं, जो सच्चे लीडर होते हैं, जो सच्चे लड़ाकू होते हैं, वह स्वयं के लिए नहीं बल्कि कौम के लिए, समाज के लिए आगे चलते हैं या कहूं लड़ते हैं।
अगर जंग जीतनी है तो मोतियों की तरह एक ही धागे में घुसते चले जाओ, और बन जाओ सुनहरे मोतियों की माला।
अगर जंग जीतनी है तो मोतियों की तरह एक ही धागे में घुसते चले जाओ, और बन जाओ सुनहरे मोतियों की माला
जवाब देंहटाएंक्या बात है !!