प्रेम कहानी से सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक


एक लड़का व लड़की कहीं पैदल जा रहे थे। तभी लड़के की टांग पत्‍थर से टकराई और रक्‍त बहने लगा, लड़के ने मदद की आस लगाते हुए लड़की की तरफ देखा कि शायद वह अपना दुपट्टा फाड़ेगी और उसकी टांग पर बांधेगी। लड़की ने उसकी आंखों में देखते हुए तुरंत बोला, सोचना भी मत, डिजाइनर सूट है।

यह कहानी जो अपने आप में बहुत कुछ कहती है, मेरे एक दोस्‍त ने आज सुबह फेसबुक पर सांझी की। इस कहानी को पढ़ने व केमेंट्स करने के बाद, कुछ और सर्च करने निकल पड़ा, तभी मेरी निगाह एक बड़ी खबर पर पड़ी, जिसका शीर्षक था, आज से शिक्षा हर बच्चे का मूल अधिकार।

सच में कितना प्‍यारा शीर्षक है, वैसा ही जैसे उस लड़के का अपनी प्रेमिका से मदद की उम्‍मीद लगाना, जो उसके साथ हुआ वह तो हम कहानी में पढ़ चुके हैं, जो अब सुप्रीम अदालत के फैसले का साथ हमारे शैक्षणिक संस्‍थान चलाने वाले करेंगे वह भी कुछ ऐसा ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहतरीन फैसला सुनाया है, मगर इस फैसले का कितना पालन पोषण किया जाएगा, इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। 

लेकिन एक उम्‍मीद जरूर है, आज प्रिंट मीडिया के कुछ जागरूक लोग इस पर परिचर्चा जरूर करेंगे एवं अगले दिनों में आप इस फैसले की उड़ती धज्‍जियों पर एक बेहतरीन रिपोर्ट भी पढ़ेंगे। ज्ञात रहे कि पिछले साल 3 अगस्त को प्राइवेट स्कूलों के संचालकों ने अनुच्छेद 19 (1) जी के अंतर्गत दिए गए अधिकारों का हवाले देते हुए शिक्षा के अधिकार कानून को उल्लंघन बताया था। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने उक्‍त याचिका को रद्द करते हुए फैसला सुना दिया, मगर उन लोगों को निगाह क्‍यों रखेगा, जिन्‍होंने पहले ही इस अधिकार की पुरजोर आलोचना की है।

मुझे याद है कि पिछले साल मैं अखबार में होने के चलते कुछ प्राइवेट स्‍कूलों में गया था, हर स्‍कूल से आर्थिक तंगी का रोना ही सुनने को मिला। हर स्‍कूल संचालक बोल रहा था, इतनी महंगाई में स्‍कूल चलाना कोई आसान बात नहीं, पसीने छूट जाते हैं, और उपर से सरकार के आए दिन नए नए कानून उनकी जान लेने पर तूले हुए हैं।

सवाल तो यह उठता है कि क्‍या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सही रूप से लागू करेंगे निजी स्‍कूल संचालक, जो कम पढ़ी लिखी लड़कियों को कम वेतन पर रखकर शिक्षा प्रणाली की पहले ही धज्‍जियां उड़ा रहे हैं।

अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के डर से कुछ स्‍कूल संचालकों ने बच्‍चों को दाखिला दे भी दिया, क्‍या वह उनके प्रति उतने जिम्‍मेदार होंगे, जितना वह फीस अदाकर पढ़ने वाले बच्‍चों के प्रति होते हैं। सवाल तो और भी बहुत हैं, लेकिन चलते चलते इतना ही कहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ उक्‍त प्रेमी के साथ हुए व्‍यवहार जैसा कुछ न हो, कुछ समाज सेवी संस्‍थाओं व संबंधित सरकारी संस्‍थानों को भी अपनी अपनी जिम्‍मेदारी समझनी होगी। क्‍यूंकि यह एक कदम है, यह एक पहल है देश को नई दिशा, नई सुबह से रूबरू करवाने की।

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