निर्मल बाबा, मीडिया और पब्‍लिक, आखिर दोषी कौन?



फेसबुक पर कुमार आलोक लिखते हैं, मेदनीनगर झारखंड में ईंट भट्ठा का रोजगार किया ...नही चला ..गढ़वा में कपडे़ की दूकान खोली ..वो भी फ्लाप ..बहरागोडा इलाके में माइंस का ठेका लिया औंधे मुंह गिरे ...पब्लिक को मूर्ख बनाने का आइडिया ढूंढा .. तो सुपरहिट ..ये है निर्मल बाबा का संघर्ष गाथा।

मगर सवाल यह उठता है कि पूरे मामले में आखिर दोषी कौन है वो निर्मल बाबा, जो लोगों को ठगने का प्‍लान बनाकर बाजार में उतरा, या मीडिया, जिसने पैसे फेंको तमाशा देखो की तर्ज पर उसको अपने चैनलों में जगह दी या फिर वो पब्‍िलक जो टीवी पर प्रसारित प्रोग्राम को देखने के बाद बाबा के झांसे में आई।

निर्मल बाबा पर उस समय उंगलियां उठ रही हैं, जब वह चैनलों व अपनी बातों की बदौलत करोड़पति बनता जा रहा है। अब निर्मल बाबा से उस मीडिया को प्रोब्‍लम होने लगी है, जो विज्ञापन के रूप में बाबा से लाखों रुपए बटोर रहा है। आज बाबा पर उंगलियां उठाने वाला मीडिया स्‍वयं के मालिकों से क्‍यूं नहीं पूछता, जिन्‍होंने बाबा को घर घर तक पहुंचाया, जिन्‍होंने निर्मल बाबा का अवतार पैदा किया, जो काम निर्मल बाबा को करने में सालों लग जाते या कहूं शायद उसका यह तरीका भी कहीं न कहीं दम तोड़ देता, मगर अफसोस की बात है कि पैसे को जीवन मानने वाले मीडिया ने वो कार्य कुछ महीनों में कर दिखा दिया। निर्मल बाबा के दर्शनों के लिए आज लोग ऐसे इंतजार कर रहे हैं, जैसे कि मांग बढ़ने के बाद किसी वस्‍तु की ग्राहक करते हैं।

यहां पब्‍लिक को दोष नहीं दिया जा सकता, क्‍यूंकि आज हर आदमी पूर्ण रूप से त्रसद है, और वह हर तरफ एक आशा की किरण ढूंढता है, भले ही वह छलावा ही क्‍यूं न हो। मगर मीडिया तो पढ़े लिखे लोगों का समूह माना जाता है, आखिर उस ने ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्य को प्रोत्‍साहन क्‍यूं दिया। बाजारवाद और बढ़ती प्रतिस्‍पर्धा के कारण, मीडिया पागल के हाथ में तलवार जैसा प्रतीत होता है, जो विनाश के सिवाय कुछ नहीं कर सकता।

कुछ दिन पहले एक मित्र ने फेसबुक पर एक फोटो डाली थी, और लिखा था कि यह लड़की जूनिअर कलाकार है, और इसने बाबा के प्रोग्रामों में पैसे लेकर झूठ बोला था, और उस लड़की ने खुलासा किया कि बाबा ने शुरू शुरू में अपने लोगों को प्रोग्राम में खड़ा कर झूठ बुलवाया। समझ से परे है कि इस लड़की का जमीर अब जागा, जब निर्मल बाबा एक अवतार बन चुके हैं, जब लोग उन पर अंधविश्‍वास करने लेंगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि जिन पैसों की खातिर लड़की ने झूठ बोलने का फैसला किया था, आज वह पैसे उसको कम लग रहे हैं, जब निर्मल बाबा एक करोड़पति बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है।

यह फैसला भी मीडिया को करना होगा कि इस पूरे घटनाक्रम में दोषी कौन है, खुद मीडिया, पब्‍लिक व निर्मल बाबा।

अंत में रोटी फिल्‍म के बहुचर्चित गाने के बोल लिखते हुए अलविदा लेना चाहूंगा कि ये पब्‍लिक है सब जानती है......

टिप्पणियाँ

  1. कुलवंत भाइ पहले तो मैं कहूंगा कि मैं कुमार आलोक हूं..अशोक नही । मीडिया क्या है पूंजीपतियों के द्वारा पाला गया एक शौक ..जो सत्ता प्रतिष्ठान की गुलामी और आम आवाम को अफीम चबाने पर मजबूर करवाता है । अंधेर नगरी के चौपट राज में क्या होता था । आम आदमी के पास समस्यायें इतनी है कि वो हमेशा एक तारणहार और खेवनहार की तलाश में रहता है । इन बाबाओं के सामराज्य को फलने फूलने में सत्ता और पूंजीपतियों का गठजोड काम करते रहता है ...मीडिया तो इन्हीं लोगों का पालतू सौगात है । मूल मुद्दे से ध्यान हटाने के लिये इस तरह के अंधविश्वास और बाबाओं का तेज हमारे सामने आता रहेगा ।

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  2. इस बाजारवाद से और क्या उम्मीद की जा सकती है...रही बात जनता कि ...तो ये तो हर बार चुनाव के समय पता ही चल जाता है कि अधिकतर लोग किस मानसिकता के साथ जी रहे हैं...:)))

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  3. निर्मल बाबा को कभी एक बार भी नहीं देखा लेकिन बात यह है कि यह देश ही बाबाओं का है।
    दुनिया उनकी तरक्की से जलती है।
    ऐसा लगता है।
    निर्मल बाबा बनना आसान नहीं है।

    आपका कलम शानदार है।
    कम ब्लॉगर हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग को अच्छे विचार दे पा रहे हैं।
    वर्ना तो ...
    हिंदी ब्लॉगिंग की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार दिल्ली के ब्लॉगर्स

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  4. जनोक्‍ित पर प्रकाशित लेख भी आप पढ़ सकते हैं।

    बुद्धू बक्से की उपज ‘निर्मल बाबा’,संपादक और जस्टिस काटजू

    http://www.janokti.com/featured/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%82-%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE/

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  5. पत्रकारों के विषय मे एक टिप्पणी काफी बार सुनी है। ”कहीं पर दाल नहीं गली तब पत्रकारत्व मे आते है”, जो कि सरासर गलत है। ये बचाव एक पत्रकार होने के कारण नहीं है मगर बहोत ही कम आय के साथ चोबीसो घंटे की नौकरी है पत्रकारत्व। दी गई टिप्पणी बाबा बिज़नेस को लागू होती है। कहीं पर कुछ भी काम नहीं कर पाये तो बैठ जाओ पद्मासन लगा कर और देने लगो आशिर्वाद।
    और एक जगह है जहां पर अनपढ होने से कोई फ़र्क नही पडता। आप की आय शुरु होने की गेरेन्टी है। अगर आप गुण्डे है और दो-चार बार जेल जा चूके है तो तो आप की नीकल पडी। आप को सीधा सीनियर पोस्ट मील सकती है। कुलवंत जी का ब्लोग पढनेवाले लोग आधी बात मे ही पुरी कहानी समज सकते है इतना अपेक्षित है। बाबा और बाबू (नेताजी), ये दो बिज़नेस सो फ़ीसदी मुनाफ़े के बारे मे सोचने का भरपूर प्रोत्साहन देते है, जो शायद संपूर्ण सत्य न हो, पर पूर्णता के बहोत करीब है।
    कुलवंत जी की कलम का मै प्रशंषक हुं। लीखते रहे।

    कुलदीप लहेरु
    (Kuldeep Laheru)

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