'सचिन' की जगह 'आमिर' होता तो अच्छा लगता
मैं सचिन की जगह आमिर का नाम किसी फिल्म के लिए नहीं बल्कि राज्य सभा सांसद के लिए सुझा रहा हूं। दोनों ही भारत की महान हस्तियों में शुमार हैं। दोनों ही अपने क्षेत्र में दिग्गज हैं। दोनों का कद काठ भी एक सरीखा है। मगर सोच में अंतर है, जहां आमिर खान सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखता है, वहीं सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के मामलों में भी ज्यादा स्पष्ट राय नहीं दे पाते। सचिन को क्रिकेट के मैदान पर शांत स्वभाव से खेलना पसंद है, मगर आमिर खान को चुनौतियों से आमना सामना करना पसंद है, भले ही उसकी फिल्म को किसी स्टेट में बैन ही क्यूं न झेलना पड़े।
न मैं आमिर का प्रसंशक नहीं हूं, और न सचिन का आलोचक। मगर कल जब अचानक राज्य सभा सांसद के लिए सचिन का नाम सामने आया तो हैरानी हुई, यह हैरानी मुझे ही नहीं, बल्कि बहुत से लोगों को हुई, केवल सचिन के दीवानों को छोड़कर।
हैरानी तो इस बात से है कि उस सचिन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कैसे कर लिया, जो भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी लेने से इसलिए इंकार करता रहा कि उसके खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सचिन का नाम सामने आते ही हेमा मालिनी का बयान आया, जो शायद चुटकी से कम नहीं था, और उसको साधारण समझा भी नहीं जाना चाहिए, जिसमें हेमा मालिनी कहती हैं कि राज्यसभा रिटायर लोगों के लिए है। अगर हेमा मालिनी, जो राज्य सभा सांसद रह चुकी हैं, के बयान को गौर से देखते हैं तो पहला सवाल खड़ा होता है कि क्या सचिन रिटायर होने वाले हैं?
नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि कुछ दिन पहले तो ख़बर आई थी कि सचिन ने कहा है, अभी उनमें दम खम बाकी है, और वह लम्बे समय तक क्रिकेट खेलेंगे। अगर सचिन अभी और क्रिकेट खेलना चाहते हैं। यकीनन वह रिटायर नहीं होने वाले, तो फिर राज्य सभा सांसद बनने का विचार उनके मन में कैसे आया?
मुझे लगता है कि क्रिकेट जगत से जुड़े कुछ राजनीतिक लोगों ने सचिन को फ्यूचर स्िक्यूर करने का आइडिया दे दिया होगा। यह आईडिया भी उन्होंने सचिन के अविवा वाले विज्ञापन से ही मारा होगा, क्यूंकि हक मारना तो नेताओं की आदत जो है। यह याद ही होगा न, इस विज्ञापन में सचिन सबको लाइफ स्क्ियूर करने की सलाह देते हैं।
सचिन की जगह आमिर को मैं इसलिए कहता हूं, क्यूंकि वह सामाजिक मुद्दों को लेकर बेहद संवेदनशील है, उसके अंदर एक आग है, जो समाज को बदलना चाहती है। अगर सचिन राजनीति में कदम रखते हैं तो मान लीजिएगा कि भारतीय राजनीति को एक और मनमोहन सिंह मिल गया। चुटकला मत समझिएगा, क्यूंकि मुझे चुटकले बनाने नहीं आते।
चलते चलते इतना ही कहूंगा, देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी, जो देश की प्रथम नागरिक हैं, ऐसे लोगों का चुनाव करें, जो राजनीति में आने की दिली इच्छा रखते हों,और जिन्दगी में वह समाज सुधार के लिए अड़ भी सकते हों, वरना राज्य सभा में अगर कुछ कुर्सियां खाली भी पड़ी रहेंगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी जनता को, क्यूंकि न बोलने वाले लोगों का होना भी न होने के बराबर है, जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, पता नहीं कब बोलते हैं, बोलते भी हैं तो इंग्लिश में जो ज्यादातर भारतीयों को तो समझ भी नहीं आता, जबकि मैडम सोनिया हिन्दी में भाषण देती हैं, जो मूल इटली की हैं, इसको कहते है डिप्लोमेसी।
न मैं आमिर का प्रसंशक नहीं हूं, और न सचिन का आलोचक। मगर कल जब अचानक राज्य सभा सांसद के लिए सचिन का नाम सामने आया तो हैरानी हुई, यह हैरानी मुझे ही नहीं, बल्कि बहुत से लोगों को हुई, केवल सचिन के दीवानों को छोड़कर।
हैरानी तो इस बात से है कि उस सचिन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कैसे कर लिया, जो भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी लेने से इसलिए इंकार करता रहा कि उसके खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सचिन का नाम सामने आते ही हेमा मालिनी का बयान आया, जो शायद चुटकी से कम नहीं था, और उसको साधारण समझा भी नहीं जाना चाहिए, जिसमें हेमा मालिनी कहती हैं कि राज्यसभा रिटायर लोगों के लिए है। अगर हेमा मालिनी, जो राज्य सभा सांसद रह चुकी हैं, के बयान को गौर से देखते हैं तो पहला सवाल खड़ा होता है कि क्या सचिन रिटायर होने वाले हैं?
नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि कुछ दिन पहले तो ख़बर आई थी कि सचिन ने कहा है, अभी उनमें दम खम बाकी है, और वह लम्बे समय तक क्रिकेट खेलेंगे। अगर सचिन अभी और क्रिकेट खेलना चाहते हैं। यकीनन वह रिटायर नहीं होने वाले, तो फिर राज्य सभा सांसद बनने का विचार उनके मन में कैसे आया?
मुझे लगता है कि क्रिकेट जगत से जुड़े कुछ राजनीतिक लोगों ने सचिन को फ्यूचर स्िक्यूर करने का आइडिया दे दिया होगा। यह आईडिया भी उन्होंने सचिन के अविवा वाले विज्ञापन से ही मारा होगा, क्यूंकि हक मारना तो नेताओं की आदत जो है। यह याद ही होगा न, इस विज्ञापन में सचिन सबको लाइफ स्क्ियूर करने की सलाह देते हैं।
सचिन की जगह आमिर को मैं इसलिए कहता हूं, क्यूंकि वह सामाजिक मुद्दों को लेकर बेहद संवेदनशील है, उसके अंदर एक आग है, जो समाज को बदलना चाहती है। अगर सचिन राजनीति में कदम रखते हैं तो मान लीजिएगा कि भारतीय राजनीति को एक और मनमोहन सिंह मिल गया। चुटकला मत समझिएगा, क्यूंकि मुझे चुटकले बनाने नहीं आते।
चलते चलते इतना ही कहूंगा, देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी, जो देश की प्रथम नागरिक हैं, ऐसे लोगों का चुनाव करें, जो राजनीति में आने की दिली इच्छा रखते हों,और जिन्दगी में वह समाज सुधार के लिए अड़ भी सकते हों, वरना राज्य सभा में अगर कुछ कुर्सियां खाली भी पड़ी रहेंगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी जनता को, क्यूंकि न बोलने वाले लोगों का होना भी न होने के बराबर है, जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, पता नहीं कब बोलते हैं, बोलते भी हैं तो इंग्लिश में जो ज्यादातर भारतीयों को तो समझ भी नहीं आता, जबकि मैडम सोनिया हिन्दी में भाषण देती हैं, जो मूल इटली की हैं, इसको कहते है डिप्लोमेसी।
HAPPY,YOU ARE RIGHT
जवाब देंहटाएंविशाल मिश्रा, इंदौर मध्यप्रदेश
जवाब देंहटाएंकुलवंत जी आखिरी उदाहरण आपका बहुत अच्छा लगा सोनिया जी का हिन्दी में बोलना। आज भारत की पैदाइश होकर भी अधिकतर बॉलीवुड हस्तियाँ, राजनेता अँगरेजी झाड़ते हैं इस मामले में सोनिया को अव्वल कहना ही होगा जोकि हिन्दी सीखकर इस भाषा का उपयोग अधिकांश करती हैं।
रही बात सचिन और रेखा के चयन की। जोभी लाइन में अव्वल होगा उसे ही सबसे पहले मौका मिलेगा। पहले लता मंगेशकर, हेमा को राज्यसभा में आने का मौका मिला अब यदि इसमें सब अपनी-अपनी पसंद बताएँगे तो सचिन के बाद सौरव, आपके आमिर, किसी का सलमान या इसी तरह अन्य क्षेत्र की दिग्गज हस्तियों से ही सदन भर जाएगा। इसलिए जिसे मौका मिला है उसे ही जाने देना चाहिए। शेष इंतजार करें।
वरना पद्मश्री, पद्मभूषण, राज्यसभा सांसद मनोनीत करने पर रोक ही लगानी पड़ेगी।
विशाल मिश्रा जी, मैं सचिन का आलोचक नहीं हुं, लेकिन जो लोग आम दिनों में सामाजिक मुद्दों पर अपनी जुबां नहीं खोलते, वो राज्यसभा में जाकर क्या करेंगे। चाहे लता जी हो, हेमा जी, क्या मतलब बनता है, अगर हमारी राष्ट्रपति 12 लोगों को राज्य सभा में बिठा चाहती है तो वह ऐसे लोगों का चुनाव क्यूं नहीं करती, जो कोई हस्ती न होकर, समाज के लिए लड़ रहे हों, वहां सीटें भरने से क्या मिल जाएगा, हम को, नामित होने से पहले सचिन का सोनिया को मिलना, क्या है, अगर वो आज सोनिया से मिलता है तो क्या कल कांग्रेस के खिलाफ उठ रही आवाज में सचिन अपनी आवाज देगा, ऐसे में सचिन क्या जाना कहां तक उचित है, और दूसरी बात, वो सारा साल क्रिकेट खेलता है, जो उसका प्रथम प्रेम है, उसको वो छोड़ नहीं सकते, तो क्या मतलब, सीट भरने का।
हटाएंPoori Tarah Sahmat.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने जो बोलें वो ही राज्यसभा में जाये तो ज्यादा अच्छा होगा क्यूंकि बनियों के बाँधने से बाजार नहीं लगाती | वैसे तो इसे कांग्रेस पार्टी कि एक अच्छी चाल कही जा सकती थी लेकिन शुक्र ये रहा कि वो चल नहीं पाई| कांग्रेस केवल और केवल सचिन कि साख को इस्तेमाल करना चाहती थी|
जवाब देंहटाएंपूरी तरह से सहमत हूँ मै आपकी इस बात से .....
http://deepakentertain.blogspot.in/ यहाँ से भी गुजरें......................
is lihaj se to Kalam ko president banana bhi galat tha
जवाब देंहटाएंसंसद में पारित कानून पर भी उठा सकते हैं सवाल
हटाएंमिथक: कैबिनेट और संसद से पारित हर कानून को मंजूरी देने के लिए बाध्य हैं। यदि राष्ट्रपति उस पर सहमत नहीं हैं तो भी वह उसे खारिज नहीं कर सकते।
हालांकि, 1987 में ज्ञानी जैल सिंह राजीव गांधी सरकार के पोस्टल कानून से सहमत नहीं थे। उन्होंने इसे सरकार को नहीं भेजा। राष्ट्रपति के लिए किसी विधेयक को मंजूरी देने की समय सीमा नहीं है। उन्होंने इस विधेयक को अपने पास रोके रखा। बिल स्वत: ही रद्द हो गया। 2006 में भी ऐसा मामला सामने आया। एपीजे अब्दुल कलाम लाभ का पद रखने वाले की संसद सदस्यता बर्खास्त करने के विधेयक पर पूरी तरह सहमत नहीं थे। उन्होंने इसे लौटा दिया। Dainik Bhaskar ke sabhar se...
मैं कुलवन्त सिंह जी से एकदम सहमत हूं
जवाब देंहटाएंमैं कुलवन्त सिंह जी से एकदम सहमत हूं
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