हैप्पी अभिनंदन में ललित शर्मा
हैप्पी अभिनंदन में आज आपको जिस ब्लॉगर हस्ती से रूबरू करवाने जा रहा हूँ, वैसे तो आप उन्हें अच्छी तरह वाकिफ होंगे, लेकिन किसी शख्स के बारे में जितना जाना जाए, उतना कम ही पड़ता है। वो हर रोज किसी न किसी ब्लॉगर का चर्चा मंच ,चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!! जैसे अन्य ब्लॉगों के जरिए प्रचार प्रसार करते हैं। कई क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान भी रखते हैं, ताऊ और फौजी उनको बेहद प्यारे हैं, सच में उनकी मुछें जहाँ ताऊ की याद दिलाती हैं, वहीं उनके ब्लॉगों पर लगे स्वयं के फौजी वाले कार्टून उनके देश भक्ति के जज्बे को उजागर करते हैं, वैसे हरियाणा के घर घर में एक फौजी पैदा होता है, ऐसी बात भी प्रचलन में है। अगर देखा जाए तो अभनपुर छत्तीसगढ़ की शान ब्लॉगर ललित शर्मा जी भी फौजी से कम नहीं, वो बात अलहदा है कि उनकी हाथ में बंदूक की जगह कलम है, वैसे एक महान एवं महरूम पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा है कि जब तोप न चले तो अखबार निकालो, मतलब कलम उठाओ, क्रांति लाओ। आओ चर्चा पान की दुकान पर करने वाले एक कलम के फौजी से जानते हैं उनके दिल की बातें।
कुलवंत हैप्पी : पंजाबी बापू के खुंडे 'लठ' की तरह हरियाणा का ताऊ बड़ा फेमस है, ताउ के शै है बतलाईए?
ललित शर्मा: वाह! भाई हैप्पी वाह! - सवाल भी ढूंढ़ के लाया गजब का, ताऊ शब्द हरियाणा, राजस्थान, यु.पी. के कुछ हिस्सों, दिल्ली, आदि में प्रचलित है. ताऊ शब्द सुनते ही मन में एक मूछ वाले बुजुर्ग माणस की तश्वीर उभरती है, जिसके हाथ में लठ हो. ताऊ एक ऐसी शख्सियत है जिसका कहा छोटे हो या बड़े सब मानते हैं. ताऊ भतीजों की तो दोस्ती मशहूर होती है. जो चीज बालक अपने बाप से नहीं मांग सकता वो ताऊ से मांग ले तो सहज उपलब्ध हो जाती है. अगर ताऊ एकाध लठ भी मार दे तो परसाद समझ के खाना भी पड़ जाता है. ताऊ से बड़ी कोई अदालत नहीं होती इसके बाद तो भगवान ही मालिक है. मेरे हिसाब से तो ताऊ एक संस्कृति और विचार धारा का नाम है. जिसमे प्यार, सम्मान, रौब-रुतबा सब समाया हुआ है. ताऊ एक जिम्मेदार आदमी का प्रतीक है. इसलिए मै ताऊ का भरपूर सम्मान करता हूँ और भरपूर स्नेह पाता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आप कितनी भाषाओं में लिखते हैं?
ललित शर्मा- विभिन्न भाषाओँ को पढ़ने लिखने का शौक है मुझे अवधी, भोजपुरी गुजराती भी बड़ी प्यारी लगती है. मैंने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गुरमुखी का अक्षर ज्ञान पाया है, अब अभ्यास छुट गया है फ़िर भी जीवन के इन वषों में भाषाओं में सिद्ध होने की कोशिश रहूँगा. अभी भी मैं भाषाओं का विद्यार्थी हूँ. तथा जीवन पर्यंत विद्यार्थी ही रहना चाहता हूँ. तमिल और मलयालम सीखने की कोशिश कर रहा हूँ। अब मुझे समय कम मिल पाता है. ब्लाग पर हिंदी, हरियाणवी और छत्तीसगढ़ी में लिख रहा हूँ निरंतर, पंजाबी में लिखी रचनाएँ भी हैं, अब उन्हें भी प्रकाशित करना चाहूँगा. विद्या अध्यन से कभी आलस नहीं करना चाहिए. नीतिकारों ने कहा है-
आलस्यं मदमोहौ च चापल्यं गोष्ठिरेव च्।
स्तब्धता चाभिनित्वं तथाSत्यागित्वमेव च।।
सुखार्थिन: कुतो विद्या नास्ति विद्या्र्थिन: सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेतसुखम्॥
एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मता।
कुलवंत हैप्पी : आप चिट्ठा चर्चाओं पर भी एक ब्लॉग संचालित करते हैं, ज्यादा चिट्ठा चर्चाएं पक्षपात करती हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?
ललित शर्मा : आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया? मैं नहीं मानता की चिटठा चर्चाओं में कोई पक्षपात होता है. सभी के पठनीय लेखों का समवेश किया जाता है. जब मैं ब्लॉग जगत में आया था तो रवि रतलामी जी ने मेरे ब्लॉग "शिल्पकार के मुख से" में प्रकाशित एक गजल "शाहकार बनने पर वे कटवा देंगे मेरे हाथ" की चर्चा की थी. जबकि मेरा आज भी उनसे रूबरू परिचय नही है. वो मेरे ब्लॉग पे आते हैं और मै उनके ब्लॉग पे जाता हूँ. अगर पक्षपात होता तो हमारा जिक्र ही नही होता. मै अभी "चर्चा मंच"-"समय चक्र" एवं "चर्चा हिंदी चिट्ठों की" पर ब्लाग चर्चा कर रहा हूँ. सभी के उत्कृष्ट एवं पठनीय लेखन का चिटठा चर्चा में उल्लेख किया जाता है.
कुलवंत हैप्पी : व्यंगकार, कवि और लेखक आप हैं ये तो सब जानते हैं, लेकिन असल जिन्दगी में क्या करते हैं कुछ बतलाईए?
ललित शर्मा - अभी मेरा प्रमुख कार्य अध्यन और अध्यापन ही है और यह जीवन ही असल जिंदगी है. जो सबके सामने है.
कुलवंत हैप्पी : जब आपकी रचनाएं संपादकों द्वारा आपको वापिस भेजी गई तो आपको कैसा लगा ?
ललित शर्मा - हा हा हा! जब मैंने कवितायेँ लिखना प्रारम्भ किया तो उस समय मेरी उमर १३-१४ साल की थी. बस धुन सवार रहती थी लिखने की्। उसके बाद श्रोता ढूँढना पड़ता था सुनाने के लिए. बस जो भी जहाँ भी पकड में आ गया दो चार कविता सुना ही देता था. उस समय कविता के शिल्प की समझ भी नहीं थी. जो आया लिख मारा. उसके बाद उसे अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में भेजता था. मौलिक होने का प्रमाण पत्र और एक टिकिट लगे लिफाफे के साथ. अधिकांश कवितायेँ वापस आ जाती थी. खेद का सन्देश साथ में होता था. तब बड़ी कोफ़्त होती थी. सम्पादकों पर गुस्सा भी आता था कि मेरी कवितायेँ क्यूँ नहीं छापते. मेरा गांव लग-भग उस समय ८००-९०० की आबादी का था. जिसमे लिखने वाला कोई भी नहीं था कि मुझे कोई उस्ताद मिल जाता और मुझे कविता लेखन का रास्ता दिखाता. अब तो सब मिल गए और जितने मिले सब उस्ताद ही मिले.
कुलवंत हैप्पी : ढाई अक्षर प्रेम के तो सुने थे, लेकिन ढाई पंक्ति कविता आपने कब और कैसे लिखने की सोची?
ललित शर्मा- ढाई अक्षर प्रेम का राग तो अब बहुत ही पुराना हो चूका है. रिकार्ड घिस चूका है. अब इसे बदल देना चाहिए कुछ नया होना चाहिए ढाई पंक्ति की प्रेरणा मुझे बड़े भाई जैसे मित्र शरद कोकास जी से मिली तथा जब से आपने पढ़ी तब से ही लिखी.
कुलवंत हैप्पी : रोचक हो या गम्भीर एक यादगार पल, जो सबके साथ सांझा करना चाहते हों?
ललित शर्मा - एक बहुत ही रोचक किस्सा है, सुनिए-सभी पंथों एवं धर्मों की मान्यता है कि शवयात्रा में शामिल होना पुण्य का काम है. दोस्त हो या दुश्मन, परिचित हो या अपरिचित सभी की अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए, ये बात मैंने भी गांठ बांध रखी थी. किसी की भी शव यात्रा घर के सामने से निकले मैं अपना पंछा (अंगोछा) उठा कर उसमें शामिल हो जाता हूँ, एक दिन ऐसी ही एक शव यात्रा घर के सामने से निकली, उसमें सभी परिचित लोग दिखे, तो मैंने सोचा कि गांव में किसी की मृत्यु हो गयी और नाई मुझ तक नहीं पहुंच पाया मुझे जाना चाहिए तो मैंने अपना अंगोछा उठाया और चल दिया, श्मशान जाने के बाद मैंने किसी से नहीं पूछा कि कौन मरा है? अपने हिसाब से कयास लगाया. हमारे मोहल्ले में एक फौजी रहता था और वो काफी वृद्ध हो गया था, वो लगातार बीमार भी रहता था, उसके नाती लोग उसके साथ रहते थे. श्मशान में फौजी के नाती लोग सभी क्रिया कर्मों को अंजाम दे रहे थे. अब मैंने सोच लिया कि फौजी की ही शव यात्रा है. अंतिम संस्कार के बाद घर आया तो मेरी दादी ने पूछा कि कौन मर गया? मैंने कहा फौजी. उन्हें बता कर मैं नहा कर पूजा पाठ करके किसी काम से बस स्टैंड चला गया. जब वापस घर आया तो देखा घर के सब लोग एक साथ बैठे थे. मैं देखते ही चक्कर में पड़ गया कि क्या बात हो गयी इतनी जल्दी? मैं तो अभी ही घर से गया हूं बाहर. दादी ने पूछा " तू किसकी काठी "अंतिम यात्रा"में गया था. मैंने कहा "फौजी की. तो वो बोली "फौजी तो अभी आया था. रिक्शा में बैठ के और मेरे से 100 रूपये मांग कर ले गया है. वो बीमार है और इलाज कराने के लिए पैसे ले गया है. अब मैं भी सर पकड़ कर बैठ गया "आखिर मरा वो कौन था? जिसकी मैं शव यात्रा में गया था. मैंने कहा ये हो ही नहीं सकता मैं अपने हाथों से लकडी डाल के आया हूँ. वो किधर गया है? उन्होंने कहा कि बस स्टैंड में डाक्टर के पास गया होगा. मैंने फिर अपनी बुलेट उठाई और बस स्टैंड में उसको ढूंढने लगा. एक जगह पान ठेले के सामने वो मुझे रिक्शे में बैठे मिल गया. मैंने उतर के देखा और उससे बात की. अब मैं तो सही में पागल हो चूका था कि "मैं आखिर किसी शव यात्रा में गया था" मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था, क्या किया जाये? फिर मेरे दिमाग में आया कि फौजी के नाती लोगों से पूछा जाये. अब पूछने में शरम भी आ रही थी कि वे क्या सोचेंगे? महाराज का दिमाग खसक गया है. काठी में जा के आने के बाद पूछ रहा है कौन मरा था? किसकी काठी थी? मैं इसी उधेड़ बुन में कुछ देर खडा रह फिर सोचा कि चाहे कुछ भी पूछना तो पड़ेगा. ये तो बहुत बड़ी मिस्ट्री हो गयी थी.आखिर मैं उनके घर गया. दूर में मोटर सायकिल खड़ी करके उसके छोटे नाती को वहीँ पर बुलाया और उससे पूछा. तो उसने बताया कि उसके पापा (फौजी के दामाद) की मौत हुयी है वो भी काफी दिन से बीमार चल रहे थे.
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगिंग दुनिया में कब आए, और इस दुनिया को आप कितना समय देते हैं? उस समय में से कितना पढ़ने और कितना लिखने में को देते हैं?
ललित शर्मा- ब्लोगिंग की दुनिया में आए तो साल हो गया. लेकिन सक्रिय रूप से जुलाई में आया. तब से लेकर आज तक मैं ब्लॉगिंग को लगभग ६ घंटे देता हूँ जिसमें लिखना पढ़ना दोनों शामिल है. मतलब जब भी समय होता है, उसे पूरी गंभीरता से ब्लॉगिंग को समर्पित करता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आपकी राय में कितने प्रतिशत ब्लॉगर सार्थक ब्लॉगिंग करते हैं?
ललित शर्मा- सभी ब्लॉगर ही अपनी-अपनी मति के अनुसार सार्थक ब्लॉगिंग ही कर रहे हैं. हमारे पास ऐसा कोई पैमाना नहीं है किसी की ब्लॉगिंग का मुल्यांकन कर सकें। जो भी ब्लागिंग में है वह अपने जीवन का महत्वपुर्ण समय और धन इसमे अर्पित कर रहा है, सभी की पसंद और उद्देश्य एक नहीं हो सकते। इसलिए जिसको जो अच्छा लगता है वो वही लिखता है और वैसा ही उन्हें पाठक वर्ग मिल जाता है।
कुलवंत हैप्पी : क्या आपने स्वयंलिखित व्यंग्य लेख पर विचार करते हुए शौचालय को सोचालय बना या नहीं?
ललित शर्मा- हा हा हा! मारा पापड़ वाले को। ये राज की बात है इसे राज ही रहने दो, हमारे घर मे ४-४ सो्चालय हैं।
अंत मे कुछ पंक्तिया जिन से में नाता रखता हूँ।
परिचय क्या दूं मैं तो अपना
नेह भरी जल की बदरी हुँ
किसी पथि्क की प्यास बुझाने
बंधी हुई कुंवे पर गगरी हुँ
मीत बनाने जग मे आया
मानवता का सजग प्रहरी हुँ
हर दुवार खुला है घर का
सबका स्वागत करती नगरी हुँ
:-राम राम
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री गप्पे भी बड़े बड़े छोड़ता है। इस बात का पता तब चला। उसकी और भजने अमली की बात चल रही थी। भजना अमली जब बहुत ज्यादा अफीम खा लेता है तो झूठ बहुत बोलता है। भजने अमली ने कहा "भूरे तुम्हें पता है मेरे ससुराल वालों का घर इतना बड़ा है कि वहाँ माल गाड़ी पार्क की जा सकती है"। भूरा मिस्त्री भी कहाँ कम था, उसने भी तुरंत कह डाला, मेरे ससुराल वालों का घर तो इतना बड़ा है कि दूसरे कोने में जाते ही रोमिंग शुरू हो जाती है।
कुलवंत हैप्पी : पंजाबी बापू के खुंडे 'लठ' की तरह हरियाणा का ताऊ बड़ा फेमस है, ताउ के शै है बतलाईए?
ललित शर्मा: वाह! भाई हैप्पी वाह! - सवाल भी ढूंढ़ के लाया गजब का, ताऊ शब्द हरियाणा, राजस्थान, यु.पी. के कुछ हिस्सों, दिल्ली, आदि में प्रचलित है. ताऊ शब्द सुनते ही मन में एक मूछ वाले बुजुर्ग माणस की तश्वीर उभरती है, जिसके हाथ में लठ हो. ताऊ एक ऐसी शख्सियत है जिसका कहा छोटे हो या बड़े सब मानते हैं. ताऊ भतीजों की तो दोस्ती मशहूर होती है. जो चीज बालक अपने बाप से नहीं मांग सकता वो ताऊ से मांग ले तो सहज उपलब्ध हो जाती है. अगर ताऊ एकाध लठ भी मार दे तो परसाद समझ के खाना भी पड़ जाता है. ताऊ से बड़ी कोई अदालत नहीं होती इसके बाद तो भगवान ही मालिक है. मेरे हिसाब से तो ताऊ एक संस्कृति और विचार धारा का नाम है. जिसमे प्यार, सम्मान, रौब-रुतबा सब समाया हुआ है. ताऊ एक जिम्मेदार आदमी का प्रतीक है. इसलिए मै ताऊ का भरपूर सम्मान करता हूँ और भरपूर स्नेह पाता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आप कितनी भाषाओं में लिखते हैं?
ललित शर्मा- विभिन्न भाषाओँ को पढ़ने लिखने का शौक है मुझे अवधी, भोजपुरी गुजराती भी बड़ी प्यारी लगती है. मैंने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गुरमुखी का अक्षर ज्ञान पाया है, अब अभ्यास छुट गया है फ़िर भी जीवन के इन वषों में भाषाओं में सिद्ध होने की कोशिश रहूँगा. अभी भी मैं भाषाओं का विद्यार्थी हूँ. तथा जीवन पर्यंत विद्यार्थी ही रहना चाहता हूँ. तमिल और मलयालम सीखने की कोशिश कर रहा हूँ। अब मुझे समय कम मिल पाता है. ब्लाग पर हिंदी, हरियाणवी और छत्तीसगढ़ी में लिख रहा हूँ निरंतर, पंजाबी में लिखी रचनाएँ भी हैं, अब उन्हें भी प्रकाशित करना चाहूँगा. विद्या अध्यन से कभी आलस नहीं करना चाहिए. नीतिकारों ने कहा है-
आलस्यं मदमोहौ च चापल्यं गोष्ठिरेव च्।
स्तब्धता चाभिनित्वं तथाSत्यागित्वमेव च।।
सुखार्थिन: कुतो विद्या नास्ति विद्या्र्थिन: सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेतसुखम्॥
एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मता।
कुलवंत हैप्पी : आप चिट्ठा चर्चाओं पर भी एक ब्लॉग संचालित करते हैं, ज्यादा चिट्ठा चर्चाएं पक्षपात करती हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?
ललित शर्मा : आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया? मैं नहीं मानता की चिटठा चर्चाओं में कोई पक्षपात होता है. सभी के पठनीय लेखों का समवेश किया जाता है. जब मैं ब्लॉग जगत में आया था तो रवि रतलामी जी ने मेरे ब्लॉग "शिल्पकार के मुख से" में प्रकाशित एक गजल "शाहकार बनने पर वे कटवा देंगे मेरे हाथ" की चर्चा की थी. जबकि मेरा आज भी उनसे रूबरू परिचय नही है. वो मेरे ब्लॉग पे आते हैं और मै उनके ब्लॉग पे जाता हूँ. अगर पक्षपात होता तो हमारा जिक्र ही नही होता. मै अभी "चर्चा मंच"-"समय चक्र" एवं "चर्चा हिंदी चिट्ठों की" पर ब्लाग चर्चा कर रहा हूँ. सभी के उत्कृष्ट एवं पठनीय लेखन का चिटठा चर्चा में उल्लेख किया जाता है.
कुलवंत हैप्पी : व्यंगकार, कवि और लेखक आप हैं ये तो सब जानते हैं, लेकिन असल जिन्दगी में क्या करते हैं कुछ बतलाईए?
ललित शर्मा - अभी मेरा प्रमुख कार्य अध्यन और अध्यापन ही है और यह जीवन ही असल जिंदगी है. जो सबके सामने है.
कुलवंत हैप्पी : जब आपकी रचनाएं संपादकों द्वारा आपको वापिस भेजी गई तो आपको कैसा लगा ?
ललित शर्मा - हा हा हा! जब मैंने कवितायेँ लिखना प्रारम्भ किया तो उस समय मेरी उमर १३-१४ साल की थी. बस धुन सवार रहती थी लिखने की्। उसके बाद श्रोता ढूँढना पड़ता था सुनाने के लिए. बस जो भी जहाँ भी पकड में आ गया दो चार कविता सुना ही देता था. उस समय कविता के शिल्प की समझ भी नहीं थी. जो आया लिख मारा. उसके बाद उसे अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में भेजता था. मौलिक होने का प्रमाण पत्र और एक टिकिट लगे लिफाफे के साथ. अधिकांश कवितायेँ वापस आ जाती थी. खेद का सन्देश साथ में होता था. तब बड़ी कोफ़्त होती थी. सम्पादकों पर गुस्सा भी आता था कि मेरी कवितायेँ क्यूँ नहीं छापते. मेरा गांव लग-भग उस समय ८००-९०० की आबादी का था. जिसमे लिखने वाला कोई भी नहीं था कि मुझे कोई उस्ताद मिल जाता और मुझे कविता लेखन का रास्ता दिखाता. अब तो सब मिल गए और जितने मिले सब उस्ताद ही मिले.
कुलवंत हैप्पी : ढाई अक्षर प्रेम के तो सुने थे, लेकिन ढाई पंक्ति कविता आपने कब और कैसे लिखने की सोची?
ललित शर्मा- ढाई अक्षर प्रेम का राग तो अब बहुत ही पुराना हो चूका है. रिकार्ड घिस चूका है. अब इसे बदल देना चाहिए कुछ नया होना चाहिए ढाई पंक्ति की प्रेरणा मुझे बड़े भाई जैसे मित्र शरद कोकास जी से मिली तथा जब से आपने पढ़ी तब से ही लिखी.
कुलवंत हैप्पी : रोचक हो या गम्भीर एक यादगार पल, जो सबके साथ सांझा करना चाहते हों?
ललित शर्मा - एक बहुत ही रोचक किस्सा है, सुनिए-सभी पंथों एवं धर्मों की मान्यता है कि शवयात्रा में शामिल होना पुण्य का काम है. दोस्त हो या दुश्मन, परिचित हो या अपरिचित सभी की अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए, ये बात मैंने भी गांठ बांध रखी थी. किसी की भी शव यात्रा घर के सामने से निकले मैं अपना पंछा (अंगोछा) उठा कर उसमें शामिल हो जाता हूँ, एक दिन ऐसी ही एक शव यात्रा घर के सामने से निकली, उसमें सभी परिचित लोग दिखे, तो मैंने सोचा कि गांव में किसी की मृत्यु हो गयी और नाई मुझ तक नहीं पहुंच पाया मुझे जाना चाहिए तो मैंने अपना अंगोछा उठाया और चल दिया, श्मशान जाने के बाद मैंने किसी से नहीं पूछा कि कौन मरा है? अपने हिसाब से कयास लगाया. हमारे मोहल्ले में एक फौजी रहता था और वो काफी वृद्ध हो गया था, वो लगातार बीमार भी रहता था, उसके नाती लोग उसके साथ रहते थे. श्मशान में फौजी के नाती लोग सभी क्रिया कर्मों को अंजाम दे रहे थे. अब मैंने सोच लिया कि फौजी की ही शव यात्रा है. अंतिम संस्कार के बाद घर आया तो मेरी दादी ने पूछा कि कौन मर गया? मैंने कहा फौजी. उन्हें बता कर मैं नहा कर पूजा पाठ करके किसी काम से बस स्टैंड चला गया. जब वापस घर आया तो देखा घर के सब लोग एक साथ बैठे थे. मैं देखते ही चक्कर में पड़ गया कि क्या बात हो गयी इतनी जल्दी? मैं तो अभी ही घर से गया हूं बाहर. दादी ने पूछा " तू किसकी काठी "अंतिम यात्रा"में गया था. मैंने कहा "फौजी की. तो वो बोली "फौजी तो अभी आया था. रिक्शा में बैठ के और मेरे से 100 रूपये मांग कर ले गया है. वो बीमार है और इलाज कराने के लिए पैसे ले गया है. अब मैं भी सर पकड़ कर बैठ गया "आखिर मरा वो कौन था? जिसकी मैं शव यात्रा में गया था. मैंने कहा ये हो ही नहीं सकता मैं अपने हाथों से लकडी डाल के आया हूँ. वो किधर गया है? उन्होंने कहा कि बस स्टैंड में डाक्टर के पास गया होगा. मैंने फिर अपनी बुलेट उठाई और बस स्टैंड में उसको ढूंढने लगा. एक जगह पान ठेले के सामने वो मुझे रिक्शे में बैठे मिल गया. मैंने उतर के देखा और उससे बात की. अब मैं तो सही में पागल हो चूका था कि "मैं आखिर किसी शव यात्रा में गया था" मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था, क्या किया जाये? फिर मेरे दिमाग में आया कि फौजी के नाती लोगों से पूछा जाये. अब पूछने में शरम भी आ रही थी कि वे क्या सोचेंगे? महाराज का दिमाग खसक गया है. काठी में जा के आने के बाद पूछ रहा है कौन मरा था? किसकी काठी थी? मैं इसी उधेड़ बुन में कुछ देर खडा रह फिर सोचा कि चाहे कुछ भी पूछना तो पड़ेगा. ये तो बहुत बड़ी मिस्ट्री हो गयी थी.आखिर मैं उनके घर गया. दूर में मोटर सायकिल खड़ी करके उसके छोटे नाती को वहीँ पर बुलाया और उससे पूछा. तो उसने बताया कि उसके पापा (फौजी के दामाद) की मौत हुयी है वो भी काफी दिन से बीमार चल रहे थे.
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगिंग दुनिया में कब आए, और इस दुनिया को आप कितना समय देते हैं? उस समय में से कितना पढ़ने और कितना लिखने में को देते हैं?
ललित शर्मा- ब्लोगिंग की दुनिया में आए तो साल हो गया. लेकिन सक्रिय रूप से जुलाई में आया. तब से लेकर आज तक मैं ब्लॉगिंग को लगभग ६ घंटे देता हूँ जिसमें लिखना पढ़ना दोनों शामिल है. मतलब जब भी समय होता है, उसे पूरी गंभीरता से ब्लॉगिंग को समर्पित करता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आपकी राय में कितने प्रतिशत ब्लॉगर सार्थक ब्लॉगिंग करते हैं?
ललित शर्मा- सभी ब्लॉगर ही अपनी-अपनी मति के अनुसार सार्थक ब्लॉगिंग ही कर रहे हैं. हमारे पास ऐसा कोई पैमाना नहीं है किसी की ब्लॉगिंग का मुल्यांकन कर सकें। जो भी ब्लागिंग में है वह अपने जीवन का महत्वपुर्ण समय और धन इसमे अर्पित कर रहा है, सभी की पसंद और उद्देश्य एक नहीं हो सकते। इसलिए जिसको जो अच्छा लगता है वो वही लिखता है और वैसा ही उन्हें पाठक वर्ग मिल जाता है।
कुलवंत हैप्पी : क्या आपने स्वयंलिखित व्यंग्य लेख पर विचार करते हुए शौचालय को सोचालय बना या नहीं?
ललित शर्मा- हा हा हा! मारा पापड़ वाले को। ये राज की बात है इसे राज ही रहने दो, हमारे घर मे ४-४ सो्चालय हैं।
अंत मे कुछ पंक्तिया जिन से में नाता रखता हूँ।
परिचय क्या दूं मैं तो अपना
नेह भरी जल की बदरी हुँ
किसी पथि्क की प्यास बुझाने
बंधी हुई कुंवे पर गगरी हुँ
मीत बनाने जग मे आया
मानवता का सजग प्रहरी हुँ
हर दुवार खुला है घर का
सबका स्वागत करती नगरी हुँ
:-राम राम
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री गप्पे भी बड़े बड़े छोड़ता है। इस बात का पता तब चला। उसकी और भजने अमली की बात चल रही थी। भजना अमली जब बहुत ज्यादा अफीम खा लेता है तो झूठ बहुत बोलता है। भजने अमली ने कहा "भूरे तुम्हें पता है मेरे ससुराल वालों का घर इतना बड़ा है कि वहाँ माल गाड़ी पार्क की जा सकती है"। भूरा मिस्त्री भी कहाँ कम था, उसने भी तुरंत कह डाला, मेरे ससुराल वालों का घर तो इतना बड़ा है कि दूसरे कोने में जाते ही रोमिंग शुरू हो जाती है।
आभार
कुलवंत हैप्पी
ललित भईया से आपकी ये बात बहुत बढ़िया लगी । ललित भईया के क्या कहने, ये तो दिल के भी फौजी हैं ।
जवाब देंहटाएंaccha laga lalit jee ke bare me padkar .aapka sakshatkar ka tareeka bhee bahut accha laga......
जवाब देंहटाएंdhanyvad............
ललित भाई से मिलना बड़ा सुखद रहा....बिना रोमिंग के. :) एकदम नजदीक से नजर आये.
जवाब देंहटाएंललित जी के बारे में विस्तार से जानने का अवसर आपने दिया कुलवंत जी। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंश्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत अच्छा लगा ....ललित जी मिलकर .....बहुत -बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंBehatreen prastuti.....Sharmaji se milane ke liye aapko bahut bahut dhanyvaad!!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत अच्छा लगा ....ललित जी मिलकर .....बहुत -बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभाई यह सब पढकर भतिजे पर घणा प्रेम उमड रहा सै. सोच रहा हूं एकाधे लठ्ठ का प्रसाद दे ही डालूं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
मुच्छड ललित जी के विचार पढकर मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंललित जी, बुरा मत मानना, आज के समय में मूछों वाले लोग कम ही दिखते हैं, मूछें गायब होती जा रही हैं.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री ललित जी के विषय में इतनी सुन्दर जानकारी देने के लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमूछविहीन इस दुनिया मे ललित भैया विशिष्ट है और बाकि सब की मूछे तो समझो अवशिष्ट है.
जवाब देंहटाएंबिना रोमिन्ग के इतनी बाते बता दी जी खुश हो गया.
ललित जी से मिल कर , उनके बारे मे जान कर बहुत अच्छा लगा। तुम्हारे इस प्रयास से नही लगता कि ये सिर्फ आभासी दुनिया है। सारा एक ही परिवार लगता है। बहुत बहुत शुभकामनायें ललित जी को। तुम्हे आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ढंग से खंगाल डिया हमारे ललित जी को !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर किसी को जानना उसके भीतर को मानना और अंतर्मन में झांकना होता है। इसी झांकने को आंकने समदृश्य बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं कुलवंत जी। और ललित जी आंक रहे हैं चिट्ठों को, सच्ची में। अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंबढिया रही बातचीत !!
जवाब देंहटाएंललित जी मिल के प्रसन्नता हुयी,
जवाब देंहटाएंलेकिन बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति के विषय मे यह जानकारी अल्प है,कभी पुर्ण जानकारी उगलवाएं तो आनंद आए, शायद यह साक्षात्कार ललित जी का पहला साक्षात्कार है।
और रही मुछ वाली बात तो अब शेर कम ही बचे हैं।
कुलवंत जी आपका शुक्रिया-सबले बढिया-36 गढिया
बहुत अच्छा साक्षात्कार....ललित जी के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली
जवाब देंहटाएंहैप्पी हैप्पी आभार जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ....ललित जी मिलकर .....बहुत -बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंlalit me bharpoor sambhavanaa hai. agar gambheerata se sadhanarat rahe to yah pratibha duniya me naam raishan kar sakati hai. badhai, is pratibha ke baare me batane ke liye..
जवाब देंहटाएंललित जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है.
जवाब देंहटाएंचित्रकला, काव्यकला, राजनिति
एक शानदार व्यक्तित्व