हैप्पी अभिनंदन में रश्मि रविजा
हैप्पी अभिनंदन में आज मैं आपको जिस ब्लॉगर हस्ती के रूबरू करवाने जा रहा हूँ, उनका और लेखन का रिश्ता बहुत पुराना है, लेकिन ब्लॉग जगत से कुछ नया। पुराने रिश्ते के कारण बने इस ने रिश्ते से इतना प्यार हो गया है उनको कि उनकी खुली आँखों ने एक सपना संजोया है ब्लॉग जगत को एक संपूर्ण पत्रिका के रूप में देखने का। 'मन की पाखी' और 'अपनी उनकी सबकी बातें' ब्लॉग पर शब्दों का अद्भुत जाल बुनने वाली रश्मि रविजा आकाशवाणी से जुड़ी हुई हैं, लेकिन प्यार उनका ब्लॉगजगत से भी कम नहीं। वो वहाँ से ब्लॉगवुड के लिए लिखती हैं, जहाँ से बॉलीवुड चलता है, मेरा मतलब मुम्बई नगरिया। ब्लॉग जगत को लेकर वो क्या क्या सोचती हैं और उनकी जिन्दगी के हसीं पल जानते हैं उनकी जुबानी।
कुलवंत हैप्पी : आपने अपनी एक पोस्ट में ब्लॉगवुड पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा था कि ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट? इनमें से आप ब्लॉगवुड को किस श्रेणी में रखना पसंद करेंगी और क्यों?
रश्मि रविजा : सबसे पहले तो आपको शुक्रिया बोलूं "आपने मेरा नाम सही लिखा है" वरना ज्यादातर लोग 'रवीजा' लिख जाते हैं। वैसे I don’t mind much ....टाइपिंग मिस्टेक भी हो सकती है, और जहाँ तक आपके सवाल के जबाब की बात है। तो मैं पोस्ट में सब लिखी ही चुकी हूँ। हाँ, बस ये बताना चाहूंगी कि ब्लॉगजगत को मैं एक 'सम्पूर्ण पत्रिका' के रूप में देखना चाहती हूँ। मेरे पुराने प्रिय साप्ताहिक 'धर्मयुग' जैसा हो, जिसमें सबकुछ होता था, साहित्य, मनोरन्जन, खेल, राजनीति पर बहुत ही स्तरीय। और स्तरीय का मतलब गंभीर या नीरस होना बिलकुल नहीं है। वह आम लोगों की पत्रिका थी और उसमें स्थापित लेखकों के साथ साथ मुझ जैसी बारहवीं में पढ़ने वाली लड़की को भी जगह मिलती थी।
मेरा सपना ब्लॉगजगत को उस पत्रिका के समकक्ष देखना है क्यूंकि मैं 'धर्मयुग' को बहुत मिस करती हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आपके ब्लॉग पर शानदार पेंटिंगस लगी हुई हैं, क्या चित्रकला में भी रुचि रखती हैं?
रश्मि रविजा : वे शानदार तो नहीं हैं पर हाँ, मेरी बनाई हुई हैं। और मैं अक्सर सोचती थी कि अगर मैं कोई बड़ी पेंटर होती तो अपनी 'चित्रकला' शुरू करने की कहानी जरूर बताती। अब आपने पेंटिंग के विषय में पूछ लिया है, तो कह ही डालती हूँ। बचपन में मुझे चित्रकला बिलकुल नहीं आती थी। सातवीं तक ये कम्पलसरी था और मैं ड्राईंग के एक्जाम के दिन रोती थी। टीचर भी सिर्फ मुझे इसलिए पास कर देते थे क्यूंकि मैं अपनी क्लास में अव्वल आती थी।
चित्रकला के डर से ही बारहवीं तक मैंने बायोलॉजी नहीं, गणित पढ़ा। पर इंटर के फाइनल के बाद समय काटने के लिए मैंने स्कैच करना शुरू कर दिया, क्योंकि तब, खुद को व्यस्त रखने के तरीके हमें खुद ही ईजाद करने पड़ते थे। आज बच्चे, टीवी, कंप्यूटर गेम्स, डीवीडी होने के बावजूद अक्सर कह देते हैं। क्या करें बोर हो रहें हैं, पर तब हमारा इस शब्द से परिचय नहीं था। कुछ भी देख कर कॉपी करने की कोशिश करती अपनी फिजिक्स, केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स बुक के सारे खाली पन्ने भर डाले। मदर टेरेसा, मीरा, विवेकानंद, सुनील गावस्कर...के अच्छे स्केच बना लेती थी.
फिर जब एमए करने के लिए मैं होस्टल छोड़ अपने चाचा के पास रहने लगी तो वहाँ कॉलेज के रास्ते में एक पेंटिंग स्कूल था। पिताजी जब मिलने आए तो मैंने पेंटिंग सीखने की इच्छा जताई, पर बिहार में पिताओं का पढ़ाई पर बढ़ा जोर रहता है। उन्होंने कहा,'एमए' की पढ़ाई है, ध्यान से पढ़ो। पेंटिंग से distraction हो सकता है.'पर रास्ते में वह बोर्ड मुझे, जैसे रोज बुलाता था और एक दिन मैंने चुपके से जाकर ज्वाइन कर लिया। हाथ खर्च के जितने पैसे मिलते थे, सब पेंटिंग में लग जाते। उस दरमियान अपने लिए एक क्लिप तक नहीं ख़रीदा. कभी कभी रिक्शे के पैसे बचाकर भी पेंट ख़रीदे और कॉलेज पैदल गई...पर जब पापा ने मेरी पहली पेंटिंग देखी तब बहुत खुश हुए।
ये सारी मेहनत तब वसूल हो गई, जब दो साल पहले मैं अपनी एक पेंटिंग फ्रेम कराने एक आर्ट गैलरी में गयी...और वहाँ SNDT कॉलेज की प्रिंसिपल एक पेंटिंग खरीदने आई थी। उन्हें मेरी पेंटिंग बहुत पसंद आई और उन्होंने मुझे अपने कॉलेज में 'वोकेशनल कोर्सेस' में पेंटिंग सिखलाने का ऑफर दिया। मैं स्वीकार नहीं कर पाई, यह अलग बात है क्यूंकि मेरा बडा बेटा दसवीं में था। ऐसे ही पिछले साल, जब आकाशवाणी से जॉब का ऑफर मिला, फिर नहीं स्वीकार कर पायी, क्योंकि मेरा छोटा बेटा दसवीं में आ गया। शायद ईश्वर की मर्जी है कि मैं बस लेखन से ही जुड़ी रहूँ।
कुलवंत हैप्पी : लेखन आपका पेशा है या शौक, अगर शौक है तो आप असल जिन्दगी में क्या करती हैं?
रश्मि रविजा : लेखन मेरा शौक है। मैं मुंबई आकाशवाणी से जुड़ी हुई हूँ। वहाँ से मेरी वार्ताएं और कहानियाँ प्रसारित होती हैं। और असल ज़िन्दगी में, मैं क्या क्या करती हूँ, इसकी फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि आप बोर हो जाएंगे, सुनते सुनते :)
कुलवंत हैप्पी : आपकी नजर में ब्लॉगवुड में किस तरह के बदलाव होने चाहिए?
रश्मि रविजा : रश्मि : व्यर्थ के विवाद ना हों, सौहार्दपूर्ण माहौल हमेशा बना रहें। कोई गुटबाजी ना हो. सबलोग सबका लिखा पढ़ें और पसंद आने पर खुलकर प्रशंसा करें। हाँ एक और चीज़...लोग अपना 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' जरा और विकसित कर लें तो अच्छा...कई बात मजाक समझ कर छोड़ देनी चाहिए..उसे भी दिल पे ले लेते हैं।
कुलवंत हैप्पी : क्या आप आपकी नजर में ज्यादा टिप्पणियोँ वाले ब्लॉगर ही सर्वश्रेष्ठ हैं या जो सार्थक लिखता है?
रश्मि रविजा : ऐसा नहीं है कि ज्यादा टिप्पणियाँ पाने वाले ब्लॉगर सार्थक नहीं लिखते। यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो अच्छा लिखते हैं, लेकिन उनको टिप्पणियाँ ना के बराबर मिलती है। ऐसे में उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
कुलवंत हैप्पी : "मन का पाखी" में आपने नए साल पर उपन्यास लिखना शुरू किया है, क्या आप अब इस ब्लॉग पर निरंतर उपन्यास लिखेंगी?
रश्मि रविजा : सोचा तो कुछ ऐसा ही है कि अपने लिखे, अनलिखे, अधूरे सारे उपन्यास और कहानियां, सब अपने इस ब्लॉग में संकलित कर दूंगी। ज्यादा लोग पढ़ते नहीं या शायद पढ़ते हैं, कमेंट्स नहीं करते। पर मेरा लिखा सब एक जगह संग्रहित हो जाएगा। इसलिए जारी रखना चाहती हूँ, ये सिलसिला।
कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगवुड की जानकारी कैसे मिली, और कब शुरू किया?
रश्मि रविजा : 'अजय ब्रह्मात्मज' जी के मशहूर ब्लॉग "चवन्नी चैप" के लिए मैंने हिंदी टाकिज सिरीज के अंतर्गत हिंदी सिनेमा से जुड़े अपने अनुभवों को लिखा था। लोगों को बहुत पसंद आया। कमेन्ट से ज्यादा अजय जी को लोगों ने फोन पर बताया और उन्होंने मुझे अपना ब्लॉग बनाने की सलाह दे डाली। 'मन का पाखी' मैंने 23 सितम्बर को शुरू किया और 'अपनी उनकी सबकी बातें' 10 जनवरी को.
कुलवंत हैप्पी : "मंजिल मिले ना मिले, ये गम नहीं, मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है" आप इस पंक्ति का अनुसरण करती हैं?
रश्मि रविजा : ऑफ कोर्स, बिलकुल करती हूँ। सतत कर्म ही जीवन है, वैसे अब यह भी कह सकती हूँ "तलाश-ओ-तलब में वो लज्ज़त मिली है....कि दुआ कर रहा हूँ, मंजिल ना आए"।
कुलवंत हैप्पी : कोई ऐसा लम्हा, जब लगा हो बस! भगवान इसकी तलाश थी?
रश्मि रविजा : ना ऐसा नहीं लगा, कभी...क्योंकि कुछ भी एक प्रोसेस के तहत मिलता है, या फिर मेरी तलाश ही अंतहीन है, फिर से मंजिल से जुड़ा एक शेर ही स्पष्ट कर देगा इसे "मेरी ज़िन्दगी एक मिस्ले सफ़र है ...जो मंजिल पर पहुंची तो मंजिल बढा दी."
आपका बहुत बहुत शुक्रिया...मुझे इतने कम दिन हुए हैं, ब्लॉग जगत में फिर भी...मेरे विचार जानने का कष्ट किया और मेरे बारे में जानने की जिज्ञासा जाहिर की। आपने कहा था, जिस सवाल का जबाब ना देने का मन हो, उसे छोड़ सकती हूँ। पर देख लीजिए मैंने एक भी सवाल duck नहीं किया। आपके सवालों से तो बच जाउंगी पर ज़िन्दगी के सवाल से भाग कर कहाँ जाएंगे हम?
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री बिन नम्बर प्लेट वाले स्कूटर पर सवार होकर जा रहा था कि एक पुलिस वाले ने उसको रोकते हुए कागजात दिखाने के लिए कहा। भूरे मिस्त्री ने स्पष्ट मेरे पास कागजात तो है नहीं। पुलिस वाला बोला चलो सौ रुपए निकालो। भूरा मिस्त्री लाल पीला होते हुए बोला, क्या महंगाई एक दिन में इतनी बढ़ गई, कल तो पच्चीस रुपए लिए थे, आज सीधे सौ पर आ गए। हाय रब्बा क्या होगा देश का।
कुलवंत हैप्पी : आपने अपनी एक पोस्ट में ब्लॉगवुड पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा था कि ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट? इनमें से आप ब्लॉगवुड को किस श्रेणी में रखना पसंद करेंगी और क्यों?
रश्मि रविजा : सबसे पहले तो आपको शुक्रिया बोलूं "आपने मेरा नाम सही लिखा है" वरना ज्यादातर लोग 'रवीजा' लिख जाते हैं। वैसे I don’t mind much ....टाइपिंग मिस्टेक भी हो सकती है, और जहाँ तक आपके सवाल के जबाब की बात है। तो मैं पोस्ट में सब लिखी ही चुकी हूँ। हाँ, बस ये बताना चाहूंगी कि ब्लॉगजगत को मैं एक 'सम्पूर्ण पत्रिका' के रूप में देखना चाहती हूँ। मेरे पुराने प्रिय साप्ताहिक 'धर्मयुग' जैसा हो, जिसमें सबकुछ होता था, साहित्य, मनोरन्जन, खेल, राजनीति पर बहुत ही स्तरीय। और स्तरीय का मतलब गंभीर या नीरस होना बिलकुल नहीं है। वह आम लोगों की पत्रिका थी और उसमें स्थापित लेखकों के साथ साथ मुझ जैसी बारहवीं में पढ़ने वाली लड़की को भी जगह मिलती थी।
मेरा सपना ब्लॉगजगत को उस पत्रिका के समकक्ष देखना है क्यूंकि मैं 'धर्मयुग' को बहुत मिस करती हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आपके ब्लॉग पर शानदार पेंटिंगस लगी हुई हैं, क्या चित्रकला में भी रुचि रखती हैं?
रश्मि रविजा : वे शानदार तो नहीं हैं पर हाँ, मेरी बनाई हुई हैं। और मैं अक्सर सोचती थी कि अगर मैं कोई बड़ी पेंटर होती तो अपनी 'चित्रकला' शुरू करने की कहानी जरूर बताती। अब आपने पेंटिंग के विषय में पूछ लिया है, तो कह ही डालती हूँ। बचपन में मुझे चित्रकला बिलकुल नहीं आती थी। सातवीं तक ये कम्पलसरी था और मैं ड्राईंग के एक्जाम के दिन रोती थी। टीचर भी सिर्फ मुझे इसलिए पास कर देते थे क्यूंकि मैं अपनी क्लास में अव्वल आती थी।
चित्रकला के डर से ही बारहवीं तक मैंने बायोलॉजी नहीं, गणित पढ़ा। पर इंटर के फाइनल के बाद समय काटने के लिए मैंने स्कैच करना शुरू कर दिया, क्योंकि तब, खुद को व्यस्त रखने के तरीके हमें खुद ही ईजाद करने पड़ते थे। आज बच्चे, टीवी, कंप्यूटर गेम्स, डीवीडी होने के बावजूद अक्सर कह देते हैं। क्या करें बोर हो रहें हैं, पर तब हमारा इस शब्द से परिचय नहीं था। कुछ भी देख कर कॉपी करने की कोशिश करती अपनी फिजिक्स, केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स बुक के सारे खाली पन्ने भर डाले। मदर टेरेसा, मीरा, विवेकानंद, सुनील गावस्कर...के अच्छे स्केच बना लेती थी.
फिर जब एमए करने के लिए मैं होस्टल छोड़ अपने चाचा के पास रहने लगी तो वहाँ कॉलेज के रास्ते में एक पेंटिंग स्कूल था। पिताजी जब मिलने आए तो मैंने पेंटिंग सीखने की इच्छा जताई, पर बिहार में पिताओं का पढ़ाई पर बढ़ा जोर रहता है। उन्होंने कहा,'एमए' की पढ़ाई है, ध्यान से पढ़ो। पेंटिंग से distraction हो सकता है.'पर रास्ते में वह बोर्ड मुझे, जैसे रोज बुलाता था और एक दिन मैंने चुपके से जाकर ज्वाइन कर लिया। हाथ खर्च के जितने पैसे मिलते थे, सब पेंटिंग में लग जाते। उस दरमियान अपने लिए एक क्लिप तक नहीं ख़रीदा. कभी कभी रिक्शे के पैसे बचाकर भी पेंट ख़रीदे और कॉलेज पैदल गई...पर जब पापा ने मेरी पहली पेंटिंग देखी तब बहुत खुश हुए।
ये सारी मेहनत तब वसूल हो गई, जब दो साल पहले मैं अपनी एक पेंटिंग फ्रेम कराने एक आर्ट गैलरी में गयी...और वहाँ SNDT कॉलेज की प्रिंसिपल एक पेंटिंग खरीदने आई थी। उन्हें मेरी पेंटिंग बहुत पसंद आई और उन्होंने मुझे अपने कॉलेज में 'वोकेशनल कोर्सेस' में पेंटिंग सिखलाने का ऑफर दिया। मैं स्वीकार नहीं कर पाई, यह अलग बात है क्यूंकि मेरा बडा बेटा दसवीं में था। ऐसे ही पिछले साल, जब आकाशवाणी से जॉब का ऑफर मिला, फिर नहीं स्वीकार कर पायी, क्योंकि मेरा छोटा बेटा दसवीं में आ गया। शायद ईश्वर की मर्जी है कि मैं बस लेखन से ही जुड़ी रहूँ।
कुलवंत हैप्पी : लेखन आपका पेशा है या शौक, अगर शौक है तो आप असल जिन्दगी में क्या करती हैं?
रश्मि रविजा : लेखन मेरा शौक है। मैं मुंबई आकाशवाणी से जुड़ी हुई हूँ। वहाँ से मेरी वार्ताएं और कहानियाँ प्रसारित होती हैं। और असल ज़िन्दगी में, मैं क्या क्या करती हूँ, इसकी फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि आप बोर हो जाएंगे, सुनते सुनते :)
कुलवंत हैप्पी : आपकी नजर में ब्लॉगवुड में किस तरह के बदलाव होने चाहिए?
रश्मि रविजा : रश्मि : व्यर्थ के विवाद ना हों, सौहार्दपूर्ण माहौल हमेशा बना रहें। कोई गुटबाजी ना हो. सबलोग सबका लिखा पढ़ें और पसंद आने पर खुलकर प्रशंसा करें। हाँ एक और चीज़...लोग अपना 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' जरा और विकसित कर लें तो अच्छा...कई बात मजाक समझ कर छोड़ देनी चाहिए..उसे भी दिल पे ले लेते हैं।
कुलवंत हैप्पी : क्या आप आपकी नजर में ज्यादा टिप्पणियोँ वाले ब्लॉगर ही सर्वश्रेष्ठ हैं या जो सार्थक लिखता है?
रश्मि रविजा : ऐसा नहीं है कि ज्यादा टिप्पणियाँ पाने वाले ब्लॉगर सार्थक नहीं लिखते। यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो अच्छा लिखते हैं, लेकिन उनको टिप्पणियाँ ना के बराबर मिलती है। ऐसे में उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
कुलवंत हैप्पी : "मन का पाखी" में आपने नए साल पर उपन्यास लिखना शुरू किया है, क्या आप अब इस ब्लॉग पर निरंतर उपन्यास लिखेंगी?
रश्मि रविजा : सोचा तो कुछ ऐसा ही है कि अपने लिखे, अनलिखे, अधूरे सारे उपन्यास और कहानियां, सब अपने इस ब्लॉग में संकलित कर दूंगी। ज्यादा लोग पढ़ते नहीं या शायद पढ़ते हैं, कमेंट्स नहीं करते। पर मेरा लिखा सब एक जगह संग्रहित हो जाएगा। इसलिए जारी रखना चाहती हूँ, ये सिलसिला।
कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगवुड की जानकारी कैसे मिली, और कब शुरू किया?
रश्मि रविजा : 'अजय ब्रह्मात्मज' जी के मशहूर ब्लॉग "चवन्नी चैप" के लिए मैंने हिंदी टाकिज सिरीज के अंतर्गत हिंदी सिनेमा से जुड़े अपने अनुभवों को लिखा था। लोगों को बहुत पसंद आया। कमेन्ट से ज्यादा अजय जी को लोगों ने फोन पर बताया और उन्होंने मुझे अपना ब्लॉग बनाने की सलाह दे डाली। 'मन का पाखी' मैंने 23 सितम्बर को शुरू किया और 'अपनी उनकी सबकी बातें' 10 जनवरी को.
कुलवंत हैप्पी : "मंजिल मिले ना मिले, ये गम नहीं, मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है" आप इस पंक्ति का अनुसरण करती हैं?
रश्मि रविजा : ऑफ कोर्स, बिलकुल करती हूँ। सतत कर्म ही जीवन है, वैसे अब यह भी कह सकती हूँ "तलाश-ओ-तलब में वो लज्ज़त मिली है....कि दुआ कर रहा हूँ, मंजिल ना आए"।
कुलवंत हैप्पी : कोई ऐसा लम्हा, जब लगा हो बस! भगवान इसकी तलाश थी?
रश्मि रविजा : ना ऐसा नहीं लगा, कभी...क्योंकि कुछ भी एक प्रोसेस के तहत मिलता है, या फिर मेरी तलाश ही अंतहीन है, फिर से मंजिल से जुड़ा एक शेर ही स्पष्ट कर देगा इसे "मेरी ज़िन्दगी एक मिस्ले सफ़र है ...जो मंजिल पर पहुंची तो मंजिल बढा दी."
आपका बहुत बहुत शुक्रिया...मुझे इतने कम दिन हुए हैं, ब्लॉग जगत में फिर भी...मेरे विचार जानने का कष्ट किया और मेरे बारे में जानने की जिज्ञासा जाहिर की। आपने कहा था, जिस सवाल का जबाब ना देने का मन हो, उसे छोड़ सकती हूँ। पर देख लीजिए मैंने एक भी सवाल duck नहीं किया। आपके सवालों से तो बच जाउंगी पर ज़िन्दगी के सवाल से भाग कर कहाँ जाएंगे हम?
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री बिन नम्बर प्लेट वाले स्कूटर पर सवार होकर जा रहा था कि एक पुलिस वाले ने उसको रोकते हुए कागजात दिखाने के लिए कहा। भूरे मिस्त्री ने स्पष्ट मेरे पास कागजात तो है नहीं। पुलिस वाला बोला चलो सौ रुपए निकालो। भूरा मिस्त्री लाल पीला होते हुए बोला, क्या महंगाई एक दिन में इतनी बढ़ गई, कल तो पच्चीस रुपए लिए थे, आज सीधे सौ पर आ गए। हाय रब्बा क्या होगा देश का।
आभार
कुलवंत हैप्पी
कुलवंत हैप्पी
रविजा जी से मिलवाकर खुशियों की अनगिनत रश्मियां हैप्पी जी ने ब्लॉग जगत में बरपाई हैं। आभार और रश्मि जी के जिंदगी और लेखन इत्यादि विभिन्न आयामों पर पढ़ कर विचार मन मानस का बढ़ गया है आकार प्रकार। प्रत्येक के मन में कुरेद कुरेद कर उकेरें अच्छे नेक सुविचार। यही है असली विचारों का त्योहार।
जवाब देंहटाएंRashmi ma'am ke lekhan ke to pahle se hi deewane the ab painting ke bhi ho gaye.. kabhi mauka laga to 2-4 tips bhi le hi lenge.. :)
जवाब देंहटाएंshukriya Happy ji
रश्मि जी के बारे में कई नयी जानकारियाँ मिलीं। आपका आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
रश्मि जी से बमार्फत आपके मिलना अच्छा लगा. आपका और रश्मि जी का आभार!!
जवाब देंहटाएंवैसे, भूरा मिस्त्रि गलत नहीं कह रहा!! :)
रश्मि रविजा के बारे में और अधिक जानकारी मिली ...ये सचुमच ही रश्मि है ...बौद्धिकता से संचालित ...!!
जवाब देंहटाएंआपके माध्यम से रश्मि जी से मिलना अच्छा रहा । उनके दोनो ब्लॉग्स का नियमित पाठक हूँ । संवेदनशीलता और वैचारिकता का दुर्लभ संयोजन है इनकी प्रविष्टियों में ।
जवाब देंहटाएंआभार इस प्रविष्टि के लिये ।
्रश्मि रविज़ा जी से साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा विअसे इनके लेखन की तो मैं पहले ही कायल हूँ मगर इनहों ने जिस शेर का जिक्र किया --
जवाब देंहटाएं"मेरी ज़िन्दगी एक मिस्ले सफ़र है ...जो मंजिल पर पहुंची तो मंजिल बढा दी."
इसे पढ कर इनके इरादे साफ देख रही हूँ आने वाला समय रश्मि जी का ही है । उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें और तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद आशीर्वाद ।
रश्मि रविजा जी और उनके विचारों के बारे में जानकर अच्छा लगा. बहुत शुभकामनाएं उनको और आपका आभार.
जवाब देंहटाएंभूरा मिश्त्री की चिंता बहुत सही है. पुलिस वाला भी क्या करे? महंगाई दिन दूनी रात चोगुनी बढ रही है.:)
रामराम.
रश्मि जी से यहा मिलना रुचिकर लगा. लेकिन जितना वो अपने बारे मे बताती है उतना ही और जानने का मन होता है. अब मन का क्या करे. वर्तनी की अशुद्धि पर चर्चा हुई तो लगा कि हमारे लिये अपने नाम का सही लिखा जाना कितना मायने रखता है.
जवाब देंहटाएंकुलवंत...... मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूँ इस पोस्ट को देख कर....... बस इतना कह सकता हूँ कि मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ..... रश्मि जी से यहाँ मिल कर.....
जवाब देंहटाएंयूँ तो रश्मि को थोडा-बहुत जानने का सौभाग्य मिला है मुझे..लेकिन यहाँ थोडा और जानना बहुत अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंहैप्पी जी, तुस्सी ग्रेट हो होर
रश्मि... ग्रेटेस्ट.....!!
यूं तो रश्मि जी, को रचनाओं के माध्यम से ही जाना था, आपका बहुत-बहुत आभार आपके माध्यम से इतना कुछ जानने को मिला, बधाई ।
जवाब देंहटाएंmujhe to rashmi ji se pahli baar ru-b-ru hone ka mauka mila ..accha laga unko jankar
जवाब देंहटाएंsabse pahle to rashmi ji ko badhayi aur aapka hardik dhanyawaad aapne unse mukhatib karwaya.........unki zindagi ke anchuye pahluon se ru-b-ru karwaya ..........ummeed hai aage bhi hamein unki ek se badhkar ek rachnayein padhne ko milti rahengi.
जवाब देंहटाएंरश्मी रविजा के बारे में यह छोटी सी जानकारी अच्छी लगी .. हमे तो सुनते सुनते ( मतलब पढ़ते -पढ़ते ) बोर हो जाने की उम्मीद थी मगर ऐसा नही हुआ ?
जवाब देंहटाएंकुलवंत भाई, आपका शुक्रिया ये बताने के लिए कि हमारी रश्मि बहना जी की लेखन के अलावा भी क्या-क्या खूबियां हैं...
जवाब देंहटाएंये जो पहली बार पेंटिंग की तरफ जुनून के साथ कदम उठा था, यही थी वो दिल की आवाज़ जिसे हर इनसान को सुनना चाहिए...आज रश्मि बहना ज़िंदगी के कैनवास पर जज़्बात के रंगों को मास्टरस्ट्रोक्स की तरह उकेर रही हैं, ये उसी सनक का नतीजा है जो उन्होंने पिताजी के विरोध के बावजूद पेंटिंग का शौक पूरा करने के लिए दिखाई थी...दिमाग से तो आदमी हर वक्त चलता है लेकिन ये दिल है जो आदमी को इनसान बनाता है...
जय हिंद...
rashmiji ke bare mai jaanakar acchaa laga..
जवाब देंहटाएंbadhai..
वाह वाह ..मन खुश हो गया ये पोस्ट देख कर..बहुत बहुत शुक्रिया कुलवंत जी !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी की कहानियों और लेख से उनके व्यक्तित्वय की सरलता और बुद्धिमत्ता का अनुमान सहज ही होता है ..पर इस साक्षात्कार से उन्हें और अच्छी तरह जानने का मौका मिला...दिखावा और आत्ममुग्धता से दूर...बहुत ही रोचक और सरल इंटरव्यू ..बहुत आभार
रश्मि जी से साक्षात्कार कर आपने मिलवाया ..उनसे रूबरू होना अच्छा लगा...लेखन से थोडा परिचित थी ,अब उनके बारे में और जानकारी मिली...आपका आभार और रश्मि जी को शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंचंद लोग बेशक अच्छा लिख रहे हैं, और रश्मि जी उनमें एक हैं.आपने उनसे तफ़सीली मुलाक़ात करवाकर भला किया.मन खुश हो गया
जवाब देंहटाएंशहरोज़
Are waa yaar tum to interview bhee achchha le leta hai. in shakshisyation ke vicharon se rubaru karavane ke liye lakh lakh dhnyawaad. keep it up.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी के बारे में कई नयी जानकारियाँ मिलीं।
जवाब देंहटाएंआपका आभार।
बढिया भेंटवार्ता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बातचीत!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंEs sakshatkar ne hamen na sirf Smt Rashmi Ravija ke baare main aur jaanne ka avasar diya balki unke vicharon se bhi hum parichit hue..
Dharmyug, Sarika, Saptahik Hindustan sab jaane kahan gum ho gaye par unki mahak humare jehan main ab bhi taaza hai.. Rashmi ji Blogwood ko en patrikaon jaisa banaye ka beeda uthaye hain ye to unke donno blogs ko padhkar hum jaan hi chuke hain...Rashmi ji ne es yug ki Dharmvir Bharati banane ka sankalp liya hai to hum pathkon ka bhi unko purn sahyog rayega... haan kalakar to wo hain hi to apne blogs ke kissi hisse se "Daboo ji" ko bhi jhankta dikha den to sone pe suhaga ho jayega..
Rashmi ji ke adarsh vakya...manjil ki justaju main mera karvan to hai...se ek kissa yaad ho aaya..
Baat un dinon ki hai jab hum 12th paas karne ke baad Engineering ki koching kar rahe the...to ek din mere Pujya Baba ji ne mujhe bola ki Beta Deepak...khoob lag kar taiyari karo...satat abhyaas se jadmati sujan ho jaati hai..
"Gar paththar pe pani pade mustasil, to be-shubha ghis jaaye paththar ka sil"... Maine bhi turant Baba ji ko ek sher sunane ki agya maangi (akhir pota to unka hi tha...) aur kah sunaya...
"Manjil Mujhe mile na mile eska gum nahin...Manjil ki justaju main mera kaarvan to hai..." aur apna karvan ab tak Rashmi ji ki tarah jaari hai....aur ab to hum bhi kahenge...
"तलाश-ओ-तलब में वो लज्ज़त मिली है....कि दुआ कर रहा हूँ, मंजिल ना आए"...
Deepak Shukla..
सबो का तहे दिल से शुक्रिया.....आपलोगों की शुभकामनाओं की बहुत जरूरत है.....ऐसे ही स्नेह बनाएं रखें...
जवाब देंहटाएंमै खुद को ही गौरवान्वित महशुस करता हूँ कि रश्मि जी मूलत: मेरी पडोसी ही है
जवाब देंहटाएंऐसे सारा जहां या देश अपना है ही ,लेकिन पडोसी होने का गौरव तो रहता ही है ,
रश्मि जी से कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्ति होती रहे यही अभिलाषा है .